सैनिकों की बलि का लेंगे हिसाब
अनाथ और दिव्यांग बच्चों ने पाकिस्तान के झंडे के साथ फूंका नवाज शरीफ का पुतला
देश माँगता है कुर्बानी
पाकिस्तान से युद्ध ही बचा है एक रास्ता
हम वीर सपूतों के बलिदान को इसबार नहीं जाने देंगे जाया
युद्ध करो....युद्ध करो....
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---->>देश उबल रहा है ।देशक दहक रहा है ।देश ज्वालामुखी की तरह खौल रहा है ।21 जवानों की एक साथ बलि,अब हम कतई बर्दास्त नहीं करेंगे । हम अपने वीर सपूतों के बलिदान को अब बेजा नहीं होने देंगे ।कबतक बलि चढ़ने वाले सपूतों को शहीद का तमगा देकर कुछ रेवड़ी देते रहोगे हुक्मरान ।हमें अपने देश पर नाज है,सियासतदां तुम तो अब कुछ लाज करो ।
कश्मीर में शहीद होने वाले हमारे वीर सपूतों(सैनिकों)के नाम----
१-उदित नारायण पाण्डेय
२-सुखविंदर सिंह
३-बृजकिशोर राजपूत
४-हरमिंदर सिंह
५- राजेश्वर जाट
६-बलराम पाटिल
७-उमेश तिवारी
८-राजेश राणा
९-अरमान पटेल
१०-कृष्णा सिद्धू
११-बम बम सिंह
१२-पृथ्वीराज चौहान
१३-रमेश चौहान
१४-उमेश प्रताप
१५-अटल सिंह
१६-चरणजीत सिंह
१७-मनोज वाजपेयी
१८-रामवतार दुबे
१९-बृजेश पाठक
२०-सुनील पांडुरंग राव
२१-सत्यजित सिंह
मरने वाले दहशतगर्द आतंकी के नाम---
१- सैय्यद इस्माइल खान (पाकिस्तानी)
२-जाकिर सैफी (पाकिस्तानी)
३-अब्बास नकवी (पाकिस्तानी)
४-मुख़्तार बानी (कश्मीरी)
मरने वाले वीर सेनानियों में सत्रह शूरवीर बिहार के थे ।हमें इस बात से कोई मलाल नहीं के ये सत्रह बिहारी थे ।ये हमारे देश के ये किसी भी कोने के होते,दिल हमारा उतना ही जलता ।
आज सहरसा आकांक्षा अनाथ आश्रम के इक्कीस बच्चों ने जिसमें से आधे बच्चे दिव्यांग हैं,देश के सामने एक नजीर पेश की ।इन बच्चों ने जिला समाहरणालय के सामने ना केवल पाकिस्तानी झंडे को फूंका बल्कि पाकिस्तानी वजीरे आला नवाज शरीफ के पुतले भी फूंके ।यही नहीं बच्चों ने पाकिस्तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और पाकिस्तान के साथ जल्द युद्ध हो इसके लिए नरेंद्र मोदी से मांग की ।
नजारा बेशक कुछ लोगों को हल्का और हो सकता है की सियासी भी लगता हो लेकिन यह बच्चों का शंखनाद था जिसकी धमक दूर तलक जायेगी ।संस्था में पल रही संगीता,नेहा,इन्द्राणी सहित सभी बच्चियों ने लगभग एक रट लगाते हुए कहा की हम भी युद्ध करने जाएंगे । पाकिस्तानियों ने हमारे अपनों को मारा है ।संस्था के संचालक डॉक्टर शिवेंद्र कहते हैं की उन्हें बस एक बार बस पाकिस्तान घुसने का मौक़ा मिल जाए ।अपनी जान गंवाकर भी वे कुछ हिसाब जरूर चुकता करेंगे ।समाजसेवी प्रवीण आनंद जिनके सौजन्य से ये कार्यक्रम हुआ,वे तो बिल्कुल आग--बाबुल थे और उनका तो साफ़ कहना था की युद्ध में देरी से शहीदों का अपमान हो रहा है ।भाषणबाजी और मीटिंग की जगह अब एलान ए जंग की जरुरत है ।
वाकई जिसतरह से आतंकियों के मनसूबे बढे हैं और वे कश्मीर में अपनी ताकत बढ़ा चुके है ।इससे तो साफ़ जाहिर होता है की सरकार बैकफुट पर खेलना पसंद कर रही है ।लेकिन देश अभी फ्रंटफुट पर खेल देखना चाहती है ।
कश्मीर के परिपेक्ष्य में इसे अब आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया जाने लगा है कि राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार बनने के बाद सुरक्षाबल कश्मीर में आतंकियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं ।वर्तमान आंदोलन को इसी का परिणाम बताया जा रहा है ।
नतीजतन कश्मीर के आतंकवादग्रस्त इलाकों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में पुनः नियंत्रण पाने की खातिर सेना की तैनाती की कवायद तेज हो गई है ।हालांकि बताया यही जा रहा है कि केंद्र सरकार पूरे कश्मीर को एक बार फिर सेना के हवाले कर देना चाहती है पर वह इसे टुकड़ों में करेगी ताकि इंटरनेशल लेवल पर 'ईज्जत' भी बची रहे ।
आधिकरिक सूत्रों के मुताबिक, कश्मीर के सभी अशांत हिस्सों को सेना के हवाले किए जाने की जो कवायद आरंभ हुई है उसके लिए सर्वप्रथम दक्षिणी कश्मीर के ग्रामीण इलाकों को चुना गया है जिसमें सैकड़ों और सैनिकों को तैनात किया जाने वाला है, जिससे सेना की भूमिका बढ़ जाने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं ।
अधिकारी कहते हैं कि गठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद सेना और अन्य सुरक्षाबलों के बीच के समन्वय को भी तोड़ दिया गया था । उनके बीच गुप्तचर जानकारियों का आदान-प्रदान भी रोक दिया गया था ।यह जानबूझ कर किया गया था या फिर अनाजाने में, लेकिन इतना जरूर निश्चित है कि इसने सिर्फ और सिर्फ आतंकियों तथा पाकिस्तान को ही लाभ पहुंचाया और अब जब इस गलती का अहसास हुआ तो हालात बेकाबू हो चुके हैं, जिनसे निपटने की खातिर केंद्र सरकार अंतिम हथियार के तौर पर सेना का इस्तेमाल एक बार फिर कश्मीर पर 'कब्जा' बरकरार रखने की खातिर करने की कवायद में जुट गई है ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सेना की अतिरिक्त मौजूदगी का मकसद इलाकों पर काबिज रहने और पहले से ज्यादा गश्त के जरिये उन प्रदर्शनकारियों को संकेत देना है,जो हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की दो महीने पहले हुई मौत के वक्त से ही हिंसक विरोध-प्रदर्शनों में जुटे हुए हैं और कश्मीर को अशांत बनाए हुए हैं ।इसके साथ ही इसका उद्देश्य उपद्रवियों के खिलाफ गश्त को बढ़ाना भी है ।
वैसे, सेना भी यह बात अच्छी तरह समझती है कि वे भीड़ और हिंसक प्रदर्शनों से निपटने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उनके सैनिकों के पास सिर्फ आटोमैटिक हथियार होते हैं, तथा उन्हें प्रशिक्षण भी गोली मार देने का दिया जाता है,जो इन मामलों में नहीं किया जा सकता। ।इसीलिए,पुलिस की मूलभूत जिम्मेदारियां जम्मू-कश्मीर पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बल केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (केरिपुब) के पास ही रहेंगी,जिनके पास हिंसक भीड़ पर काबू पाने के लिए नान लीथल वेपन मौजूद रहते हैं ।
सूत्रों ने बताया कि इस पूरी कवायद का मूल उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में राज्य सरकार के नियंत्रण को वापस बहाल करना है,जो पिछले दिनों में कुछ कम हो गया है ।बताया जाता है की घाटी तथा नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में सुरक्षा स्थिति का जायजा लेने के लिए सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का जम्मू कश्मीर का दौरा इसी कड़ी का एक हिस्सा है ।
जानकारी के लिए 8 जुलाई को बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से सुरक्षाकर्मियों तथा प्रदर्शनकारियों के बीच हुए संघर्षों में अब तक 76 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं और 11,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं, जिनमें ज्यादातर सुरक्षाकर्मी हैं ।हालात यह हैं कि हिंसक प्रदर्शनों के कारण आतंकवाद विरोधी अभियान ठप्प हो चुके हैं और खबरें कहती हैं कि आतंकी ग्रामीण क्षेत्रों में अपने आपको मजबूत कर चुके हैं ।
फिलवक्त हमने कुछ और रौशनी डाली लेकिन एक बार फिर मौजूं विषय पर आते हैं ।आखिर कबतक हम अपने जवानों की आहुति देते रहेंगे ? अब हमें पाकिस्तानी खून से रंगे तिरंगे और थोक में वहाँ के जवानों की लाशें चाहिए ।अब लड़ाई आर--पार की होगी ।एसी कमरे में बैठकर अब नेतागीरी का वक्त नहीं है ।उठाओ शस्त्र और करो पाकिस्तान पर हमला ।देश का हर नागरिक सैनिक की भूमिका निभाने को आतुर है ।
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