फ़रवरी 27, 2013

एक बालिका विद्यालय का दर्द देखो सरकार


विशेष रिपोर्ट :: मुकेश कुमार सिंह: सुदूर ग्रामीण इलाके और कोसी तटबंध के भीतरी इलाके की बात तो छोड़िये साहेब,सहरसा जिला मुख्यालय के शहरी क्षेत्र में चल रहे विभिन्य सरकारी विद्यालय अनियमितता,लापरवाही और विभिन्य तरह की कमियों की साबूत ईबारत लिख रहे हैं.आज इसी कड़ी में हम बालिकाओं के एक ऐसे उच्च विद्यालय से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जहां मासूम बच्चियों के स्वर्णिम सपनों की एक तरह से बलि चढ़ाई जा रही है.
सहरसा जिला मुख्यालय के पूरब बाजार स्थित वर्ष 1994 से संचालित हो रहा राजकीय कन्या उच्च विद्यालय (सरकारी मॉडल विद्यालय )सरकार के शिक्षा सम्बन्धी तमाम दावों को ना केवल झूठा साबित कर रहा है बल्कि विभिन्य तरह की कमियों को लेकर एक साथ कई यक्ष प्रश्न भी खड़े कर रहा है.वर्ष 1994 से संचालित हो रहे इस विद्यालय को आजतक अपना बेहतर भवन तक नसीब नहीं हो सका है.सड़क किनारे बिल्कुल खुले में संचालित हो रहे इस विद्यालय में 600 से ज्यादा बच्चियां पढ़ती हैं.
लेकिन हद की इन्तहा तो यह है की व्यस्क हो रही इन बच्चियों के इस स्कूल में ना तो एक भी शौचालय है और ना ही पीने के पानी का कोई इंतजाम.विद्यालय में कॉमन रूम और पुस्तकालय तो बस सपना सरीखा है.एक तरफ जहां विद्यालय के बगल में गंदगी का अम्बार है वहीँ दूसरी तरफ महज टिन--कनस्तर के दो मामूली संज्ञा भर के भवन में 600 से ज्यादा बच्चियों को शिक्षा दी जा रही है.अब आप खुद से सोचिये की यह भविष्य संवारने वाला स्कूल है या फिर कुछ और.आपको अंत में दर्द में सनी एक दुखद सच्चाई सुनाते हैं.इसी साल जनवरी माह में नौवीं कक्षा की छात्रा शिल्पी कुमारी यहाँ की गंदगी से पहले इन्फेक्शन का शिकार हुयी और फिर बाद में उसे हेपेटायटिस बी हो गया जिससे उसकी मौत हो गयी. यहाँ भविष्य को दाँव प़र लगाई डरी--सहमी समृधि कुमारी,स्नेहा कुमारी,रेशम कुमारी,हेमा कुमारी और पूजा जैसी कई बच्चियां अब हमसे ही उनकी समस्या दूर करने की फ़रियाद लगा रही है. 
स्कूल के सभी  शिक्षक भी काफी दुखी हैं.बच्चियों को हो रही दिक्कतों को लेकर ये खुल कर बता रहे हैं.इनका शोभा रानी,प्रीति कुमारी,वंदना कुमारी और मोहम्मद मोइत्तुर रहमान आदि गुरुजनों का कहना है इस विद्यालय की कमियों को लेकर उन्होनें ना केवल जिला के सभी वरीय अधिकारियों को कई बार पत्र लिख चुकी हैं बल्कि उनसे मिलकर कई बार गुहार भी लगा चुकी हैं.कई अधिकारी और स्थानीय विधायक इस स्कूल का कई बार दौरा भी कर चुके हैं लेकिन उसका नतीजा आजतक सिफर ही निकला है.यानि उनकी फ़रियाद आजतक नहीं सुनी जा सकी है.यह विद्यालय सिर्फ और सिर्फ समस्याओं से भरा हुआ है.ये शिक्षक भी इस साल हुयी एक बच्ची की मौत को दुखी होकर बताते हैं.
जिला शिक्षा पदाधिकारी रामनंदन प्रसाद
अब बारी बड़बोले अधिकारी की है.हमने इस विद्यालय को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी रामनंदन प्रसाद से कई सवाल किये.इन्होनें इस विद्यालय की तमाम कमियों को स्वीकारा और कहा की यह विद्यालय जल्दबाजी में जिला परिषद के परिसर में खोल दिया गया था लेकिन इस विद्यालय को जमीन का स्वामित्व प्राप्त नहीं हो सका.इसी वजह से आजतक यहाँ पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सका है.जैसे ही जमीन की अधिप्राप्ति होगी,वैसे ही प्राथमिकता के साथ इस विद्यालय के लिए निर्माण कार्य शुरू कराये जायेंगे. 
ऐसा नहीं है की शिक्षा के क्षेत्र में सुधार नहीं हुए हैं.सुधार जरुर हुए हैं लेकिन जिसतरह से दावों के ढोल पीटे जा रहे हैं वैसे सुधार बिल्कुल नहीं हुए हैं.शिक्षा जैसे सबसे अहम् जरुरत में लफ्फाजी अच्छी बात नहीं है.यूँ सियासतदारों का अपना चलन है.हमने बच्चियों के जिला के सबसे मुख्य विद्यालय का नजारा दिखाया है.बांकी जगह की व्यवस्था कैसी होगी,इसका अंदाजा आप यहाँ के हालत देखकर,बाखूबी लगा सकते हैं.नीतीश बाबू जुबानी दावे और ज़मीन सच्चाई में बड़ा फासला होता है.इसे समझने और पाटने की जरुरत है.साथ ही बड़ी--बड़ी यात्राओं की जगह ईमानदार तौर--तरीके अपनाने की और लफ्फाजी छोड़ सच्चाई को सिद्दत से समझने की भी महती जरुरत है.

फ़रवरी 26, 2013

दो शातिर लुटेरे दबोचे गए

बीते 18 फ़रवरी को सुधा दूध एजेंसी के कर्मचारी से 6 लाख की लूट मामले में दोनों लुटेरों की हुयी गिरफ्तारी///
रिपोर्ट चन्दन सिंह: सहरसा पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली जब उसने 18 फ़रवरी को सुधा दूध एजेंसी के कर्मचारी से 6 लाख की लूट मामले में दो शातिर लुटेरे को दबोच लिया।गिरफ्तार दोनों लुटेरे सदर थाना के हटियागाछी के रहने वाले हैं।बताते चलें की लुटी गयी 6 लाख की रकम में से 40 हजार रूपये और 4 मोबाइल सेट भी पुलिस ने इन लुटेरों के पास से बरामद किये हैं।गौरतलब है की लूट की इस बड़ी घटना में शामिल पुर्णिया जिले के तीन और सहरसा जिले के एक और लुटेरे की गिरफ्तारी होनी अभी शेष है।
गिरफ्त में आये रिंकू चौधरी और संतोष भगत नाम के ये दोनों शातिर लुटेरे सदर थाना के हटियागाछी के रहने वाले हैं।हांलांकि इस लूटकांड को अंजाम देने वाले यानि पिस्तौल की नोंक पर रूपये लूटकर भागने वाले तीन शातिर लुटेरे पुर्णिया जिले के रहने वाले हैं।एक और लुटेरा सहरसा जिले के हटियागाछी का ही रहने वाला दीपू चौधरी है।बताना लाजिमी है की गिरफ्त में आये ये दोनों शातिर लुटेरे और पुलिस की गिरफ्त से बाहर दीपू चौधरी सहरसा में अपराध की योजना बनाते थे और दुसरे जिले के अपने सहयोगी अपराधियों को बुलाकर घटना को अंजाम दिलवाते थे।खास बात यह है की ठीक इसी तर्ज पर दुसरे जिले के अपराधी मालदार लोगों का चयन करते थे और वहाँ रिंकू चौधरी,संतोष भगत और दीपू चौधरी जाकर लूट की घटना को अंजाम देते थे। इन दोनों लुटेरे के पास से 40 हजार रूपये और 4 मोबाइल सेट भी पुलिस ने बरामद किये हैं।
पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी
पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी इस कामयाबी को लेकर काफी उत्साहित दिखे और इस कामयाबी को लेकर सहरसा टाईम्स को तफसील से जानकारी दी। हांलांकि इन्होनें पुर्णिया जिले के तीन लुटेरों के नाम का तत्काल खुलासा इसलिए नहीं किया की इससे उनकी जांच और कारवाई प्रभावित होगी।
लम्बे समय से महज अपराध दर अपराध से काफी मोटी हो चुकी फाईलों को बिना  मामले के पटाक्षेप के ही संभाले और सिर्फ हांफती  सहरसा पुलिस के लिए निसंदेह यह एक बड़ी कामयाबी है।सहरसा टाईम्स भी इस कामयाबी के  सहरसा पुलिस की पीठ थपथपाने की वकालत करते हुए यह आशा करता है की पुलिस को अभी ऐसे कई और कारनामे करने होंगे तब जाकर लोगों का उनपर थोड़ा भरोसा होगा।

फ़रवरी 24, 2013

कानून के साए में उड़ रही है कानून की धज्जियां

सहरसा कोर्ट परिसर में और कोर्ट की गेट पर स्थित दुकानों में चढ़ रही है मासूम नौनिहालों के बचपन की बलि/// मुकेश कुमार सिंह ///
इनदिनों सहरसा में कानून के साए में उड़ रही है कानून की धज्जियां। चौकिये मत ! आज हम आपको ऐसी साबुत तस्वीरों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जो इस काली सच्चाई को बेपर्दा करेगी।सहरसा कोर्ट परिसर में और कोर्ट की गेट पर स्थित दुकानों में मासूम नौनिहालों के बचपन की खुल्लम--खुल्ला बलि चढ़ रही है।जाहिर सी बात है की गरीबी और तंगहाली के दंश झेलने वाले परिवारों के ये मासूम बच्चे काम करने को विवश हैं।जिन नन्हें हाथों में कलम और किताबें होनी चाहिए पेट की भूख  मिटाने के लिए उन हाथों में हैं जूठे बर्तन हैं।भविष्य के बड़े सपनो को बेहतर साँचा देने की जगह काम में जुटे ये बच्चे व्यवस्था से कई बड़े सवाल कर रहे हैं।
सबसे पहले हम आपको कुछ आंकड़ों की सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं।बचपन बचाओ आन्दोलन एक सामाजिक संस्था द्वारा पिछले 15 वर्षों के दौरान बिहार से बाहर बंधुआ मजदूरी कर रहे सात हजार से ज्यादा बच्चों को मुक्त कराया गया।यही नहीं कुछ और संस्थाओं के प्रयास से दो हजार से ज्यादा बाल मजदूर भी सहरसा के आसपास के इलाके सहित सूबे के विभिन्य जगहों से मुक्त कराये गए।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की सहरसा में ऐसे बच्चों के लिए वर्ष 2003 में 40 बाल श्रमिक विद्यालय खोले गए थे लेकिन वर्ष 2006 के अंत होते--होते ये सारे विद्यालय बंद हो गए।यानि बाल मजदूरों के लिए सरकार कहीं से भी गंभीर नहीं रही।
अब हम आपको लेकर सहरसा व्यवहार न्यायालय के गेट पर लेकर आये हैं। देखिये यहाँ पर कानून की किस तरह से धज्जियां उड़ रही है। देखिये गेट पर वकील और मुव्किलों के लिए दुकानें सजी हुयी है।इन दुकानों में आ रहे ग्राहकों की सेवा में नन्ही जान जुटी हुयी है।घर परिवार की गाड़ी यही नौनिहालों के हाथों खिंच रही है।ये कमाएंगे तो खुद इनके पेट भरेंगे और घर का चुल्हा भी जलेगा। हमने सीने को चाक करने वाले जीवन की इस बदरंग तस्वीर के बाबत यहाँ के वकीलों से जानना चाहा तो कुछ वकील जिसमें से एक सतीश कुमार सिंह हमें दर्शन की घुंटी पिलाते हुए एक तरफ जहां समाज को कोसा वहीँ सरकार को इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेवार ठहराया।एक वकील साहब वीरेंदर प्रसाद तो दुकानदारों की तरफदारी में इस कदर उतरे की हम भौचक रह गए।इनका कहना था की ये बच्चे बाल मजदूर नहीं हैं।ये सभी दुकानदारों के बच्चे हैं जो अपने परिजनों के काम में हाथ बंटा रहे हैं।हमने इस पुरे मसले पर बच्चों की राय भी लेनी चाही लेकिन यहाँ का माहौल देखते ही देखते इतना गर्म हुआ की हमें बच्चे तक पहुँचने ही नहीं दिया गया.
हमारी यह कोशिश है की सुशासन बाबू को किसी भी तरह से यह तस्वीर दिख जाए और उन्हें यह पता चल सके की सहरसा में बचपन ना केवल मुश्ते टीस लिए सिसक रहा है बल्कि बचपन की यहाँ बलि चढ़ रही है।काश ! इन बच्चों के दिन बहुर जाते।

फ़रवरी 23, 2013

बिकने से बचा बचपन

कोसी इलाके में बिक रही है मासूम किलकारियां////  रिपोर्ट: मुकेश कुमार सिंह
हम तो पेट की भूख मिटाने की जंग लड़ रहे हैं.हमें सपने देखने की आजादी नहीं है.जी हाँ! कोसी इलाके में बच्चे कच्ची उम्र में ही पढाई कर ऊँचे मंजिल पाने के सपनों को कुचलकर कुछ काम कर रोजी--रोटी के इंतजाम में जुट जाते हैं.आंकड़े गवाह हैं की मानव तस्करों की गिद्ध दृष्टि इस इलाके प़र लगी रहती है जहां के मजबूर माँ--बाप नाना तरह के शब्जबाग के झांसे में आकर अपने बच्चों का सौदा मानव सौदागरों से करने से भी गुरेज नहीं करते हैं.
सहरसा थाना में लाये गए ये बच्चे पंजाब के जालंधर ले जाए जाने के दौरान आज सदर थाना के मनोहर हाई स्कूल के समीप से बरामद किये गए हैं. दलाल इन्हें बहला--फुसलाकर जालंधर ले जा रहे थे.यह सच है की जिन मासूम हाथों में कलम--किताब होनी चाहिए वह मज़बूरी में परदेश,वह भी कमाने के लिए जा रहे हैं. सहरसा टाईम्स ने जब इनकी आपबीती सुनी तो उसका कलेजा भी फट पड़ा.देखिये आसूओं से तर इन मासूम आँखों को.इनकी सुबकियां व्यवस्था और हुक्मरानों से कई सवाल एक साथ कर रहे हैं.गरीबी क्या होती है ज़रा इनकी बेजा चिथड़ों में लिपटी जिन्दगी में उतरकर देखिये.बच्चे कह रहे हैं की उनके माँ---बाप को ठेकेदार डेढ़ से दो हजार रूपये दिए और उनको अपने साथ लेकर चल पड़े.य़े बच्चे कह रहे हैं की वे पढ़ना चाहते हैं लेकिन उनके माँ--बाप ने कहा की पहले कुछ कमा लाओ फिर पढ़ना.ये बच्चे जाना नहीं चाहते थे लेकिन इनकी इच्छा को कुचलकर इन्हें ले जाया जा रहा था.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की दलालों ने बच्चों के विरोध को देखते हुए उन्हें पिछले दो दिनों से एक इंट--भट्ठे में न केवल भूखा--प्यासा रखे हुए थे बल्कि इनके साथ जमकर मारपीट भी की थी की वे आसानी से जालंधर चल सकें.इन बच्चों में मनीष कुमार,सिंटू कुमार और रुदल कुमार तीनों बसनही थाना के बुटहा गाँव के,इंदल कुमार और मनोज सौर बाजार थाना के सिलेट गाँव के और पिंटू,राज कुमार और बाज कुमार तीनों सौर बाजार थाना के ही रुपौली गाँव के रहने वाले हैं.सहरसा टाईम्स ने इन भूखे बच्चों के थाने में खाने का इंतजाम किया.
पुलिस की गिरफ्त में आया यह दलाल लत्तर मंडल है.यह खुद को बेकसूर बताते हुए कह रहा है की इन बच्चों को उसके गाँव माणिकपुर के ही रहने वाले पवन यादव और मुन्ना यादव ले जा रहे थे.उनदोनों ने उसको इन बच्चों की रखवाली करने को कहा और खुद कहीं चला गया.इसी दौरान पुलिस आई और उसको पकड़ ली.पुलिस अधिकारी सुबोध यादव,एस.आई,सदर थाना घटना की पूरी जानकारी देते हुए आगे उचित कारवाई का भरोसा दे रहे हैं.
हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले कोसी के इस इलाके में गरीबी बेकारी,भुखमरी,बीमारी और तरह--तरह की समस्याएं सुबह की पहली किरण के साथ ही मुंह बाए खड़ी रहती है.इस इलाके में गरीबी कुलाचें भर रही है.खासकर के पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के भीतर की स्थिति तो और भी नाजुक और कलेजे को चाक करने वाली है.पेट की आग बुझाना यहाँ पहाड़ खोदकर दूध निकाले के समान है.ऐसे में गरीब हर वक्त किसी तारणहार की बाट जोहते नजर आते हैं.इस लाचारी में ये गरीब माँ--बाप मानव तस्कर के झांसे में आ जाते हैं और महज कुछ रूपये की लालच में अपने कलेजे के टुकड़ों को उनके हाथों बेच देते हैं.दो से दस हजार के बीच की रकम देकर दलाल इन गरीब लोगों के मासूमों को खरीदकर दूसरे प्रांत ले जाते हैं जहां ऊँची कीमत पर उन बच्चों को बेचकर मालामाल होते हैं.कई ऐसे मामले आये हैं की ये दलाल हर साल बच्चों को अलग--अलग कीमत में बच्चों को अलग--अलग जगहों पर बेचते हैं.पिछले दस वर्षों के दौरान कोसी इलाके के 20 हजार से ज्यादा बच्चों को दलाल खरीदकर दूसरे प्रांत ले गए हैं.यह अलग बात है की कुछ स्व्यंसेवी संघटनों ने अभीतक करीब 9 हजार बच्चों को इन दलालों के चंगुल से मुक्त कराने सफलता पायी है.लेकिन हद की इंतहा देखिये मुक्त कराये गए इन बच्चों को वायदे के मुताबिक़ आजतक ठीक से पुनर्वासित भी नहीं किया गया है.जाहिर सी बात है की इतने संवेदनशील मामले में सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम क्या खाक उठाये जायेंगे,सरकारी फाईलों से गरीबों के नाम पर निकलने वाली करोड़ों--अरबों की योजनायें धरातल पर नहीं पहुच पाती हैं यह उसी का नतीजा है.

कोसी इलाके में मासूम सपनों की बलि चढाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.सरकार के कागजी आंकड़े और जमीनी सच में कोई मेल नहीं है.गरीब के लिए ही लगभग सारी बड़ी योजनायें है लेकिन गरीब को इन योजनाओं का फलाफल मिलना तो दूर इन योजनाओं की पूरी जानकारी भी नहीं हो पाती है और उनकी अर्थी निकल जाती है.गरीबों की ज्यादातर योजनायें बाबू--हाकिम से लेकर बिचौलियों के बीच ही उछलती--फुदकती रह जाती है.ये गरीब अपने मासूम नौनिहालों के सपने बेचते हैं,उनकी जिन्दगी और उनकी अहमियत बेचते हैं.जबतक गरीबी और रोजगार का टोंटा रहेगा इस इलाके में मानव तस्कर खरीदते रहेंगे बच्चों को.

फ़रवरी 21, 2013

लाखों की चोरी

चोर--बदमाशों की कारिस्तानी से हलकान--परेशान सहरसा वासियों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।बीती रात सेवानिवृत हेडमास्टर के घर हजारों की नकदी और लाखों के आभूषण सहित कीमती सामानों की चोरी कर के चोरों ने एक बार फिर पुरे इलाके में सनसनी फैलाकर रख दी है।बताते चलें की बीते 19 फ़रवरी को पीड़ित सपरिवार एक शादी समारोह में शामिल होने गए थे,पूरा घर सुनसान पडा था।चोरों ने मौक़ा ताड़कर आराम से सारे सामान पर हाथ साफ़ कर दिया।घटना सदर थाना के रिहायशी न्यू कोलोनी मोहल्ले की है।आज सुबह जब लोगों ने घर के मुख्य द्वार को खुला देखा तो वे सकते में आ गए और जब कुछ लोग घर के भीतर घुसे तो उनके पाँव के नीचे की जमीन ही खिसक गयी।लोगों ने पहले पुलिस फिर घर के स्वामी को फोन से सूचना दी।
सदर थानाध्यक्ष सह सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे, चोरी की इस घटना से कोई खासे चिंतित नहीं दिख रहे हैं।इनकी मानें तो खाली घर को चोर टार्गेट करते हैं।पेट्रोलिंग पार्टी को भी पता नहीं चल पाता है की किस घर के भीतर क्या हो रहा है।उन्होनें लोगों से अपील की है की वे जब घर खाली छोड़कर कहीं जाएँ तो इस बात की सुचना पुलिस को दे दें लेकिन लोग ऐसा नहीं करते हैं। अब पीड़ित परिवार चोरी गए सामानों का आवेदन देंगे तो आगे उचित कारवाई होगी।
सहरसा में चोरी और लूट की घटनाओं से आमलोगों का जीना मुहाल है।जाहिर सी बात है की यहाँ पुलिस की नहीं बल्कि अपराधियों की चलती है।पुलिस पर अपराधी पूरी तरह से ना केवल भारी हैं बल्कि वे मनमाफिक तरह से अपराध करने के लिए आजाद भी हैं।

फ़रवरी 18, 2013

दिन--दहाड़े 6 लाख की लूट

सुधा दूध एजेंसी के स्टाफ से हुयी लूट 
सहरसा टाइम्स  आज दिन---दहाड़े बेखौफ अपराधियों ने सदर थाना के विद्यापति नगर स्थित सुधा दूध एजेंसी के स्टाफ से पिस्तौल की नोंक पर न केवल 6 लाख रूपये लूट लिए बल्कि आराम से हाथों में हथियार लहराते हुए वहाँ से उड़न छू भी हो गए।पीड़ित स्टाफ शाम करीब सवा चार बजे एजेंसी से 6 लाख  रूपये लेकर भारतीय स्टेट बैंक की सिटी बैंक शाखा जमा करने जा रहा था की एजेंसी के ठीक बाहर पहले से घात लगाकर बैठे हथियारबंद दो अपराधियों ने पिस्तौल की नोंक पर उसकी मोटरसाईकिल की डिक्की में एक बैग में रखे रूपये निकाले और पास खड़े अपने एक अन्य मोटरसाईकिल सवार सहयोगी की मोटरसाईकिल पर सवार होकर वहाँ से चम्पत हो गए।सूचना बाद मौके पर पहुंची पुलिस फिलवक्त तफ्तीश में जुटी है। 

हर घटना के बाद जैसे पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुँचते हैं ठीक उसी तरह यहाँ भी सदर थानाध्यक्ष सह इन्स्पेक्टर सदर सूर्यकांत चौबे दल--बल के साथ यहाँ पहुंचे और तहकीकात में जुट गए। इस घटना को लेकर वे अपनी भाषा में कुछ भी नहीं बोल रहे हैं बल्कि पीड़ित,एजेंसी मालिक और जो आसपास के लोग बोल रहे हैं वे उसी आधार पर बोल रहे हैं।  इस जिले में अपराधियों की बल्ले--बल्ले और जय--जय है लेकिन आम जनता ना केवल हलकान--परेशान है बल्कि त्राहिमाम कर रही है। दिन--दहाड़े हुयी इस घटना से पुरे इलाके में सनसनी फ़ैल गयी है।बताते चलें की सूबे में हो सकता है कहीं कानून और अमन का राज हो लेकिन इस जिले में अपराधियों की समानांतर सरकार चलती है।यहाँ अपराधी ना केवल पुलिस पर भारी हैं बल्कि किसी दिन अगर कोई घटना नहीं घटी तो समझिये  अपराधी या तो छुट्टी  मना रहे हैं या फिर आपपर मेहरबान हैं।लूट की यह घटना पुलिस की अपराध फाईल में एक घटना का इजाफा भर है।पुलिस के पुराने रेकॉर्ड को देखें तो सुस्त और लचर पुलिस अबतक थोक में घटी घटनाओं का उद्दभेदन करने में कहीं से भी समर्थ साबित नहीं हुयी है।ऐसे में इस घटना का पटाक्षेप आगे होगा,इसपर अभी कुछ भी कयास लगाना बेमानी है।



फ़रवरी 17, 2013

पेट की आग में दफ़न हो रहे मासूमों के सपने


सहरसा टाईम्स: कोसी के इस इलाके में जहां भुख,बेकारी,बिमारी,अभाव और मज़बूरी कुलाचें भर रही है वहाँ पेट की आग में मासूमों के सपने भी एक--एक  करके दफ़न हो रहे हैं।जाहिर सी बात है की फटेहाली और मुफलिसी जब ओढ़ना और बिछौना हो तो सपने देखने की इजाजत नहीं होती। सहरसा जिले के पतरघट प्रखंड के जेम्हरा गाँव में गरीब घर के स्कूली बच्चे भी मज़बूरी में पढाई की जगह दुसरे की खेतों में बैल बनकर हल जोतने को विवश हैं। वे अगर काम नहीं करेंगे तो घर के खामोश चूल्हे में हरकत नहीं होगी। विकाशील देश में ऐसी आदिम तस्वीरों से इंसानियत शर्मसार हो रही है। काश ! हुक्मरानों और तंत्र को ये नज़ारे आईना बनकर बड़ी योजनाओं के सरजमीन पर बुरे हस्र यानि उसके जरुरतमंदों तक नहीं पहुँचने की सच्चाई को समझा पाते।
जेम्हरा गाँव की यह वह खेत है जहां मासूमों के सपने जमीनदोज हो रहे हैं। सुभाष और विकास अपने दादा पलटू महतो के साथ बैल बनकर खेत की जुताई में जुटे हुए हैं। ये बच्चे जेम्हरा मध्य विद्यालय के छात्र भी हैं यानी पढ़कर कुछ बड़ा बनने की इन्हें ख्वाहिश है।लेकिन जब घर में डायन गरीबी मज़बूरी  और बेबसी के शक्ल में फन काढ़े हो तो इन मासूमों को कलम--किताब की जगह कुछ और जतन तो करने ही होंगे। सुभाष कुमार और विकास कुमार नाम के ये दोनों बच्चे और उसके दादा पलटू महतो बताते हैं की सरकारी योजनाओं का लाभ उनके परिवार तक नहीं पहुंचा है। नतीजतन घर के लोगों की सांस चल सके इसके लिए काम करना उनकी मज़बूरी है।
उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम
सहरसा टाईम्स ने रूह तक को छलनी और इंसानियत को जद से शर्मसार करने वाले इस दुखते नज़ारे को लेकर सहरसा के उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम से जबाब--तलब किया। इनकी मानें तो बिहार में जमकर विकास हो रहे हैं। देश से लेकर विदेश तक में बिहार में लगातार हो रहे विकास की आज चर्चा है। वैसे कुछेक घटनाएं कभी--कभार प्रकाश में आते हैं। वे शिक्षा विभाग और श्रम विभाग से इस वाकये को लेकर जांच करवाते हैं।इस मामले में जरुर कारवाई होगी।
ऊपर वाले तूने देने में कोई कमी नहीं की लेकिन किसे क्या मिला यह मुकद्दर की बात है। यहाँ सिसकन,चुभन और टीस के बीच मासूमों के तमाम सपने कुचले जा रहे हैं। सही मायने में शीशे के घरों में रहनेवालों को ही सपने देखने की भी इजाजत हैं। इन मजबूरों के पेट की आग के आगे सारे सपने मलिन और दफ़न हैं। काश ! हुक्मरानों और तंत्र को ये नज़ारे आईना बनकर बड़ी योजनाओं के सरजमीन पर बुरे हस्र यानि उसके उनतक नहीं पहुँचने की सच्चाई को समझा पाते। 

फ़रवरी 16, 2013

बेटी ला दो,वर्ना जान दे देंगे

सहरसा टाईम्स:  कोसी प्रमंडल के आयुक्त कार्यालय के सामने बैठे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बहला---फुसलाकर बेटी को बीते 12 जनवरी को अगवा करने मामले में अब इन्साफ के लिए एक नयी जंग का आगाज हुआ है।अगवा बच्ची के माता--पिता और उसके परिजनों ने पुलिस--प्रशासन के खिलाफ ना केवल मोर्चा खोल दिया है ।अगवा बच्ची के परिजनों का कहना है की उनकी बेटी ब्यूटीशियन कोर्स के लिए जिला मुख्यालय स्थित वृद्ध--विधवा और विकलांग केंद्र पर बच्चों को पढ़ाने जाती थी।उक्त केंद्र को सिलाई मशीन और अन्य उपकरणों की सप्लाई करने वाला नौशाद बच्ची को बहला--फुसलाकर  विगत 12 जनवरी को ले भागा। पहले तो उनलोगों ने इस मामले की पंचायत की और लड़के के परिजनों से लड़की को वापस करने की आरजू--मिन्नत की।
सदर थाना के गांधी पथ मोहल्ले में रहने वाले नौशाद के परिजनों ने पहले तो लड़की वापिस करने का पूरा भरोसा दिया लेकिन लड़की को वापिस नहीं किया।थक--हारकर उन्होनें 03 फ़रवरी को सदर थाना में अपहरण का मामला दर्ज कराया जिसमें नौशाद सहित पांच लोगों को आरोपी बनाया गया।लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद पुलिस भी उनकी बच्ची को सकुशल वापिस लाने के लिए उत्सुक और गंभीर नहीं दिखी।उन्हें हर हाल में अपनी बच्ची चाहिए। ।यही नहीं इन्साफ के इस जंग में अगर इससे भी बात नहीं बनी तो वे सामूहिक आत्मदाह कर लेंगे।बेटी ला दो,वर्ना जान दे देंगे।
सहरसा की  पुलिस  कारवाई के नाम पर नामजद पांच लोगों में से नौशाद के पिता और एक भाई को गिरफ्तार करके जेल भेज चुकी थी, सहरसा के पुलिस पर बढ़ता दवाब को देख नौसाद ने अगवा लड़की के साथ दिल्ली पुलिस के सामने सरेंडर किया। लेकिन सहरसा की पुलिस  इस मामले को पूरी तरह से हल्के अंदाज में लेती हुयी दिख रही है जो उसकी सेहत के लिए कहीं से मुफीद नहीं दिख रहा है।

फ़रवरी 15, 2013

सावधान ! सदर थाना है चोरों की गिरफ्त में


सावधान ! सहरसा सदर थाना इनदिनों पूरी तरह से चोरों की गिरफ्त में है।चौंकिए मत,बल्कि होशियार और खबरदार हो जाईये।इस थाने में विभिन्य मामलों में लाये जाने वाले बड़े और छोटे वाहनों के कीमती सामानों की लगातार चोरी हो रही है।गाड़ी की बैटरी,डेक,सेल्फ,गियर बॉक्स,अन्य  जरुरी के सामानों के साथ--साथ गाड़ी के इंजन तक की चोरी हो रही है।इस सनसनीखेज वाकये को लेकर बड़ा सवाल यह है की चोरी होने के बाद इन्साफ के लिए पीड़ित थाना में आते हैं लेकिन जब थाने में ही लोगों के सामानों की चोरी होने लगे तो इन्साफ के लिए फिर लोग कहाँ जायेंगे।जाहिर तौर पर सदर थाना सहरसा में गाड़ी मालिकों के जान पर बनी है लेकिन पुलिस अधिकारी हैं की वे अपनी जिम्मेवारी से पूरी तरह कन्नी काट रहे हैं।
सबसे पहले देखिये सहरसा आदर्श सदर थाना के परिसर में विभिन्य मामलों में लायी गयी बड़ी और छोटी गाड़ियों की बड़ी खेप को।पहली नजर में आप सोच रहे होंगे की आखिर इन गाड़ियों को दिखाने का हमारा मकसद क्या है।आप पहले इन गाड़ियों को देखिये फिर हम इनकी काली सच्चाई से आपको रूबरू कराते हैं।इन गाड़ियों में से अधिकांश गाड़ियां ऐसी हैं जिसके कीमती उपस्कर चुरा लिए गए हैं।किसी नवविवाहिता को आपने सोलहों श्रृंगार और कीमती से आभूषण में सजे-धजे जरुर देखा होगा।आपने भरी जवानी में किसी दुखियारी को बेबा होते भी देखा होगा।इन गाड़ियों की हालत ठीक भरी जवानी में बेबा हुयी दुखियारी जैसा है।आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे की इन गाड़ियों के कीमती से कीमती सामान को चोर चुरा ले गए हैं।अब हमें यह पता नहीं है की चोर इसी थाने के वर्दीवाले हैं या फिर बाहर के।
पीड़ित उमेश प्रसाद यादव
इस गंभीर रहस्य पर से पर्दा आज सदर थाना के मेनहा गाँव के रहने वाले एक पीड़ित उमेश प्रसाद यादव ने उठाया।गरीब परिवार के उमेश यादव ने क़िस्त पर टाटा मेजिक गाड़ी ली की उनका परिवार किसी तरह से पटरी पर रह सके।लेकिन परमिट नहीं रहने की वजह से एम.भी.आई ने उनकी गाड़ी बीते सात फ़रवरी को पकड़ ली और गाड़ी को सदर थाने के हवाले कर दिया।सात फ़रवरी को यह गाड़ी पकड़ी गयी थी लेकिन नौ फ़रवरी को सूद पर पैसा उठाकर उमेश ने जुर्माना भर के गाडी का रिलीज ऑडर डी.टी.ओ से ले लिया।लेकिन हद की इंतहा देखिये की नौ फ़रवरी की शाम को जब उमेश गाड़ी लेने थाना पहुंचे तो उनके पाँव के नीचे की जमीन ही खिसक गयी।उनकी गाड़ी की बैटरी,डेक और 20 लीटर डीजल चोरों के द्वारा चोरी कर लिए गए थे।हैरान---परेशान उमेश 9 फ़रवरी से ही पैसे के अभाव में गाड़ी को थाना से बाहर निकाल पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।उमेश अपने साथ घटी पूरी घटना की काली दास्ताँ सहरसा टाईम्स को सुनाता है और कहता है की चोरी की घटना के बाद पीड़ित इन्साफ के लिए थाना आते हैं लेकिन उनपर तो विपत्ति का पहाड़ थाने में टूटा है।अब वे कहाँ और किसके पास अपनी फ़रियाद लेकर जायेंगे।
थानाध्यक्ष सूर्यकांत चौबे
सहरसा टाईम्स ने इस बड़ी घटना को लेकर सदर थानाध्यक्ष सह सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे से जबाब--तलब किया।हाकिम की मानें तो थाने में ऐसी घटना नहीं घट सकती है।उनकी नजर में गाड़ी मालिक अथवा गाड़ी के स्टाफ लोग ही सुरक्षा के लिए गाड़ी का सामान खोलकर ले जाते हैं।जब हमने इन्हें यह कहा की एक गाड़ी मालिक यह गंभीर आरोप लगा रहा है की उनकी गाड़ी के सामान की थाने से चोरी हुयी है के जबाब में उनका कहना है की उनसे किसी ने ऐसी शिकायत नहीं की है।अगर शिकायत होगी तो वे जांच करेंगे।
सदर थाने से हजारों की कीमत के नहीं बल्कि विभिन्य गाड़ियों के लाखों मूल्य के कीमती सामानों की अभीतक चोरी हो चुकी है लेकिन पीड़ित इसकी शिकायत करें तो आखिर किससे।जहां पर चोरी और सीनाजोरी दोनों होती है,वहाँ पर आमलोगों की फ़रियाद का क्या माने।पुलिस के बड़े अधिकारियों को इस गंभीर मसले को खुद से देखना चाहिए।

फ़रवरी 11, 2013

सुशासन में शराब पीकर टल्ली हुयी दो महिलायें

सुशासन में महिलायें भी छंककर ना केवल शराब पी रहीं बल्कि बीच सड़क पर गिरती--लोटतीं उपहास का पात्र भी बन रहीं हैं/दिल को दुखाने और सभ्यता---संस्कृति को शर्मशार करने वाली ये तस्वीरें सरकार से कई बड़े सवाल कर रही 
सहरसा टाईम्स: सुशासन में महिलायें भी छंककर ना केवल शराब पी रहीं हैं बल्कि बीच सड़क पर गिरती--लोटतीं उपहास का पात्र भी बन रहीं हैं।जाहिर तौर पर दिल को दुखाने और सभ्यता---संस्कृति को शर्मशार करने वाली ये तस्वीरें सरकार से कई बड़े सवाल करती दिख रही हैं।सहरसा में शराब के नशे में धुत्त दो महिलाओं ने कमिश्नरी और समाहरणालय सहित लगभग तमाम आलाधिकारियों के कार्यालय को जाने वाली मुख्य सड़क पर करीब दो घंटे तक जमकर उत्पात किये।इस दौरान एक नशेड़ी महिला कोलतार की सड़क पर गिरकर अपना सर भी फुडवा लिया।बड़ी मशक्कत के बाद रिक्सा पर लादकर इन्हें उनके घर की  तरफ भेजा जा सका।इस तमाम हरकतों के बीच इन पियक्कड़ महिलाओं में से एक ने सहरसा टाईम्स के साथ बदतमीजी करने की भी पुरजोर कोशिश की। नीतीश बाबू इस तस्वीर को देखकर आप खुद से तय कीजिये की बिहार कहाँ जा रहा है।अपनी तरफ से हम कुछ भी कहेंगे,तो आप बुरा मान जायेंगे। 

लीकतंत्र ने जमकर लूटा बच्चों के परिजनों को

नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा के प्रश्न पत्र नाम पर लाखों का ठगी।।। 
सहरसा टाईम्स: एक बार फिर शिक्षा माफियाओं के गोरख खेल में प्रश्नों के लीकतंत्र ने बच्चों के परिजनों को जमकर लूटा। बताना लाजिमी है की आयोजित हुयी जवाहर नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा के प्रश्न पत्र शनिवार की  रात से ही सहरसा बाजार में बिक रहे थे। यूँ बिक्री का यह दौर कल  सुबह में भी जारी था।हद की इंतहा यह है की बाजार में प्रश्न पत्र बेचे जा रहे थे लेकिन इसकी कोई भनक तक जिला प्रशासन को नहीं थी। 25000 हजार से लेकर 200 रूपये तक में प्रश्न--पत्र बिके। हांलांकि जब  परीक्षा शुरू हुयी और परीक्षा में बच्चों को मिले प्रश्न--पत्र से जब इस लीक हुए प्रश्न--पत्र का मिलान किया गया तो इसका उससे मिलान नहीं हुआ।जाहिर सी बात है की शिक्षा माफियाओं के खेल में बच्चों के परिजन न केवल ठगे गए बल्कि परिजनों को लाखों का चूना भी लगा।
सदर एस.डी.ओ राजेश कुमार
सहरसा टाईम्स ने इस गोरख धंधे की जानकारी जिला प्रशासन को दी,तब जाकर अधिकारियों की नींद टूटी और वे परीक्षा केंद्र पर पहुंचकर लीक  प्रश्न--पत्र का मिलान बच्चों के बीच बांटे गए प्रश्न--पत्र से करने लगे। प्रश्न--पत्र नकली निकले। सहरसा टाईम्स के सवाल का जबाब देते हुए प्रशासन के अधिकारियों ने जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई का भरोसा दिया है। यूँ बताते चलें की इससे पहले भी सहरसा में प्रश्न--पत्र लीक होने का कई बार गोरख खेल हो चुका है जिसमें जिला प्रशासन किसी भी तरफ की हल्की कारवाई करने तक में भी आजतक कामयाब नहीं हो सका है। 50 सीट के लिए नवोदय की इस प्रवेश परीक्षा में 2777 परीक्षार्थी शामिल हुए थे जिसके लिए जिला मुख्यालय में चार केंद्र बनाए गए थे।
प्रश्न--पत्र का मिलान करते अधिकारी
 परीक्षा केंद्र पर पहुंचे अधिकारी लीक प्रश्न--पत्र का मिलान बच्चों के बीच वितरित प्रश्न--पत्र से किये  ।लेकिन वह नकली साबित हुआ। इस मौके पर सहरसा टाईम्स ने सदर एस.डी.ओ राजेश कुमार से कई तल्ख़ सवाल किये। इन्होनें पिछले साल नवोदय प्रवेश परीक्षा में लीक हुए प्रश्न पत्र को सही बताते हुए कारवाई की अनुशंसा का पर्तिवेदन जिलाधिकारी सहरसा को समर्पित किया था।सहरसा टाईम्स से आज खुलकर उन्होनें इसको लेकर जिक्र भी किया लेकिन उसका परिणाम क्या निकला पूछने पर वे झेंपते दिखे। जाँच करते अधिकारी
सहरसा में शिक्षा माफियाओं की बल्ले---बल्ले है।वे जमकर चांदी काट रहे हैं लेकिन जिला प्रशासन उसपर किसी भी तरह की कारवाई करने में अभीतक समर्थ नहीं दिख रहा है।

फ़रवरी 09, 2013

संविदा पर बहाल न्याय के लिए ANM की भूख हड़ताल

संविदा की अवधि विस्तार के लिए भूख हड़ताल पर 4 फ़रवरी से बैठी ए.एन.एम की हालत बिगड़ी
ए.एन. एम कंचन
सहरसा टाईम्स संविदा की अवधि विस्तार के लिए बीते 4 फरवरी से सिविल सर्जन कार्यालय के परिसर स्थित जिला स्वास्थ्य समिति के बरामदे पर  अनिश्चितकालीन  भूख हड़ताल पर बैठी ए.एन. एम कंचन की हालत बीते दोपहर बाद काफी बिगड़ गयी.पिछले तीन साल से स्वास्थ्य विभाग के बड़े अधिकारियों के साथ कुकृत्य नहीं करने की सजा भोग रही एक अबला के जंग के आज पांचवें दिन कई कर्मचारी संघ के साथ-साथ कई सामाजिक संगठन भी इस महिला के समर्थन में न केवल उतर गए हैं बल्कि इस जघन्य अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने का एलान भी कर दिया है।बताना लाजिमी है की पीड़िता ANM कंचन कुमारी ने न्याय के लिए बीते वर्ष 12 अक्तूबर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठी थी लेकिन उस वक्त सहरसा टाईम्स की पहल से एक सप्ताह में न्याय का भरोसा दिलाकर 13 अक्तूबर की रात में पीड़िता का अनशन जिला प्रशासन ने खत्म करा लिया था।लेकिन हद की इन्तहा देखिये की उस वक्त भूख हड़ताल खत्म कराने में तेजी दिखाने वाला जिला प्रशासन अपने वायदे पर आजतक खड़ा नहीं उतरा और ठगी और छली गयी कंचन कुमारी को 4 फ़रवरी से एक बार फिर से भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा।आज भूख हड़ताल का छठा  दिन है लेकिन निर्लज्ज बने स्वास्थ्य महकमा से लेकर जिला प्रशासन में कहीं से भी संवेदना का स्पंदन नहीं दिख रहा है।
इधर स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के पहले से मिल रहे समर्थन को देख अन्य कर्मचारी संघों ने भी कंचन के अनशन को जायज ठहराते हुए उसे अपना समर्थन दे दिया है.यही नहीं विभिन्य सामाजिक संगठनों ने भी कंचन के पक्ष में उतरकर उसे न्याय दिलाने के लिए पहल शुरू कर दी है.
सहरसा के सिविल सर्जन भोला नाथ झा
कंचन के दुबारा भूख हड़ताल पर बैठने को लेकर हमने सहरसा के सिविल सर्जन भोला नाथ झा से जबाब--तलब किया।हमें 13 अक्तूबर 2012 के सिविल सर्जन और आज के सिविल सर्जन में खासा बदलाव नजर आया.आज सिविल सर्जन साहब कह रहे थे की यह उनके हाथ की बात नहीं है डी.एम साहब ने आगामी 13 फ़रवरी की तिथि कंचन के मामले पर विचार और फैसले के लिए मुक़र्रर कर रखी है.जो भी होगा वह 13 फ़रवरी को ही होगा.लेकिन सिविल सर्जन साहब पर कंचन को भरोसा नहीं है.आखिर उसे भरोसा हो भी तो कैसे.
कंचन को न्याय दिलाने के लिए लामबंदी काफी तेज हो चुकी है.ऐसे में इस मामले को जल्द निपटा लेना ही स्वास्थ्य महकमे की सेहत के लिए बेहतर होगा.वैसे बिना बड़ी घटना के नींद से नहीं जागने की यहाँ पुरानी आदत है.आगे देखना दिलचस्प होगा की इस मामले में स्वास्थ्य महकमा और जिला प्रशासन इसबार कैसी और कितनी ईमानदार तेजी दिखाता है.सहरसा टाईम्स फलाफल पर पूरी तरह नजर जमाये हुए है।

फ़रवरी 08, 2013

आखिर मासूम को न्याय देने में क्यों हो रही है देरी

17 दिसंबर को महज 10 वर्षीय दलित बच्ची की सामूहिक दुष्कर्म के बाद गर्दन मरोड़कर हुयी ह्त्या मामले में अभीतक पुलिसिया जांच का नतीजा ढ़ाक के तीन पात ।।।।।।।।।।। 
बीते 17 दिसंबर को कोसी दियारा इलाके के सिमरी बख्तियारपुर थाना क्षेत्र के बेलवारा पुनर्वास गाँव में दस वर्षीय बच्ची की सामूहिक दुष्कर्म के बाद ह्त्या मामले में सहरसा पुलिस ना केवल हीला---हवाली करती दिख रही है बल्कि इस मामले को पूरी तरह से दबाने और इन्साफ का सर कलम करने में जुटी हुयी है।मृतक बच्ची के परिजन का कहना है की घटना में शामिल गांधी यादव,बालेश्वर मुखिया और लखन मुखिया तीन लोगों का उनलोगों ने नाम भी दिया है लेकिन पुलिस के बड़े अधिकारी पैसे खाकर आरोपियों को बचाने में जुटे हुए हैं।बीते दिनों राज्य अनुसूचित जाति आयोग की टीम विभिन्य मामलों की तफ्तीश में सहरसा पहुंची थी।टीम सहरसा परिसदन में ठहरी थी जहां पीड़ित परिवार ने पहुंचकर आयोग के सामने अपनी पीड़ा से उन्हें अवगत कराया।आयोग ने संज्ञान लेते हुए पीड़ित परिवार को इन्साफ दिलाने का भरोसा दिलाया है।
  हम आपसे एक सवाल करना चाहते हैं।पुरे देश के साथ---साथ दिल्ली की दामिनी के साथ हमें भी सहानुभूति है लेकिन जिसतरह से पूरा देश उसके लिए खडा हो गया,आखिर सुधा के लिए बड़ी भीड़ की बात तो छोडिये, सहरसा टाइम्स को छोड़कर कोई भी सामने क्यों नहीं आया।क्या सुधा दलित परिवार की एक गरीब की बेटी है जहां से सियासतदान वोट दारु के एक बोतल में खरीद लेते हैं,इसलिए किसी के दिल में ना तो कोई हरकत हुयी और ना ही कहीं से कोई आवाज ही आई। मृतक बच्ची के परिजन का कहना है की घटना में शामिल गांधी यादव,बालेश्वर मुख्या और लखन मुखिया तीन लोगों का उनलोगों ने नाम भी दिया है लेकिन पुलिस के बड़े अधिकारी पैसे खाकर आरोपियों को बचाने में जुटे हुए हैं।जाहिर तौर पर परिजन पुलिस को मुकम्मिल कटघरे में खडा कर रहे हैं।
उपाध्यक्ष डॉक्टर योगेन्द्र पासवान
राज्य अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष डॉक्टर योगेन्द्र पासवान ने इस मामले को काफी गंभीरता से लिया और तुरंत सिमरी बख्तियारपुर के एस.डी.पी.ओ सत्यनारायण प्रसाद को बुलाया और जमकर उनका क्लास लिया। सहरसा टाईम्स को इन्होनें बताया की उन्होनें इस पुलिस अधिकारी को एक माह का समय दिया है जिसमें उनको दोषियों को गिरफ्त में लेकर सलाखों के भीतर भेजना होगा।अगर इसमें कहीं से कोई कोताही हुयी तो वे सेक्शन 4 के तहत उनपर कारवाई की अनुशंसा राज्य सरकार से करेंगे।

हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर काम करने वाले सहरसा पुलिस अधिकारी के रवैये को लेकर कुछ भी मत पूछिये।इस गंभीर मामले को लेकर सिमरी बख्तियारपुर के एस.डी.पी.ओ सत्यनारायण प्रसाद कहते हैं की पीड़ित के परिजनों ने जिन लोगों के नाम दिए हैं,तफ्तीश में उनके विरुद्ध साक्ष्य नहीं मिल प् रहा है।वैसे वे गहन जांच में जुटे हैं।जल्द ही इस जघन्य मामले पर से पर्दा उठ जाएगा।
असमय परलोक पहुँच चुकी मासूम सुधा हुक्मरानों से लेकर समूचे तंत्र को ना केवल कटघरे में खड़ा कर रही है बल्कि यह सवाल भी करती नजर आ रही है की आखिर उसे मौत की नींद क्यों सुला दिया गया और अब आखिर उसे इन्साफ कौन,कब और कैसे दिलाएगा।सहरसा टाईम्स ने उसे इन्साफ दिलाने की कोशिश शुरू की है।आगे रब जाने।

फ़रवरी 07, 2013

शिकागो में हिन्द का परचम लहरा रही सहरसा की बेटी का हुआ सम्मान

रीता सिंह, शिकागो (अमेरिका)
सहरसा टाईम्स: शिकागो में हिन्द का परचम लहरा रही सहरसा की बेटी रीता सिंह का आज अपने घर आने पर सहरसा में ना केवल उनका भव्य सम्मान हुआ बल्कि कोसी की बेटी को अपने बीच पाकर यहाँ के लोग जद से भाव विह्वल भी हुए।बताना लाजिमी है की सहरसा जिले के भरौली गाँव की रहने वाली रीता सिंह फेडरेशन ऑफ इन्डियन एशोसियेशन शिकागो(अमेरिका)की चुनी गयी पहली महिला अध्यक्षा हैं।शिकागो से अपने पति और बेटी के साथ सहरसा पहुंची रीता सिंह का सहरसा जिला मुख्यालय स्थित विजया होटल में आज शाम भव्य अभिनन्दन किया गया।
-यह नजारा है सहरसा के विजया होटल का। देखिये कोसी की बेटी रीता सिंह का यहाँ पर किस तरह से अभिनन्दन किया जा रहा है।फैशन डिजायनिंग इंजीनियर रीता सिंह अपने सॉफ्टवेयर इंजीनियर पति संजीव कुमार सिंह के साथ मिलकर शिकागो में एस.आर इंटरनेशनल इंक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट आई.टी इन्फ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट और आई.टी एजुकेशन के लिए काम करती हुयी आज फेडरेशन ऑफ इन्डियन एशोसियेशन शिकागो(अमेरिका) की पहली महिला अध्यक्षा बनकर अपने देश के साथ--साथ सूबा बिहार और अपने कोसी इलाके का मान बढ़ाया है।जिले के भरौली गाँव की रहने वाली रीता सिंह का भव्य अभिनन्दन देखिये कितनी गर्मजोशी से स्थनीय विजया होटल में किया जा रहा है।
 कोसी प्रमंडल के आयुक्त विमलानंद झा,प्रसिद्ध चिकित्सक गोपाल शरण सिंह,कई वरीय अधिकारी सहित शहर के कई गण्यमान लोग इस अभिनन्दन समारोह के गवाह बने।रीता सिंह और आयुक्त ने दीप प्रज्ज्वलित करके इस कार्यक्रम की शुरुआत की।इस मौके पर रीता सिंह को मखान का माला पहनाया गया और अनगिनत उपहार देकर उन्हें सम्मानित किया गया।इस सभा को आयुक्त सहित कई लोगों के साथ खुद  रीता सिंह ने भी संबोधित किया। 
रीता सिंह से सहरसा टाईम्स ने खास बातचीत की।
रीता सिंह
सहरसा टाईम्स ने उनके पद को लेकर की उसका क्या--क्या फंक्शन हैं और इतनी ऊँचाई पर पहुँचने का श्रेय वह किसे देती हैं और कोसी क्षेत्र के लोगों को क्या सन्देश देना चाहती हैं,जैसे कई सवाल किये जिसका उन्होनें बड़ी बेबाकी से जबाब दिया।रीता ने कहा की अमेरिका में अनगिनत संगठन और कमिटी हैं जिसमें फेडरेशन ऑफ इन्डियन एशोसियेशन शिकागो(अमेरिका),सभी की अम्ब्रेला बॉडी है। भारत और अमेरिका के बीच विभिन्य मुद्दों के लिए यह सेतु का काम करती है। उन्होनें अपनी उपलब्धि को लेकर कहा की उन्होने एक छोटा सा सपना देखा था जिसमें उनके पति,मायके और ससुराल वालों ने भरपूर साथ और मुश्ते ऊर्जा दी। 
उन्होनें कहा की मेरी उपलब्धि का सारा श्रेय सभी को जाता है। रीता सिंह ने अपने इस खैर --मकदम को लेकर कहा की वे हर साल अपनी जन्म भूमि पर आती रही हैं लेकिन इसबार उन्हें इतना मान--सम्मान और प्यार मिलेगा,ऐसा उन्होनें सपने में भी नहीं सोचा था।रीता सिंह ने कोसिवासियों को सन्देश देते हुए कहा की दुनिया में कुछ भी असंभव और नामुमकिन नहीं है। आगे बढ़ने के लिए अगर दिल से ठान लिया तो समझिये शिखर उनके इन्तजार में खड़ा है।बताना लाजिमी है की रीता सिंह के पिता जे.बी सिंह जहां सेवानिवृत सहायक निदेशक इंटेलिजेंस ब्यूरो,गृह मंत्रालय,भारत सरकार अभी ज़िंदा है वहीँ दादा स्वर्गीय शिवजी प्रसाद सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे।
जाहिर तौर पर आज सहरसा के लिए गौरव का दिन था,क्यों की आज दूर देश में अपने देश का नाम रौशन कर रही बेटी अपने घर आई थी।सहरसा का कोटि--कोटि आज पुलकित हो रहा था।रीता के नाम का शौर्य और उनकी कीर्ति का डंका चहुँदिश ताकयामत बजता रहे,सहरसा टाईम्स दिल से दुआ करता है।रीता सिंह का पूरा परिवार खुशियों से तर रहकर देश का नाम रौशन करता रहे।दुआ।।।।खालिश ईमानदार दुआ।

फ़रवरी 06, 2013

थाना जाने में डर लगता है साहेब

21 वीं सदी में विभिन्य थानों की पुलिस से अभी भी खौफ खाते हैं गरीब और निरीह लोग.......

21 वीं सदी में एक तरफ जहां लोग चाँद पर जमीन की खरीददारी करने लगे हैं तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाके के निरीह और गरीब लोग इन्साफ के लिए आज भी थाना जाने से डरते और कतराते हैं।सहरसा टाईम्स आज एक ऐसी खबर से आपको रूबरू कराने जा रहा है जिसे देख--पढ़कर एकबार आपको यकीन ना हो लेकिन यह सच की ऐसी कहानी है जो पुलिस की पुरानी और डरावनी छवि को सिद्दत से उजागर कर रही है।सहरसा के बसनही थाना के सह्सोल गाँव के रहने वाले एक गरीब ब्राह्मण को गाँव के ही कुछ दबंग लोगों ने मारपीट कर बुरी तरह से जख्मी कर दिया।बेचारा यह बेबस और लाचार पीड़ित थाने में फ़रियाद करने की बजाय सीधा सहरसा एस.पी के दफ्तर इसलिए चला आया की क्योंकि उन्हें थाना जाने में डर लगता है।इनकी मानें तो थाने में फ़रियाद सुनाने के बाद पुलिसवाले रूपये लेते हैं तब उनकी सुनवाई होती है।एस.पी को अपना दुखड़ा सुनाने और उनसे इन्साफ मांगने आये यह प्रौढ़ पीड़ित एस.पी कार्यालय के बाहर बिस्तर लगाकर इस उम्मीद में लेट गए की बड़े हाकिम को उनपर दया आएगी और वे उन्हें न्याय देने उनके पास आयेंगे।लेकिन यहाँ भी उनकी किस्मत उनको दगा दे गगी।एस.पी साहब किसी काम के सिलसिले में जिला के किसी अन्य जगह पर थे।इधर एस.पी कार्यालय के बाहर सहरसा टाईम्स की मौजूदगी की भनक जैसे ही सदर थाना पुलिस को लगी की उसने तुरंत पीड़ित को यहाँ से उठाया और उन्हें लेकर अस्पताल के लिए चलते बने। 
एस.पी कार्यालय के ठीक सामने सड़क पर बिस्तर लगाए यह जख्मी पीड़ित शिवेन्द्र रॉय हैं। इनके चेहरे और शरीर पर कई गहरे जख्म हैं। सह्सोल गाँव के रहने वाले इस पीड़ित की यह गत गाँव के ही एक दबंग पोस्टमास्टर और उनके गुर्गों ने बनायी है।ये जनाब अपने क्षेत्र के बसनही थाना इन्साफ के लिए फ़रियाद लेकर इसलिए नहीं गए क्योंकि उन्हें थाना जाने में डर लगता है।ये बता रहे हैं की थाना में पीड़ित की हैसियत देखकर पुलिस वाले उनसे  रूपये वसूलते हैं।वे गरीब हैं और उनके पास पैसा नहीं है इसलिए वे इन्साफ के लिए सीधे बड़े हाकिम के पास चले आये हैं।देखिये बिस्तर लगाये इस पीड़ित को।सहरसा टाईम्स को किस तरह से वे अपनी विपदा सूना रहे हैं।
सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे
इस वाकये को लेकर सहरसा टाईम्स ने जब सहरसा के सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे से बात की तो उन्होनें स्वीकार किया की बसनही थाने की पुलिस के डर से वे यहाँ चले आये।लेकिन उन्होनें इन्हें समझा---बुझाकर थाना भेज दिया है।इनके बयान से यह जाहिर हो रहा है की पुलिस का अभी भी गरीब और निरीह जनता में बड़े पैमाने पर भय व्याप्त है।वैसे इनकी नजर में अंग्रेज के समय की पुलिस का खौफ अब लोगों में नहीं है।
पुलिस लाख दावे कर ले की पुलिस आमलोगों की दोस्त और सदैव उसकी मदद को तत्पर रहती है लेकिन जमीनी सच्चाई अभीतक इससे उलट है।आज भी ग्रामीण इलाके में लोग पुलिस का साया भी उनपर ना पड़े,वे इस जुगात में रहते हैं।जाहिर तौर पर पुलिस की छवि अभी भी मददगीर  पुलिस की जगह वसूली पुलिस की बनी हुयी है।

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।