फ़रवरी 06, 2013

थाना जाने में डर लगता है साहेब

21 वीं सदी में विभिन्य थानों की पुलिस से अभी भी खौफ खाते हैं गरीब और निरीह लोग.......

21 वीं सदी में एक तरफ जहां लोग चाँद पर जमीन की खरीददारी करने लगे हैं तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाके के निरीह और गरीब लोग इन्साफ के लिए आज भी थाना जाने से डरते और कतराते हैं।सहरसा टाईम्स आज एक ऐसी खबर से आपको रूबरू कराने जा रहा है जिसे देख--पढ़कर एकबार आपको यकीन ना हो लेकिन यह सच की ऐसी कहानी है जो पुलिस की पुरानी और डरावनी छवि को सिद्दत से उजागर कर रही है।सहरसा के बसनही थाना के सह्सोल गाँव के रहने वाले एक गरीब ब्राह्मण को गाँव के ही कुछ दबंग लोगों ने मारपीट कर बुरी तरह से जख्मी कर दिया।बेचारा यह बेबस और लाचार पीड़ित थाने में फ़रियाद करने की बजाय सीधा सहरसा एस.पी के दफ्तर इसलिए चला आया की क्योंकि उन्हें थाना जाने में डर लगता है।इनकी मानें तो थाने में फ़रियाद सुनाने के बाद पुलिसवाले रूपये लेते हैं तब उनकी सुनवाई होती है।एस.पी को अपना दुखड़ा सुनाने और उनसे इन्साफ मांगने आये यह प्रौढ़ पीड़ित एस.पी कार्यालय के बाहर बिस्तर लगाकर इस उम्मीद में लेट गए की बड़े हाकिम को उनपर दया आएगी और वे उन्हें न्याय देने उनके पास आयेंगे।लेकिन यहाँ भी उनकी किस्मत उनको दगा दे गगी।एस.पी साहब किसी काम के सिलसिले में जिला के किसी अन्य जगह पर थे।इधर एस.पी कार्यालय के बाहर सहरसा टाईम्स की मौजूदगी की भनक जैसे ही सदर थाना पुलिस को लगी की उसने तुरंत पीड़ित को यहाँ से उठाया और उन्हें लेकर अस्पताल के लिए चलते बने। 
एस.पी कार्यालय के ठीक सामने सड़क पर बिस्तर लगाए यह जख्मी पीड़ित शिवेन्द्र रॉय हैं। इनके चेहरे और शरीर पर कई गहरे जख्म हैं। सह्सोल गाँव के रहने वाले इस पीड़ित की यह गत गाँव के ही एक दबंग पोस्टमास्टर और उनके गुर्गों ने बनायी है।ये जनाब अपने क्षेत्र के बसनही थाना इन्साफ के लिए फ़रियाद लेकर इसलिए नहीं गए क्योंकि उन्हें थाना जाने में डर लगता है।ये बता रहे हैं की थाना में पीड़ित की हैसियत देखकर पुलिस वाले उनसे  रूपये वसूलते हैं।वे गरीब हैं और उनके पास पैसा नहीं है इसलिए वे इन्साफ के लिए सीधे बड़े हाकिम के पास चले आये हैं।देखिये बिस्तर लगाये इस पीड़ित को।सहरसा टाईम्स को किस तरह से वे अपनी विपदा सूना रहे हैं।
सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे
इस वाकये को लेकर सहरसा टाईम्स ने जब सहरसा के सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे से बात की तो उन्होनें स्वीकार किया की बसनही थाने की पुलिस के डर से वे यहाँ चले आये।लेकिन उन्होनें इन्हें समझा---बुझाकर थाना भेज दिया है।इनके बयान से यह जाहिर हो रहा है की पुलिस का अभी भी गरीब और निरीह जनता में बड़े पैमाने पर भय व्याप्त है।वैसे इनकी नजर में अंग्रेज के समय की पुलिस का खौफ अब लोगों में नहीं है।
पुलिस लाख दावे कर ले की पुलिस आमलोगों की दोस्त और सदैव उसकी मदद को तत्पर रहती है लेकिन जमीनी सच्चाई अभीतक इससे उलट है।आज भी ग्रामीण इलाके में लोग पुलिस का साया भी उनपर ना पड़े,वे इस जुगात में रहते हैं।जाहिर तौर पर पुलिस की छवि अभी भी मददगीर  पुलिस की जगह वसूली पुलिस की बनी हुयी है।

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