सड़कें और फ़्लाईओवर से सूरत बदलती है सीरत नहीं
बिहार में बदहाल शिक्षा को अभी भी लगाया जा रहा है घुन्न
प्राथमिक विद्यालय से लेकर पीजी तक हो रहा है मजाक
शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव आनंद किशोर,
शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी और सूबे के मुखिया नीतीश बाबू एसी कमरे से बाहर निकलें
शिक्षा में सुधार के लिए रियाज की है जरुरत
बड़े शिक्षाविदों और शिक्षा के जानकारों से बहस------विमर्श की है जरुरत
बिहार की गिरती शिक्षा व्यवस्था की सर्जरी कर रहे हैं
देश के जाने--माने वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह---->>बिहार तपोभूमि और मनीषियों का गढ़ रहा है ।ज्ञान की अविरल नदियां यहां बहती रही हैं ।नालन्दा विश्वविद्यालय,पटना विश्व विद्यालय और मिथिला विश्वविद्यालय सहित तमाम विश्वविद्यालयों का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है ।गुरुकुल की यहां की परम्परा आज भी विश्व को गुदगुदा रहा है ।फिर क्या वजह है की प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा में ना केवल हम फिसड्डी साबित हो रहे हैं बल्कि जिम्मेवार लोगों पर इतने दाग लग रहे हैं,जो कई जन्मों तक छूटने वाले नहीं है ।विषय बेहद गंभीर है इसलिए इसपर चर्चा पारदर्शी,तटस्थ होने के साथ गुणों से तर होने चाहिए ।
पहले हम प्राथमिक से लेकर माध्यमिक विद्यालय की चर्चा कर रहे हैं । हम अपने इस आलेख में किसी भी चीज को बानगी या नजीर नहीं बना रहे हैं ।यह खुला श्वेत पत्र है जो सभी पर लागू होगा ।
आप बिहार की किसी भी जिले में चले जाएँ,वहाँ आपको थोक में ऐसे प्राथमिक विद्यालय मिलेंगे जो पेड़ के नीचे, किसी मवेशी घर या फिर किसी दालान पर संचालित होता मिल जाएगा ।इन विद्यालयों के लिए शिक्षक भी बहाल है लेकिन वे कैसी शिक्षा दे रहे होंगे,आप खुद से समझने की कोशिश करें ।यूँ भवन वाले प्राथमिक विद्यालय भी हैं ।गुरूजी वहाँ भी तैनात हैं ।अब यहां गरीबों का एमडीएम यानि भोज की भी व्यवस्था है ।अब देखिये एक जगह मस्तिष्क की खुराक के साथ--साथ भोजन की भी व्यवस्था है ।हांलांकि यहां सरकार ने थोड़ी चालाकी की है ।कुछ बिना भवन वाले विद्यालय को नजदीक के भवन वाले विद्यालय से सिर्फ खाने के लिए जोड़ दिया है । जो बच्चे अन्यत्र बेछप्पर पढ़ रहे हैं,उनका सारा ध्यान खाने पर है ।वे क्या ख़ाक पढ़ेंगे ?
सरकार की यह चालाकी बच्चों के भविष्य को रौंद रहा है ।यही नहीं कुछ प्राथमिक विद्यालय को मध्य और कुछ मध्य विद्यालय को सरकार ने उच्च विद्यालय में अपग्रेड किया है लेकिन किसी भी विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक नहीं हैं ।यह शिक्षा का उपहास नहीं तो और क्या है ।आप सिर्फ अमेरिका और ब्रिटेन की प्राथमिक और मध्य विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था को देखें तो,वहाँ तराशे हुए शिक्षक उच्चतम पारिश्रमिक पर रखे गए हैं ।शिक्षा का एक व्यवस्थित रूटीन है ।वहाँ से बच्चे बहुत कुछ सीखकर निकलते हैं लेकिन हमारे यहां के बच्चे जो सामाजिक और सांस्कारिक मूल्य है उसे भी विद्यालय से गंवाकर निकलते हैं ।
मैट्रिक तक की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से गडमड है ।कई दशकों से नामचीन माध्यमिक अथवा उच्च विद्यालयों में कक्षाएं नहीं लगती हैं ।कम्प्यूटर और जिम के सामान के साथ--साथ संगीत के वाद्य यंत्र बिना इस्तेमाल के बर्बाद हो गए ।बस स्कूल में एडमिशन और परीक्षाएं होती हैं ।आप सर्वे करा लें किसी विषय में थोक में शिक्षक मिलेंगे,तो किसी विषय में वर्षों से शिक्षक नहीं हैं ।
अब आईये उच्चतर शिक्षा यानि इंटर से पीजी तक ।बिहार के नामी कॉलेज पटना कॉलेज, साइन्स कॉलेज,बीएन कॉलेज,मगध विश्विद्यालय के कई कॉलेज,भागलपुर,छपरा के कई कॉलेज,दरभंगा के थोक में कॉलेज और बीएन मंडल विश्विद्यालय के कॉलेज ।आप सर्वे करा लें की कॉलेज में विषयवार कितने प्रोफेसर,रीडर, लेक्चरर और डिमोस्ट्रेटर हैं ।रही बात प्रिंसिपल की तो वे तो हाकिम ठहरे ।कितनी बार ताल ठोंकें हम ।लेकिन रहा नहीं जाता है ।हम ताल ठोंककर कहते हैं की इन कॉलेजों में से अधिकांशतः कॉलेज में कभी भी विषय वार कक्षा नहीं लगती है ।सबसे बुरी स्थिति तो बी एन मंडल विश्वविद्यालय की है जहां के कॉलेज में जिस विषय के शिक्षक वर्षों से नहीं हैं वहाँ भी छात्र--छात्राएं उस विषय की डिग्री धड़ल्ले से ले रही हैं ।खासकर लड़कियों का कॉलेज तो पिकनिक स्पॉट में तब्दील है ।लड़कियों की सुविधाओं के लिए खरीदी गयी गाड़ी सड़ गयी ।लेकिन गाड़ी कॉलेज से कभी बाहर निकली ही नहीं ।आप अधिकाँश कॉलेज घूम जाएँ ।लगभग सभी कॉलेज में प्रयोगशाला है ।लेकिन वह प्रयोगशाला कभी खुलता ही नहीं है ।आखिर शिक्षा मद में पानी की तरह पैसे बहाये जा रहे हैं लेकिन ये पैसे बहकर किस समुद्र या नदी में मिल रहे है,इसे भी जानना होगा ।हंसी तो तब आती है और बेहद दुःख भी होता है की अंग्रेजी विषय की डिग्री भी बिना गुरु के यहां मिल रही है ।जिस कॉलेज में अंग्रेजी विषय के प्रोफ़ेसर नहीं हैं,उस कॉलेज में सैकड़ों बच्चे अंग्रेजी विषय से ऑनर्स की डिग्री ले रहे हैं ।
फिर मेडिकल,इंजिनियरिंग,एग्रीक्लचर सहित अन्य तकनीकी शिक्षा पर हम ज्यादा ऊँगली उठाना नहीं चाहते ।मसलन बीबीए,बीसीए और बीएड के एडमिशन में तो इधर--उधर है लेकिन यहां पर कमोबेस पढ़ाई होती है ।
समस्या तो रख दी हमने माननीय । लेकिन समाधान कैसे होगा ?देश और राज्य को बढ़िया शिक्षा मंत्री नहीं मिला ।योग्य राज्यस्तरीय शिक्षा अधिकारी नहीं मिले ।और मुख्यमंत्री,उप मुख्यमन्त्री बाप रे बाप ।
खैर आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे हुक्मरान और नौकरशाह का जमीर जाग जाए,तो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है ।जब जागो,तब सवेरा ।देश में एक से क्रांतिकारी शिक्षाविद्,समाज के जानकार,नैतिक मूल्यों के पारखी,ज्ञानी न्यायाधीश,संविधान के विशेषज्ञ और चोटी के पत्रकार भी मौजूद हैं ।सरकार की अगर मंशा सही है तो ""शिक्षा में चिर सुधार""के लिए बिहार में सेमिनार कराये जाएँ जिसमें व्यापक बहस--विमर्श हो ।कोलतार से सड़कें चौड़ी करने,पुल--पुलिया बनाने,फ्लाईओवर और बड़ी--बड़ी इमारते खड़ी करने से सिर्फ दृस्टिगत विकास सम्भव है ।राज्य या देश असली विकास शिक्षा से ही संभव है ।जागो सरकार जागो ।