अक्तूबर 28, 2016

गैर भी कई दफा खून के रिश्ते पर पड़े हैं भारी

रिश्ते निभाना बोझ नहीं जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य हर रिश्ते की होती है अपनी मर्यादा रिश्ते निभाने में दिल करता है कई समझौते 
खून के रिश्ते से ईतर गैर भी बन सकते हैं रिश्तेदार 
गैर कई दफा खून के रिश्ते पर पड़े हैं भारी
देश के जाने--माने वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह का रिश्ते पर दो टूक---->>

जीवन में रिश्ते की महानतम अहमियत है । ज्यादातर खून के रिश्ते होते हैं जो मेड़ और मर्यादा के दायरे में पुष्पित--प्लववित होते हैं । मानव सभ्यता के विकास के बाद रिश्ते का जन्म हुआ ।विश्व के लगभग सभी देशों में रिश्तों की फसल उगती है ।लेकिन विश्व में सबसे सारगर्भित,नियम,दायरा,रिवायत,विभिन्न तरह की बंदिशें और वर्जनाओं के साथ रिश्ते भारतीय संस्कृति के अंदर हैं ।माता--पिता से शुरू हुआ रिश्ता आगे "रिश्तों के संसार"की शक्ल ले लेता है ।मसलन एक ही माता--पिता को बानगी बनाएं तो वहाँ से बेटा--बेटी,पुतोहू--दामाद,नाना---नानी, मौसा--मौसी,बुआ--फूफा,चाचा---चाची,फिर उनके बच्चों से जुड़े रिश्ते ।यह सच है की खून के रिश्ते में अपेक्षाएं,उम्मीदें और गर्माहट के साथ--साथ फर्ज जुड़े होते हैं ।हर रिश्ता अपनी जगह पर ना केवल ओजवान होता है बल्कि मजबूत भी होता है ।
लेकिन तेजी से बदलते सामजिक परिवेश,जीवन की आपाधापी और अंधदौड़ में रिश्ते अपना अर्थ खोने से लगे हैं ।महानगर की चकाचौंध में रिश्ते बड़े बौने और अर्थहीन से हो गए हैं ।सगे रिस्तेदार एक दूसरे की जरूरत की घड़ी में मदद को तैयार नहीं मिलते हैं ।ज्यों--ज्यों समाज का विकास कोलतार की सड़कों,फ्लाई ओवर,बड़ी--बड़ी ईमारत,कीमती गाड़ी,हवाई जहाज और फाईव स्टार होटल से लेकर स्वीमिंग पुल के दायरे में होता गया है ।रिश्ता कहीं खोता चला गया है ।पहले संयुक्त परिवार हुआ करता था,जहां नियमों के मायने थे ।अब एकल परिवार होने लगे जिसमें बीबी भी नौकरी पेशा होती गयी और बच्चों का लालन--पालन आया करने लगी ।रिश्ता धीरे--धीरे व्यक्ति से दूर जाने लगा ।
ग्रामीण परिवेश को भी अब महानगर की हवा लग गयी है ।मुख़्तसर में कहूँ तो ईमानदारी से कोई भी रिश्ता अभी के दौर में पाक--साफ नहीं रह गया है ।मेरे कहने का यह अर्थ कतई नहीं है की आज के दौड़ में अच्छे लोग नहीं हैं और कुछ हद तक पाक--साफ़ रिश्ता नहीं जीया जा रहा है ।मुट्ठी भर ऐसे इंसान बचे हैं,जो सच्चे तौर--तरीके से रिश्ते को जी रहे हैं और सिद्दत से उसे निभा भी रहे हैं ।
आप कुछ दशकों का आपराधिक इतिहास उठाकर देखिये ।आपको पता चल जाएगा की रिश्ते के पाये किस कदर दरके हैं ।अब तो पिता--पुत्री,भाई--बहन के रिश्ते को भी लोग शक की निगाह से देखते हैं ।कुछ घटनाएं ऐसी घटित हुयी हैं,जो इस बात को पुरजोर हवा दे रही है । चचेरे,ममेरे,फुफेरे या अन्य दूर के रिश्ते तो बेहद दरक चुके हैं ।
महानगर का आलम तो इस कदर गिर चुका है की कुछ पुरुष दोस्त मिलकर टॉस करके रात भर के लिए अपनी बीबी बदल लेते हैं ।आप महानगर में गौर से देखें की बच्चों की परवरिश किस तरह से हो रही है ।अमीर लोग और पैसे कमाने की भूख में खुद को झोंके हुए हैं ।उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा है की उनकी बीबी और बच्चे क्या गुल खिला रहे हैं ।आप गौड़ करें की महानगर में बच्चियां समय से पहले क्यों और कैसे जवान हो रही हैं ।आखिर क्या हो गया है हमारी सभ्यता और संस्कृति को ? आखिर इतना ओछा पतन हमारा क्यों हो रहा है ।
महानगर की तरह गाँव भी अब इस बीमारी की गिरफ्त में है ।कम उम्र में ही बच्चे वह कर गुजर रहे हैं जिसकी कल्पना भी मुश्किल है ।
जब खून के रिश्ते इतने दाग से पट गए हों तो और बांकि रिश्तों की बात हम बेहद हिम्मत जुटाकर और तटस्थ पड़ताल के आधार पर आगे करने की कोशिश कर रहे हैं ।
हमारे पास कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें हमने देखा है की एक गैर जिसकी जाति भी समान नहीं है,उसने किसी से रिश्ता बनाया है,तो,वह सगे से बढ़कर और बेहद डूबकर ।किसी की मदद की है तो बिना स्वार्थ के और बहुत कुछ लुटाकर ।हमने गैर के बच्चों को पढ़ा--लिखाकर आईएएस, आईपीएस,डॉक्टर,इंजीनियर सहित कई बड़े ओहदे पर पहुंचाने वाले शेर दिल गैर को देखा है । गैर रिश्ते की ताकत को कभी आंका ही नहीं गया है ।चूँकि इसके लिए कोई सामाजिक मानक नहीं बने हैं ।वर्ना हमने ऐसे गैर देखें हैं जिसने की अपनी जान दांव पर लगाकर औरों की ना केवल जान बचाई है बल्कि उनका मान और सम्मान भी बचाया है ।गैर रिश्ते में भी अकूत अपनापन, प्यार,मर्यादा और संचित संस्कार में डूबकर रिश्ता जीने का माद्दा होता है ।लेकिन ऐसे रिश्तों को सामाजिक स्वीकृति नहीं है ।समय के साथ जिस तरह से सामाजिक बदलाव हो रहे हैं और मान्यताओं के साथ--साथ रिवायतें बदल रही हैं, ठीक उसी तरह से गैर रिश्ते की गर्माहट और उसके अधिकार को भी स्वीकारना चाहिए ।खून के रिश्ते में हुए पाप को हम कभी पुण्य की संज्ञा नहीं दे सकते ।लेकिन अगर गैर रिश्ते में आसमानी वजूद कायम हो,तो उसे पुण्य के दर्जे के साथ--साथ नवाजा भी जाना चाहिए ।हमेशा याद रखिये जीवन के इस दौर में कई दफा गैर,अपनों यानि खून पर भारी रहे हैं ।गैर को छोटा समझने की आदत बदलिये ।कई खून के रिश्तेदारों ने अपनों को ठुकराया है,तो,गैर ने ना केवल पनाह दी है बल्कि उन्हें ईज्जत की जिंदगी जीने का संबल और हुनर भी दिया है ।हमने गैर को अपनों पर कई दफा भारी होते देखा है ।मेरी समझ से जो रिश्ते की गरिमा को समझे और फकत उसमें प्यार का भाफ दे ।जो दर्द,टीस, सीलन और चुभन से ईतर दिल में ख़ुशी और सुकून की दरिया बहाये,वह गैर ही सही,लेकिन असली रिस्तेदार पर ना केवल वह  भारी है बल्कि वही असली रिस्तेदार भी है ।

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