जुलाई 31, 2015

बिकने---लूटने से बचा बचपन..........

मुकेश कुमार सिंह की कलम से-------आज सहरसा रेल पुलिस(GRP)को एक बड़ी कामयाबी मिली.रेल पुलिस ने चाईल्ड लाईन संस्था की गुप्त सूचना पर सुबह करीब साढ़े आठ बजे सहरसा रेलवे स्टेशन पर खड़ी जनसेवा एक्सप्रेस जो सहरसा से पंजाब जाती है पर सवार एक दलाल सहित आठ मासूम बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लिया.लूटने से बचे इन बच्चों में से सात पुर्णिया जिले के रहने वाले हैं जबकि एक बच्चा मधेपुरा जिले का रहने वाला है.गिरफ्त में आया दलाल इन तमाम बच्चों को,काम कराने के नाम पर पंजाब ले जा रहा था.
हम तो पेट की भूख मिटाने की जंग लड़ रहे हैं.हमें सपने देखने की आजादी नहीं है.जी हाँ! कोसी--सीमांचल सहित पूर्वोत्तर बिहार इलाके में बच्चे कच्ची उम्र में ही पढाई कर ऊँची मंजिल पाने के सपनों को कुचलकर कुछ काम कर रोजी--रोटी के इंतजाम में जुट जाते हैं.आंकड़े गवाह हैं की मानव तस्करों की गिद्ध दृष्टि इस इलाके प़र लगी रहती है,जहां मजबूर माँ--बाप नाना तरह के शब्जबाग के झांसे में आकर अपने बच्चों का सौदा मानव सौदागरों से करने से भी गुरेज नहीं करते हैं.रेल थाना में लाये गए ये बच्चे पंजाब के लुधियाना ले जाए जाने के दौरान आज जनसेवा एक्सप्रेस से बरामद किये गए हैं.दलाल इन्हें बहला--फुसलाकर लुधियाना ले जा रहे थे.यह सच है की जिन मासूम हाथों में कलम--किताब होनी चाहिए वह मज़बूरी में परदेश,वह भी कमाने के लिए जा रहे हैं.देखिये इन मासूमों की आँखों को.ये रो रहे हैं.बिलख और सुबक रहे हैं.इनकी विवशता व्यवस्था और हुक्मरानों से कई सवाल एक साथ कर रहे हैं.गरीबी क्या होती है ज़रा इनकी बेजा चिथड़ों में लिपटी जिन्दगी में उतरकर देखिये.य़े बच्चे कह रहे हैं की वे पढ़ना चाहते हैं लेकिन मज़बूरी में कमाने जा रहे हैं.घर में अनाज नहीं है.जाहिर तौर पर ये मासूम अपनी इच्छा को कुचलकर परदेश जा रहे थे.


रेल पुलिस की गिरफ्त में आया दलाल मोहम्मद अयूब खुद को निर्दोष बताता है.पूर्णिया जिले का रहने वाला यह दलाल कह रहा है की उसके साथ महज दो बच्चे हैं,जो पढ़ने के लिए लुधियाना जा रहे हैं.इसकी मानें तो पुलिस अधिकारी ने जबरन उसे गिरफ्त में ले लिया है.इधर रेल थानाध्यक्ष संतोष कुमार घटना की पूरी जानकारी देते हुए कह रहे हैं की गिरफ्त में आया दलाल आठ बच्चों को लुधियाना ले जा रहा था लेकिन चाइल्ड लाईन की सूचना के बाद यह कार्रवाई सम्भव हो पायी.अधिकारी इस कामयाबी से गदगद हैं और आगे भी उचित कारवाई का भरोसा दे रहे हैं.
हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले इस इलाके में गरीबी बेकारी,भुखमरी, बीमारी और तरह--तरह की समस्याएं सुबह की पहली किरण के साथ ही मुंह बाए खड़ी रहती है.इस इलाके में गरीबी कुलाचें भर रही है.खासकर के पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के भीतर की स्थिति तो और भी नाजुक और कलेजे को चाक करने वाली है.पेट की आग बुझाना यहाँ पहाड़ खोदकर दूध निकाले के समान है.ऐसे में गरीब हर वक्त किसी तारणहार की बाट जोहते नजर आते हैं.इस लाचारी में ये गरीब माँ--बाप मानव तस्कर के झांसे में आ जाते हैं और महज कुछ रूपये की लालच में अपने कलेजे के टुकड़ों को उनके हाथों बेच देते हैं दो से दस हजार के बीच की रकम देकर दलाल इन गरीब लोगों के मासूमों को खरीदकर दूसरे प्रांत ले जाते हैं जहां ऊँची कीमत पर उन बच्चों को बेचकर मालामाल होते हैं.
कई ऐसे मामले आये हैं की ये दलाल हर साल बच्चों को अलग--अलग कीमत में अलग--अलग जगहों पर बेचते हैं.पिछले दस वर्षों के दौरान कोसी इलाके के 25 हजार से ज्यादा बच्चों को दलाल खरीदकर दूसरे प्रांत ले गए हैं.यह अलग बात है की कुछ स्व्यंसेवी संघटनों ने अभीतक करीब 10 हजार बच्चों को इन दलालों के चंगुल से मुक्त कराने सफलता पायी है.लेकिन हद की इंतहा देखिये मुक्त कराये गए इन बच्चों को वायदे के मुताबिक़ आजतक ठीक से पुनर्वासित भी नहीं किया गया है.जाहिर सी बात है की इतने संवेदनशील मामले में सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम क्या ख़ाक उठाये जायेंगे, सरकारी फाईलों से गरीबों के नाम पर निकलने वाली करोड़ों--अरबों की योजनायें धरातल पर नहीं पहुच पाती हैं,यह उसी का नतीजा है.
कोसी इलाके में मासूम सपनों की बलि चढाने का सिलसिला बदस्तूर जारीहै.सरकार के कागजी आंकड़े और जमीनी सच में कोई मेल नहीं है.गरीब के लिए ही लगभग सारी बड़ी योजनायें है लेकिन गरीब को इन योजनाओं का फलाफल मिलना तो दूर इन योजनाओं की पूरी जानकारी भी नहीं हो पाती है और उनकी अर्थी निकल जाती है.गरीबों की ज्यादातर योजनायें बाबू--हाकिम से लेकर बिचौलियों के बीच ही उछलती--फुदकती रह जाती है.ये गरीब अपने मासूम नौनिहालों के सपने बेचते हैं.उनकी जिन्दगी और उनकी अहमियत बेचते हैं.जबतक गरीबी और रोजगार का टोंटा रहेगा इस इलाके में मानव तस्कर बच्चों को यूँ ही खरीदते रहेंगे.

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