जनवरी 14, 2013

सदर अस्पताल का बेदर्द--बेशर्म सच

रिपोर्ट मुकेश कुमार सिंह सहरसा टाईम्स:-

कड़ाके की इस भीषणतम ठंढ में सहरसा टाईम्स आज कोसी प्रमंडल के PMCH कहे जाने वाले सदर अस्पताल सहरसा के बेदर्द और बेशर्म सच से आपको रूबरू कराने जा रहा है।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इस कड़ाके की ठंढ में सदर अस्पताल में मरीज और उनके परिजनों को अपनी जान बचानी मुश्किल हो रही है।आलम यह है की विभिन्य वार्डों के खिड़की---किवाड़ों के पल्ले नहीं हैं हैं जिससे सर्द हवाएं वार्ड के भीतर धड़ल्ले से आ रही हैं।बात इतने पर खत्म नहीं होती।इस अस्पताल में मरीजों के बेड पर ना तो अस्पताल के दिए चादर हैं और ना ही अभीतक मरीजों के बीच कम्बल ही बांटे गए हैं।
सदर अस्पताल सहरसा करीब 25 एकड़ भूखंड पर पसरा हुआ है जिसके अन्दर अस्पताल के कई बड़े--बड़े भवन बने हुए हैं।करीब ढाई सौ बेड वाले इस अस्पताल में सवा तीन सौ बेड लगाए गए हैं।कोसी प्रमंडल के तीन जिलों के अतिरिक्त नेपाल इलाके से भी यहाँ मरीज इलाज के लिए आते हैं। अभी जानलेवा ठंढ का कहर लोगों की जान का दुश्मन बना हुआ है।लेकिन इस अस्पताल के विभिन्य वार्डों की खिड़कियों और किवाड़ों में पल्ले नहीं हैं जिससे सर्द हवाएं वार्ड के अन्दर झोंकों में आ रही हैं।मरीज और उनके परिजन परेशान--परेशान हैं।
ऐसे में गरीब मरीजों के बेड पर ना तो सरकारी चादर है और न मरीजों को अभीतक अस्पताल प्रशासन के द्वारा कम्बल ही दिए गए हैं।सहरसा टाईम्स ने इन तमाम मुश्किलों को लेकर सहरसा के सिविल सर्जन भोला नाथ झा को ना केवल अवगत कराया बल्कि उन्हें अपने साथ लेकर विभिन्य वार्डों का दौरा भी कराया।सिविल सर्जन को लोगों ने अपनी परेशानियों से खुलकर अवगत कराया।सहरसा टाईम्स से उन्होनें इस पुरे वाकये को लेकर कहा की खिड़की और किवाड़ के पल्लों को तत्काल लगवा पाना उनके बस में नहीं है।उनकी मानें तो उन्होनें अस्पताल की बेडों के लिए चादर की खरीददारी करवा ली है और मरीजों को कम्बल दिए गए हैं और दिए भी जा रहे हैं।आप पहले इनके पुरे बयान को सुन लें।आगे हम इनके बयान से इतर वाजिब सच से आपको रूबरू करायेंगे।
 देखिये सहरसा टाईम्स अपने साथ सिविल सर्जन को लेकर किस तरह से अस्पताल के विभिन्य कक्षों में दाखिल हो रहा है।विभिंत वार्डों में इन्हें मरीजों के परिजनों के विरोध का शिकार होना पड़ा।देखिये महाशय खुद तमाम चीजों को बारीकी से देख रहे हैं।अब आप इनके दिए बयान पर गौर करें और मरीज के परिजन क्या कह रहे हैं उसके बारे में जानिये।परिजनों का साफ़---साफ़ कहना है की उनके बेड पर ना तो सरकारी चादर हैं और ना ही अभीतक मरीजों को कम्बल ही दिए गए हैं।खिड़की और किवाड़ के पल्ले टूटे हुए हैं जिससे उन्हें काफी ठंढ लग रही है।मरीज के परिजनों की मानें तो सिविल सर्जन साहब सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं।उन्हें यहाँ किसी तरह की सुविधा नहीं मिल रही है।हमने एक महिला परिजन अमीषा खातून को सिविल सर्जन के पीछे भी लगाया लेकिन उसकी गुहार बस नक्कार खाने में तूती की आवाज बनकर रह गयी।मुकेश कुमार,कौशल्या देवी और तुलो देवी जैसी कई अन्य पीड़िता ने अपना दुखड़ा यह कहकर सुनाया की इस अस्पताल में उनके लिए कोई वक्ती बेहतर इंतजाम नहीं हैं। 
सहरसा टाईम्स के  साथ सिविल सर्जन
इस पूरी प्रकरण के दौरान एक समाजसेवी प्रवीण आनंद भी हमारे साथ थे।अस्पताल की व्यवस्था सुधरे इसके लिए यह भी काफी चिंतित रहते हैं।इनकी मानें तो यह अस्पताल खुद ही बीमार है।पहले इस अस्पताल के इलाज की जरुरत है।इस अस्पताल से मरीज जान बचाकर भाग जाते हैं।सिविल सर्जन साहब ने यहाँ आकर आश्वासन का बोड़ा खोल दिया लेकिन उनके आश्वासन का कोई परिणाम नहीं आने वाला।सिविल सर्जन की कोई बात एक अदना सा चपरासी भी नहीं यहाँ मानता है।इनकी नजर में ठंढ बीत जाने के बाद भी मरीजों को कम्बल नहीं मिलेंगे।
इस अस्पताल की बेदर्दी और बेशर्मी के लिए फिलवक्त हमारे पास अलग से कोई शब्द नहीं है।रब खैर करे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह अस्पताल खुद ही बीमार है।पहले इस अस्पताल के इलाज की जरुरत है।्…………बिल्कुल सही कहा

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