मई 21, 2013

पलायन एक्सप्रेस

सहरसा टाम्स::----  सरकार चाहे लाख दावे कर लें,लाख विकास के ढोल--ताशे पीट ले लेकिन कोसी क्षेत्र से गरीब तबके के लोगों का पलायन यहाँ की नियति बन चुकी है.घर का चूल्हा जलाना हो,अपनों के पेट की भूख मिटानी हो तो घर छोड़कर दूसरे प्रान्तों में रोजी--रोजकार के लिए जतन करने ही होंगे.कोसी कछार का यह इलाका भूख,बीमारी और बेकारी की नयी ईबारत लिख रहा है. केंद्र की मनरेगा योजना हो या फिर गरीबों के हितार्थ केंद्र अथवा राज्य की कोई भी सरकारी योजना हो उसका लाभ आजतक वाजिब लाभुकों तक नहीं पहुँच सका है. आखिर कमाएंगे नहीं तो खायेंगे क्या.बूढ़े माँ--बाप की जरूरतें और इलाज के साथ--साथ बीबी बच्चों की जिन्दगी का सवाल. पलायन इस इलाके के लोगों की जिन्दगी बन गयी है. सहरसा स्टेशन पर पलायन का जन सैलाब उमड़ा रहता है. हर किसी को जाना है लेकिन बस एक ट्रेन जनसेवा एक्सप्रेस है जो सहरसा से अमृतसर तक जाती है.इस ट्रेन को पलायन एक्सप्रेस भी कहते हैं.हद बात तो यह है की लोग इसी ख़ास ट्रेन पर भेड़--बकरी की तरह जान जोखिम में डालकर अपने घर आते भी हैं और यहाँ से पलायन करके जाते भी हैं. 
जब सवाल पेट का हो,अपनों को जिन्दगी देने--रखने का हो,तो कब आना और कब जाना.कहाँ आना और कहाँ जाना.कोई ठौर ठिकाना ही नहींअगर सरकारी योजनाओं का लाभ गरोबों को मिलता और इस इलाके में रोजगार के समुचित अवसर मिलते तो इस इलाके का नजारा ही कुछ और होता.लेकिन आलम यह है की घर का चूल्हा कहीं खामोश ना हो जाए यानि पेट की आग बुझाने और घर के लोगों की जिन्दगी चल सके इसके लिए इस इलाके के लोग परदेश जाकर कमाने को विवश रहते है.कोसी प्रमंडल के तीन जिले सहरसा, मधेपुरा और सुपौल इलाके के गरीब और कमजोर तबके के लोग इसी स्टेशन से परदेश का सफ़र तय करते हैं.. 
  आखिर में हम तो यही कहेंगे की दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा,जीवन हैं अगर जहर तो उसे पीना ही पड़ेगा.आखिर कब इन गरीब--मजलूमों पर अल्लाह मेहरबान होगा.दोजख में इनकी बेईमान बनी जिन्दगी कब खुशियों से सराबोर हो पाएंगी.आखिर कब बहुरेंगे इनके दिन. सत्तासीनों के दम पर कुछ भी उम्मीदें पालना अब सरासर जुल्म होगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।