अगस्त 07, 2016

अलबेले गुरूजी, काट रहे हैं मस्ती........

बच्चों के भविष्य को लग रहा ग्रहण..........
सिस्टम की लापरवाही से चल रहा खेल .......
ये स्कूल हैं, या की फूहड़ मजाक....... 
यह आलेख शिक्षा विभाग के तीन गुरूजी पर आधारित है ---- हेड मास्टर, संगीत और फिजिकल गुरूजी  
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---- शिक्षा व्यवस्था को चुस्त--दुरुस्त और पूरी तरह से चाक--चौबंद बनाये रखने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों का खजाना सदैव खुला रहा है लेकिन कोई बेहतर परिणाम आजतक धरातल पर ना तो उतर सका है और ना ही दिख सका है । आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, कुछ चर्चा पहले इसपर कर लें। सरकार की बड़ी से बड़ी योजना AC वाले कमरे में बनती है जहां अयोग्य मंत्री और ऐसे अधिकारी बैठे होते हैं जिन्हें क्षेत्र और जनता के नब्ज का कुछ पता नहीं होता है। यानि बिहार के परिपेक्ष में शिक्षा संबंधी जब कोई योजना बनती है, तो जो अधिकारी मौजूद होते हैं वे दूसरे राज्य के होते हैं, या फिर बिहार के भी हैं तो, उन्हें विभिन्य जिलों के हालात की सही जानकारी नहीं होती है और रही बात मंत्रियों की तो उनके बारे में हमारे पाठक भी खूब जानते हैं। बिना किसी होमवर्क के योजनाएं बनती हैं और वे जमीन पर उतरते--उतरते फनां हो जाती हैं ।
आज का हमारा विषय है स्कूल में गुरूजी की कैसे है बल्ले--बल्ले। सहरसा जिले में 741 प्राथमिक विद्यालय 509 मध्य विद्यालय और 53 उच्च विद्यालय हैं। पढ़ाई कैसी होती है ? प्राथमिक विद्यालय और मध्य विद्यालय खुलते हैं कि नहीं और मिड डे मिल की क्या स्थिति है ? इस विषय पर खूब लिखे गए हैं।
लेकिन स्कूल से जुड़ा एक महत्पूर्ण विषय है, जिसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया है। ये सिर्फ सहरसा जिला ही नहीं अपितु कोशी प्रमंडल के 98 प्रतिशत स्कूलों की ये व्यवस्था है. मैंने सोचा, चलो आज इसी पर कुछ लिखते हैं जिससे सरकार का कहीं ध्यान आकृष्ट हो और हमारे नौनिहालों का भला हो सके। स्कूल में तीन तरह के गुरूजी की अक्सर चांदी कटती है। उन्हें बच्चों की पढ़ाई और उनसे जुड़ी चीज से तक़रीबन कोई सरोकार नहीं होता है। जो की निम्नवत है :--- 
हेडमास्टर साहब------
पहले गुरूजी हैं विद्यालय के हेडमास्टर साहब। इनका सारा समय मिड डे मिल के जुगाड़, स्कूल के विभिन्न निर्माण कार्य और सरकारी कागजों को संभालने में व्यतीत होता है। इन्हें क्लास लेने से कोई मतलब नहीं होता है. ये महाशय वर्ग में जाना अपनी तौहीन समझते है.      
फिजिकल गुरुजी और संगीत के गुरूजी--------
बहुत विद्यालय ऐसे हैं जहां फिजिकल गुरुजी और संगीत के गुरूजी को लगाया गया है लेकिन ये गुरूजी अपने विद्यालय में सिर्फ हाजिरी बनाने आते हैं । ये भी बच्चों के पढाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते है. जब विद्यालय में पढ़ाई ही हासिये पर हो तो, आप समझ सकते हैं की वहाँ व्यायाम, जिम और गीत--संगीत का क्या औचित्य है ? हद तो यह भी है जिस विद्यालय में ये शिक्षक पदस्थापित हैं वहाँ ना तो व्यायाम और जिम के सामान उपलब्ध हैं और ना ही संगीत के साज--बाज ही उपलब्ध हैं । आश्चर्य से बड़ा शर्मनाक तो यह है की जहां ये सामान प्रचुर मात्रा में सरकार ने भेज रखे हैं, वहाँ गुरूजी ही नहीं हैं ।
कहते हैं सिस्टम में सौ छेद लेकिन अब छेद की संख्यां में काफी इजाफा हो चुका है। केंद्र और राज्य के शिक्षा मंत्री को इस गंभीर मसले पर ध्यान देना चाहिए और इसका शीघ्रता से समाधान तलाशना चाहिए। आखिर बच्चों के भविष्य से कबतक खिलवाड़ और मजाक होता रहेगा ? महलों में रहने वालों, फाकामस्ती में गुजर करने वाले मासूम नौनिहालों की आँखों में में भी बड़े--बड़े सपने पलते हैं । अब तो उनकी फ़िक्र करो....समृद्ध और वाजिब तंत्रों ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।