सन्डे स्पेशल
गरीबी सामाजिक प्रताड़ना, भूख और बेसहारा पन, इन्सानी जान को जेल जाने को मजबूर करती है...
गरीबी सामाजिक प्रताड़ना, भूख और बेसहारा पन, इन्सानी जान को जेल जाने को मजबूर करती है...
मो० अजहर उद्दीन की रिपोर्ट ---- अपराधी की संज्ञा हमें ऐसे व्यक्तियों को देना चाहिए जो जन्म से ही अपराध को चादर बना जिस्म से लिपटे होते है और जो अपने जीवन--काल में कई संगीन घटना को अंजाम देकर जेल जाने की अपनी पटकथा लिखते रहते है. ऐसे ही लोगों को समाज और कानून के नजर में अपराधी की संज्ञा दी जानी चाहिये।
अपनी जिंदगी को मानववीय तरीकों से जीने पर समाज के बड़े ओहदेदार समाज के निम्न तबके को ऊपर उठते देख अपने अंदर जलस और अनादर भाव से उस व्यक्ति को नीचे गिराने की कोशिश करते है. जिसमें वो साधारण व्यक्ति समाज के मुख्य धारा से ना जोड़कर उस समाज के ओहदेदार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर ऊपर उठने की कोशिश करते है, लेकिन उन विरोधियों के द्वारा प्रताड़ित कर गलत करने को मजबूर किया जाता है जो आज के समय में समाज और कानून के बीच अपराधी के नाम से जाने जाते है। जेल में अपराधीयों को इतना मौका मिलता है की वो अपनी बाहरी दुनिया की समीक्षा कर सकें जिससे सही और गलत में अंतर समझा जा सकें ।
अगर हम कहे की समाज ही अपराधी को जन्म देता है तो ये कहना कतई गलत नहीं होगा हर समाज में "समाज सुधार संगठन" का निर्माण होना चाहिए जिसमें जिले के प्रशासनिक महकमे को बढ़--चढ़ कर केवल उपस्तिथि ही दर्ज नहीं करवानी चाहिए बल्कि समाज में ये संगठन बेहतर कार्य करें उसमें इनकी महती प्रयास भी होनी चाहिये। जिससे समाज में हो रहे दिन प्रतिदिन की प्रवृति पे विशेष ध्यान देना चाहिये। जिससे हमारे समाज को मुख्य धारा से जोड़ने में काफी मदद मिलेगी जिससे समाज का हर व्यक्ति समाजिक हितों के कार्य में अपनी भागेदारी देकर समाज को अपराध मुक्त बना सकते है।
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