अप्रैल 24, 2013

एक बूढी महिला का दर्द देखो सरकार

  85 साल की एक बूढी महिला बीते दो वर्षों से वृद्धा पेंशन के लिए लगा रही है अधिकारियों के चक्कर /जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों के अलमस्त रवैये से यह बुजुर्ग महिला आजतक महरूम है पेंशन से /////मुकेश कुमार सिंह ////
सरकार के तमाम दावों के बाबजूद गरीब--मजलूमों से लेकर जरुरतमंदों का कहीं से भी भला होता नहीं दिख रहा है। आज हम आपको एक बुजुर्ग महिला की ऐसी दुखती तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जो सरकार से लेकर उसके पुरे तंत्र को ना केवल तमाचे लगा रहा है बल्कि उसे सिद्दत से कटघरे में खड़े भी कर रहा है.जिला मुख्यालय के सपटियाही गाँव की एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला बीते दो वर्षों से वृद्धा पेंशन के लिए हर संभव जतन कर रही है लेकिन उसे पेंशन नहीं मिल रहा है.जिला से लेकर प्रमंडल के सभी वरीय अधिकारियों के जनता दरबार में यह अपनी फ़रियाद सूना चुकी है लेकिन कहीं से भी इसे वृद्धा पेंशन दिलाने की पहल नहीं हुयी.थक---हारकर यह बूढी महिला समाहरणालय के ठीक सामने भूख हड़ताल पर बैठ गयी है.इस वृद्धा का कहना है की वह मर जायेगी लेकिंन अनशन स्थल से वह किसी भी सूरत में घर नहीं जायेगी. सहरसा टाईम्स ने इस गंभीर मामले को सिद्दत से उठाया और जिलाधिकारी से जबाब---तलब किया.हमारी पहल के बाद जिलाधिकारी ने हमें इस बुजुर्ग महिला की पेंशन दिलाने का पक्का भरोसा दिलाया.
जिलाधिकारी  सहरसा
जिसकी हकमारी होती है और जिसे इन्साफ नहीं मिल रहा होता है,सहरसा टाईम्स सदैव उसके लिए मजबूती से ना केवल आवाज बुलंद करता है बल्कि उसे उसकी वाजिब मंजिल तक भी पहुंचाता है।सहरसा टाईम्स ने सहरसा के जिलाधिकारी से इस महिला को अभीतक पेंशन नहीं मिलने को लेकर तल्खी से सवाल किये।जिलाधिकारी ने कहा की उन्हें सहरसा टाईम्स के द्वारा ही इस मामले की जानकारी हुयी है।उन्होनें कहा की वे ना केवल तुरंत इस मामले को दिखवाते हैं बल्कि इस बुजुर्ग महिला को पेंशन मिले इसकी व्यवस्था भी करवाते हैं।सुनिए इनको।
एक बुजुर्ग महिला की इस कहानी ने यह साफ़ कर दिया है की इस जिले में वृद्धा पेंशन योजना कतई सही तरीके से जमीन पर आजतक नहीं उतर पायी है।इस जिले में युवाओं को वृद्धा पेंशन और सधवा को विधवा पेंशन पहले से ही बाहेआम मिल रहे हैं जिसे देखने--सुनने वाला कोई नहीं है। अधिकारी,जनप्रतिनिधि से लेकर बिचौलियों की बस बल्ले--बल्ले और जय--जय है।सहरसा टाईम्स की पहल से एक बुजुर्ग महिला का तो आज भला होता दिख रहा है लेकिन ऐसे हजारों कैली देवी हैं जिनतक सहरसा टाईम्स का पहुँच पाना मुमकिन नहीं है।ऐसे में उनका क्या होगा,यह अल्लाह पर निर्भर करता है।
इस बुजुर्ग महिला को बानगी बनाकर सहरसा टाईम्स सरकार और उसके तंत्र से कर रहा है कुछ सवाल------------------- सवाल नंबर एक--------80 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों को वृद्धा पेंशन मद में 500 रूपये दिए जाने का प्रावधान है लेकिन इस जिले में थोक में ऐसे बुजुर्ग हैं जिनकी उम्र 90 वर्ष से ज्यादा है लेकिन उन्हें अभीतक 300 रूपये ही दिए जा रहे हैं।क्या ऐसे बुजुर्गों को चिन्हित करके इन्हें कम दी गयी राशि आगे जोड़कर दी जायेगी? सवाल नंबर दो-------पेंशन आयु स्पष्ट रूप से तय रहने के बाद भी कम उम्र के लोगों को आखिर कैसे वृद्धा पेंशन मिल रहे हैं।इसे रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठाना चाहेगी?
सवाल नंबर तीन-------सधवा (सुहागन) को विधवा पेंशन कैसे मिल रहा है।इसमें सुधार और इसे रोकने के लिए सरकार के पास कौन सी योजना है?
सवाल नंबर चार--------नयी योजनाओं के सृजन की जगह पुरानी योजनाओं को सही तरीके से धरातल पर लाने के लिए सरकार आखिर क्यों नहीं गंभीर होती है?
सवाल नंबर पांच----------बड़ी योजनायें जाहिर तौर पर गरीबों के कल्याणार्थ ही बनायी जाती है।आजादी के दशकों बाद भी गरीबों के जीवन स्तर में आशातीत बदलाव नहीं हो सका है।क्या यह मानकर चलें की गरीब महज सियासी वस्तु भर हैं? 

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।