मुकेश कुमार सिंह की कलम से----------कोसी क्षेत्र में लड़कियों के अपहरण मामले में भारी इजाफा का दौर बदस्तूर जारी है।लड़कियों के अपहरण के पीछे यूँ तो कई कारण हैं लेकिन हालिया खुलासे से पता चलता है की ज्यादातर अपहरण प्रेम--प्रसंग में ही होते हैं।सहरसा में प्रत्येक माह सात फेरों के लिए औसतन सात लड़कियों का अपहरण हो रहा है।आकड़ों पर गौर करें तो सहरसा में वर्ष 2011 में लड़कियों के अपहरण के 55 मामले प्रतिवेदित हुए वहीं यह आकड़ा जनवरी से दिसंबर वर्ष 2012
में बढ़कर 94 तक पहुँच गया है जो न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि लड़के एवं
लड़कियों के द्वारा घर बसाने का यह अंदाज पुलिस--प्रशासन के नाकों में भी
दम कर रखा है।इस अपहरण की घटना को एक ओर कानूनविद एवं बुद्धिजीवी इसे भारतीय समाज के
ताना-बाना के ठीक विपरीत बता रहे हैं तो दूसरी और ऐसे वारदातों के लिए दोषपूर्ण शिक्षा
पद्धति,संचार तकनीक का दुरूपयोग संस्कृति का पश्चिमीकरण एवं परिवार का गैर
जिम्मेवाराना रवैया को वजह बता रहे हैं।समाजशास्त्रियों ने इसे एक साजिश के
तहद लड़कियों का व्यापक पैमाने पर ट्रेफिकिंग कर देह व्यापार जगत में बेचने
की बात कह इसकी गंभीरता को और बढ़ा दी है।वजह जो भी हो लेकिन आज की तारीख में हनीमून किडनेपिंग एक बड़ी सामाजिक समस्या बन कर उभर रही है जो सभ्य समाज के लिए कहीं से भी शुभ सन्देश नहीं है।
ये
दृश्य है सहरसा जिले के विभिन्न क्षेत्रों से शादी की नीयत से अगवा की गयी
विभिन्य लड़कियों का जिसने प्यार की पींगें बढाकर न घर और मर्यादा की
दीवारें गिरायीं बल्कि ब्याह रचाकर अपने सामाजिक जीवन का शंखनाद भी कर
दिया।
आप खुद इन प्रेमी युगल जोड़ो को देख कर अंदाजा लगा सकते हैं की इनका निर्णय कितना गंभीर है।हो सकता है इनका इरादा पवित्र हो,घर बसाने
और नयी दुनिया आबाद करने का हो,बावजूद इसके हम कह सकते है कि ये जल्दबाजी में और बिना सोचे समझे लिया गया
निर्णय है।किशोर--किशोरी का ये भटकाव न केवल कानून को परेशान करने वाला है
बल्कि दो परिवारों को भी तबाह करने वाला है।साथ ही ऐसे कृत्य निश्चित तौर पर समाज पर भी दूरगामी
प्रभाव डालते हैं।
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प्रोफ़ेसर डॉ रेणु सिंह |
इस तरह की शादियों के बुरे हस्र को भी हमने बदस्तूर देखा है।बाबजूद इसके घर की मेड़,घर के संस्कार और बेड़ियाँ इतनी कमजोर हैं की लडकियां मौक़ा पाते ही घर से भाग निकलती हैं।बुद्धिजीवी
इसे भारतीय
समाज के ताना-बाना के विपरीत तो बता ही रहे हैं,साथ ही ऐसे वारदातों के
लिए दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति,संचार तकनीक का दुरूपयोग संस्कृति का
पश्चिमीकरण
एवं परिवार का गैर जिम्मेवाराना रवैया को भी ये वजह बता रहे हैं।कानूनविद इसे हर दृष्टिकोण से बस कानूनन जुर्म बता रहे हैं।हमने सामाजिक विषयों पर पकड़ रखने वाली एक विद्वान् महिला प्रोफ़ेसर डॉ रेणु सिंह,प्राचार्या,आर.एम कॉलेज,सहरसा और सहरसा व्यवहार न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ ठाकुर से इस विषय पर लम्बी बातचीत की।
वहीं
इन सब से अलग समाजशास्त्रियों ने लड़कियों के अपहरण में भारी इजाफा की वजह
व्यापक पैमाने पर वेश्यावृति के मकसद से बड़े शहरों की देह मंडी में इन
लड़कियों को बेचना बताया।हम सहरसा के नामचीन समाजशास्त्री डॉ विनय कुमार चौधरी की मानें तो समूचे देश में लड़कियों का बाज़ार एक
उद्योग का रूप ले चूका है और इसके माध्यम से सालाना पचहत्तर सौ करोड़ का व्यापार
देश के भीतर हो रहा है।
इनके आकड़ो को देखे तो प्रत्येक वर्ष नेपाल से
7000,पूर्वोत्तर से 3000एवं भारत से 80,000 लड़कियाँ अपहृत होती है जिसे
वेश्यावृति के धंधे में लगाया जाता है।इनके अनुसार 7वर्ष से लेकर 13वर्ष
की लड़कियाँ का डिमांड अपने देश में ज्यादा है।इसके अलावे यहाँ से इन लड़कियों को विदेशो में यानि अरब के देशों में भी बेचे जाने की बातें सामने आ रही हैं।इन्होने बताया की 2011 में समूचे देश से 80000लड़कियाँ का अपहरण हुआ है जिसका पता लगाने में पुलिस आज तक असफल रही है।
कोशी क्षेत्र में लड़कियों के अपहरण में भारी इजाफा हुआ है।खास कर सहरसा में हुए वारदातों को देखें तो संख्यां
चौकाने वाला है।दरअसल भौगौलिक दृष्टिकोण से यह इलाका काफी दुरुह
है।प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदा झेलना यहाँ की नियति है।परिणाम है की यहाँ
गरीबी ,बेकारी अपने चरम पर है। ऐसे में लोगों को अपना पेट पालना तो दूर
बच्चों की उचित परवरिश करना एक कठिन समस्या बन गई है और इसी का नाजायज
फायदा
असामाजिक तत्व उठाते हैं।यदि आंकड़ो पर गौर करें तो कोशी क्षेत्र के मात्र एक जिला सहरसा का आकंडा ही ऐसी घटनाओं की
बेतहाशा वृद्धि को साबित करता है।यह तो सरकारी आकंडा है।लेकिन कई ऐसे
मामले हैं जो थाना तक पहुँचते ही नहीं हैं।यदि उसे जोड़ दिया जाय तो वह संख्यां
बेहद चौकाने वाला होगा।
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पुलिस अधीक्षक
अजीत कुमार 'सत्यार्थी |
इस बाबत हमने पुलिस प्रशासन से भी बातें की.इस पुरे प्रकरण पर सहरसा पुलिस अधीक्षक
अजीत कुमार 'सत्यार्थी का कहना है की ज्यादातर अपहरण के मामले जो आज के
समय में विभिन्य थानों में दर्ज हो रहे हैं वे प्रेम--प्रसंग से
जुड़े हैं।वैसे कोसी कछार के इस इलाके के पर मानव तस्करों की
भी गिद्ध दृष्टि लगी रहती है जिससे लड़कियों के खरीद--फरोख्त से भी इनकार
नहीं किया जा सकता है।वैसे इस तरह के मामले की वजह से पुलिस का बहुत समय व्यर्थ में चला जाता है जिससे अपराध नियंत्रण में खासी दिक्कत होती है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ ठाकुर |
इन वारदातों की बावत हमने पुलिस प्रशासन के साथ साथ कानूनविद ,बुद्धिजीवी एवं समाजशास्त्रियों
की भी राय लेने का प्रयास किया।सभी ने अपने--अपने अनुरूप विचार दिए,पर इससे
इतर भारतीय सभ्यता व् संस्कृति की नीव निसंदेह ठोस है।आज भी यहाँ की
सभ्यता संस्कृति का लोग विदेशों में भी मिसाल देते है।लेकिन संयुक्त
परिवार का बिखराव,टी वी ,सिनेमा ,मोबाइल ,पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के
कारण युवा वर्ग में जरुर भटकाव आया है।लेकिन ये लाइलाज नहीं है।ऐसे में जरुरत
है परिवार,माता--पिता को जिम्मेवार रवैया अपनाने की।जिससे वो अपनी
जिम्मेवारी को समझें और किसी भी प्रकार के प्रलोभन में पड़े वगैर किसी के
चंगुल में फंसने से खुद को बचाएं।आखिर में हम यह कहना चाहते हैं की इस हनीमून किडनेपिंग
के परिणाम कुछ मामलों को छोड़ दें तो ज्यादातर काफी बुरे आते हैं।बहुतेरे
ऐसे मामले भी सामने आये हैं जिसमें ब्याह के लिए घर से भागी लड़कियों के
आशिक ने उसे देह मंदी में बेच डाला है।तब अफ़सोस भी हो तो उससे कुछ भी हासिल
होने से तो रहा।