जुलाई 03, 2016

ठेंगे पर कानून, रसूख के सामने कानून भी पड़ा बौना


*** आखिर इस तरह की दोरंगी नीति अपनाने का सच क्या ?
*** सजायाफ्ता के हाथ खुले, विचाराधीन के हाथों में  हथकड़ी ?
*** बिहार के लिए अलग है कानून या सताता है बाप का डर
मुकेश कुमार सिंह की कलम से दो टूक----
हमने इस आलेख में तीन तस्वीर को सच कहने का आधार बनाया है । हमारे पाठक पहले नीचे की तीन तस्वीर पर गौर फरमाएं ।
** बिना हथकड़ी वाली पहली तस्वीर है भागलपुर जेल में बंद व हत्या मामले में सजायाफ्ता राजद के पूर्व सासंद बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन की ।
 ** हथकड़ी में जकड़ी दूसरी तस्वीर है एक नाबालिग छात्रा से रेप के मामले में आरोपी नवादा के विधायक राजबल्लभ प्रसाद की ।
** तीसरी तस्वीर निर्भया रेप मामले के एक विचाराधीन बंदी की है जिसे देखिये किस तरह से दबोच कर रखा गया है ।
बीते शनिवार 2 जुलाई को बिहारशरीफ में कोर्ट में पेशी के समय की यह राजबल्लभ यादव की तस्वीर है । कानून कहीं भी किसी विचाराधीन बंदी को पेशी के वक्त हथकड़ी लगाने की इजाजत नहीं देता बल्कि हथकड़ी लगाना पुलिस के विवेकाधिकार के दायरे में आता है ।पुलिस को अगर यह शक या शंका हो की विचाराधीन बंदी हथकड़ी नहीं लगाने पर पुलिस अभिरक्षा से फरार हो सकता है तभी वह हथकड़ी लगा सकती है । राजबल्लभ यादव पर यकीनन गंभीर आरोप हैं पर वह एक विधायक व जनप्रतिनिधि भी हैं । उनका पूर्व का कोई गंभीर आपराधिक इतिहास भी नहीं है । 
जबकि अपहरण, हत्या, देशद्रोह सहित कई मामलों में आरोपित पूर्व सांसद शहाबुद्दीन हत्या के मामले में सजायाफ्ता भी हैं और वे अलग से आतंकी संगठनों से साठगांठ के आरोपी भी हैं । पिछले 13 मई को सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की शक की शुई शहाबुद्दीन पर जाने के बाद उनका स्थानांतरण सिवान से भागलपुर केन्द्रीय कारा में कर दिया गया । कमर की दर्द की शिकायत के बाद पांच दिनों पूर्व उन्हें डिब्रूगढ़-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस से ईलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया । शहाबुद्दीन के साथ दो जेलर सहित दो पुलिस अधिकारी और 24 सुरक्षाकर्मियों का एक जत्था भी दिल्ली गया पर भागलपुर जेल से दिल्ली एम्स तक पहुंचन वाले शहाबुद्दीन के हाथों में कहीं भी हथकड़ी लगी नहीं दिखीं । शहाबुद्दीन किसी फ़िल्मी हीरो के स्टाइल में चल रहे थे । 
बताना लाजिमी है की मोहम्मद शहाबुद्दीन वर्तमान में जिस पार्टी के महासचिव हैं राजबल्लभ प्रसाद उस पार्टी के विधायक हैं । तो फिर सवाल यह भी उठता है की इस तरह की दोरंगी नीति का मतलब क्या है ? क्या सरकार या कानून ने शहाबुद्दीन को हथकड़ी न लगाने और राजबल्लभ को हथकड़ी लगाकर अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था या फिर शहाबुद्दीन के साथ गए पुलिस अधिकारियों, जेलर या पुलिसकर्मियों में शहाबुद्दीन के हाथों में हथकड़ी लगाने की हिम्मत नहीं थी ? एक विधायक को फरार होने की आशंका से अगर उनके हाथों में हथकड़ी लगायी जा सकती है तो एक सजायाफ्ता और देशद्रोह के मामले में अंतराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कुख्यात बाहुबली शहाबुद्दीन के हाथों में हथकड़ी क्यों नहीं ? 
बिहार सरकार ने क्या दोनों के लिए क्या अलग-अलग कानून बना रखे हैं । ऐसा नजारा देश के किसी अन्य राज्य की अदालतों में नहीं देखा जाता जहां सामान्य और विचाराधीन जनप्रतिनिधियों के हाथों में हथकड़िया लगाई जाती हों ।
देश की राजधानी दिल्ली जहां सुप्रीम कोर्ट, हाइकोर्ट, तीसहजारी, पटियाला हाऊस व कड़कड़डुमा जैसे पांच शीर्षस्थ और महत्वपूर्ण अदालतें हैं वहां भी पेशी के वक्त किसी विचाराधीन बंदी को कानून के बंदिश के कारण हथकड़ी नहीं लगाया जाता बल्कि पुलिसवाले बंदी की एक हथेली को अपनी हथेली में जकड़ कर उसे अदालत में पेश करते हैं ।
यहां तक की दो वर्ष पूर्व दिल्ली में हुए बहुचर्चित निर्भया रेप मामले के आरोपितों में से एक शिवकुमार यादव (तस्वीर में देखें) को भी कोर्ट में पेशी के वक्त हथकड़ी नहीं लगाया गया था । हमारे इस आलेख का मतलब कानून पर सवाल खड़ा करना नहीं है । हमारा मकसद बस इतना है की रसूख,पैसा,बड़ा आपराधिक इतिहास, पहुँच और बड़ा राजनीतिक कद होने से नियम--कायदे प्रभावित होना लाजिमी हैं क्या ? क्या कानून इसकी ईजाजत देता है क्या ? जनता के लिए यह स्वीकार्य है क्या ? यह एक गंभीर मसला है जिसपर देश के बड़े सामाजिक और नैतिक चिंतकों को सामने आना चाहिए और अपनी बेबाक राय रखनी चाहिए । हमने तस्वीर के जरिये अपनी बात रख दी है ।यहां सिर्फ सच दिखता है ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।