रिपोर्ट सहरसा टाईम्स : गर्मी और पछुआ हवा शुरू होते ही गांवों में होने वाली अगलगी की घटना को देखते हुए लखीसराय जिला प्रशासन ने बीते 19 जून को कलेक्ट्रेट परिसर स्थित मैदान में साधारण झोपड़ी व अग्निरोधी झोपड़ी का परीक्षण किया था. जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करा कर जिला प्रशासन की वेबसाइट और गूगल के यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड किया गया है। इस आधे घंटे की वीडियो में डीएम ने परीक्षण करके दिखाया है कि सामान्य झोपड़ी जल जाती है, जबकि अग्निरोधी झोपड़ी में आग लगने में आधे घंटे से ज्यादा का समय लगता है।
चिकनी मिट्टी को सुखाकर चूर्ण बनाकर छान लें। 10 किलो साफ पानी में 6 किलो मिट्टी घोलना है। इसमें 15 मिनट धान का पुआल भीगो कर धूप में सुखा दें। उसी तरह बांस या लकड़ी के फ्रेम के ऊपर गोबर-मिट्टी का लेप चढ़ा दें। अब फ्रेम पर पुआल को कस के बांधते हुए झोपड़ी तैयार करें।
कैसे काम करती है तकनीक -
कैसे काम करती है तकनीक -
धान के पुआल में सिलिका का प्राकृतिक कोट होता है, जोकि अग्निरोधी है। मिट्टी का कोटिंग हो जाने से उसकी अग्निरोधक क्षमता बढ़ जाती है। पुआल को खूब कस के बांधने के कारण हवा नहीं बचती और आग के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं के बराबर हो जाती है। ऐसे तैयार अग्निरोधी झोपड़ी में आग की लपट पैदा नहीं होती और आधे घंटे के अंदर सामान के साथ सुरक्षित बाहर निकला जा सकता है।
जाहिर तौर से लखीसराय जिला प्रशासन के द्वारा यह परीक्षण सराहनीय है लेकिन इस प्रयोग का प्रचार प्रसार स्टेट लेवल से हो क्योंकि जो इस झोपडी में रहता है न तो उसके पास ANDROID मोबाइल है और न ही कोई अख़बार पढ़ता है. यदि ऐसा हुआ तो हजारों आशियाना हर साल जलने बच सकता है. कोसी में भी गर्मी शुरू होते ही अगलगी की घटना प्रतिदिन होती है जिसमे कई लोग जलते है, गरीबों के हजारों आशियाना राख़ में तबदील हो जाती है यदि इस विधि से झोपडी का निर्माण हो तो इस घटना पर काबू पाया जा सकता है. (स्रोत लखीसराय सरकारी वेब साईट)
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