जून 21, 2016

ठांय--ठांय से दहला सहरसा.......


सुस्त और हांफती पुलिस के सामने अपराधियों की बल्ले--बल्ले ........

युवक की गोली मारकर हत्या..........  
मृतक राकेश कुमार सिंह

मुकेश कुमार सिंह की कलम से---- बिहार में एक बार फिर से अपराधियों की समानांतर सरकार चल रही है ।खासकर कोसी--सीमांचल की बात करें तो अपराधियों के मनोबल हालिया कुछ महीनों से इस कदर बढे हैं, गोया पुलिस और कानून नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी हो। बीती रात अपराधियों ने सदर थाना के दिवारी के समीप सहरसा जिला मुख्यालय से अपने घर जा रहे राकेश कुमार सिंह की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी । हरबार की तरह इस बार भी ह्त्या के बाद पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर अपनी तफ्तीश शुरू कर दी है । इस तरह की घटना से आमजनों में जहां खौफ व्याप्त है वहीं पुलिस आखिर क्या कर रही है ,यह सवाल सिद्दत से मौजूं है । जिले का कोई ऐसा थाना क्षेत्र नहीं है जहां हत्या से लेकर अन्य बड़े और संगीन अपराध ना हो रहे हों । अपराध के बढ़ते ग्राफ से आमजनों के चैन और सुकून को ग्रहण लगता दिख रहा है। हाल के कुछ दिनों में तीन हत्याओं ने पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किये हैं।
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राजद के दो नेता शयामसुंदर तांती और अनिल मुखिया की हुयी ह्त्या मामले का पटाक्षेप पुलिस अभीतक करीने से नहीं कर पायी है  की बीती रात अपराधियों ने पुलिस को फिर से एक युवक की हत्या कर,एक नयी चुनौती दे दी है । यहां बताना बेहद जरुरी है की इससे पहले बहुचर्चित टिकलू सिंह ,गोपाल यादव और रौशन सिंह हत्या की गुत्थी भी पुलिस सुलझाने में नाकामयाब रही है ।
सहरसा के पुलिस अधीक्षक अश्वनी कुमार और कोसी रेंज के डीआईजी चन्द्रिका प्रसाद  से जब बढ़ते अपराध के बाबत हम सवाल करते हैं तो वे दार्शनिक की मुद्रा में जबाब देकर हालात को काबू में होने का दम्भ भरते हैं ।इनकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है की जैसे सहरसा ना केवल अपराधमुक्त इलाका हो बल्कि यहां रामराज्य कायम हो । वैसे हत्या के अलावे, लूट, छिनतई और चोरी की घटना तो सहरसा जिले के लिए रोजमर्रा की बात बनकर रह गयी है । 
बेचारी सहरसा पुलिस अपराध की मोटी और वजनी फाईल संभालने में ही हांफ रही है। हद तो इस बात की है की ना तो बड़े वाहन, ना बाईक और ना ही पैदल गस्ती करती पुलिस कहीं समय से नजर आती है। हाँ ! अगर वसूली की कहीं गुंजाईश दिखे तो वहाँ पुलिस वालों की मौजूदगी फिर थोक में होती है। थाने में दर्ज होने वाले विभिन्य कांडों पर गौर करें और उसके फलाफल की बात करें तो नतीजा तक़रीबन सिफर ही दिखता है । वैसे ऐसे मामले, जिसमें नजराना की गुंजाइश हो वहाँ पुलिस अधिकारियों से लेकर जवान काफी सक्रिय और कर्तव्यनिष्ठ दिखते हैं । 
सदर थानाध्यक्ष संजय कुमार सिंह के काम करने का तरीका तो बेहद चौंकाने वाला है ।ये किसी घटना से आहत पीड़ित से इस तरह बात करते हैं जैसे गुरु अपने शिष्य से ।किसी भी मुकदमा को दर्ज करने से पहले संजय सिंह मामले का अपने चैंबर में ही अनुसंधान करते ना केवल दिखते हैं बल्कि पीड़ित को इसकदर रपेटते हैं की पीड़ित की लंगौट ढीली हो जाती है। वैसे सदर थानाध्यक्ष की ज्यादा रूचि जमीन सम्बंधित मामले के निपटारे और मारपीट के मामले में सुलह की ज्यादा रहती है । इधर राकेश सिंह की बीती रात हुयी हत्या मामले में पुलिस के हाथ अभीतक खाली हैं ।
मृतक की हत्या से जहां मृतक के घर में कोहराम मचा है वहीं पुरे गाँव के लोग सदमे में हैं । पुलिस की अभीतक की कार्यशैली को देखते हुए हम डंके की चोट पर कह सकते हैं की राकेश के हत्यारे को सहरसा पुलिस आसानी से चिन्हित कर गिरफ्त में ले लेगी,यह कहीं से भी मुमकिन नहीं प्रतीत हो रहा है ।अगर आपको अपने जानमाल की सुरक्षा की चिंता है तो,खुद चौकन्ने रहिये ।वर्ना सावधानी हटी और दुर्घटना घटी ।जय हो सुशासन की और जय हो सहरसा पुलिस की ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीजून 21, 2016 10:29 pm

    ��Dar lagta hai comments.

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  2. आपका आलेख यह स्पष्ट करता है कि बिहार की स्थिति काफी तेजी से बदल रही है। एक बार फिर से बिहार लालू-राबड़ी सुशासनकाल (विरोधी उन्हें बदनाम करने के लिए जंगलराज कहते है) की वापसी हो रही है। इस प्रयास के लिए श्री नितीश कुमार और श्री लालू यादव जी को संयुक्त रूप से बधाई।
    बन्धु, मैं आपके आलेख के कुछ कमियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराने की गुस्ताखी कर रहा हूँ, क्षमा करेंगे।
    चूँकि आप इस खबर/आलेख के माध्यम से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे है इसलिए मैं कहना चाहूँगा कि लेखनी में कुछ सुधार की गुंजाइस है।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।