सहरसा टाईम्स एक्सक्लूसिव////मुकेश कुमार सिंह ////
सरकार
की
बड़ी से बड़ी योजना या तो कागजों में सिमट कर रह जाती है या फिर वह महज
खाऊ--पकाऊ बनकर व्यवस्था को साबूत तरीके से मुंह चिढाती रहती है.ऐसा नहीं
है की योजना को लेकर सरकार या उसका पूरा तंत्र चिंतित और गंभीर नहीं है.असल
मसला यह है की उनकी चिंता और गंभीरता आमलोगों के भले से इतर उनके अपने भले
से ज्यादा मतलब रखता है.
सहरसा का PHED विभाग इनदिनों बड़ी और
महत्वाकांक्षी योजना की बलि चढाने में नयी ईबारत लिख रहा है.PHED द्वारा
करोड़ों की लागत से ग्रामीण इलाकों में IRP(आयरन रिमूवर प्लांट)के साथ
चापाकल लगाने की योजना पूरी तरह से ना केवल फ्लॉप साबित हो रही है बल्कि
अधिकांश चापाकल बिना पानी टपकाए या तो चुरा लिये गए हैं या फिर वे
ढह--ढनमना कर ज़मीनदोज हो रहे हैं.कोसी का यह इलाका यूँ ही दूषित पानी को
लेकर रेडजोन के रूप में चिन्हित है.कोसी क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में
लौह युक्त पानी वह भी पीला पानी निकलता है जिसे इलाके के लोग पीने को विवश
हैं.ऐसे में विभाग की यह लापरवाही लोगों के
जीवन से खूब खिलवाड़ भी कर रहा है.सुशासन का दम भरने वाले नीतीश बाबू को
अपने निजाम में चल रहे इस काले खेल को देखने की या तो फुरसत नहीं या फिर
जरुरत नहीं है.
आज हम सुशासन की सरकार की पोल--पट्टी खोलने के लिए सहरसा के PHED
विभाग की काली करतूत दिखाने जा रहे हैं.सुशासन सरकार के फेज वन के दौरान
वर्ष 2008--09 में ग्रामीण सह शहरी इलाके में आमलोगों को शुद्ध और आयरन
मुक्त पानी उपलब्ध कराने की गरज से IRP(आयरन रिमूवर प्लांट)के साथ चापाकल
लगाने की योजना की शुरुआत हुई.इस योजना के तहत आयरन रिमूवर प्लांट के लिए
26,500 और चापाकल के लिए 6,500 रूपये खर्च करने का प्रावधान किया गया.यानि
एक चापाकल प़र 33 हजार रूपये खर्च की व्यवस्था की गयी.वर्ष 2010---11 तक
सहरसा जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में PHED द्वारा 3218 चापाकल और नगर
परिषद द्वारा शहरी विकास योजना के तहत शहरी क्षेत्र में 125 चापाकल लगाए
जाने थे.इस योजना के तहत PHED ने ग्रामीण क्षेत्रों में अभीतक जहां 2309
लगाए हैं वहीँ 909 चापाकल उसे और लगाने हैं. नगर परिषद् द्वारा शहरी
क्षेत्र के लिए तय 125 चापाकल लगाए जा चुके हैं.अब सच्चाई जानिये PHED
द्वारा लगाए गए 2309 और नगर परिषद् द्वारा लगाए गए 125 IRP(आयरन रिमूवर
प्लांट)के साथ लगे चापाकलों में से अधिकाँश बिना एक बूंद पानी टपकाए या तो
बर्बाद हो चुके हैं या फिर बर्बाद हो रहे है.
इन रोते-बिलखते चापाकलों में
से ज्यादातर के सामान रख--रखाव के अभाव में या तो चुरा लिए गए हैं या फिर
वे वहीँ प़र ढह--ढनमना कर ज़मीनदोज हो रहे हैं.बानगी के तौर प़र हम कहरा
प्रखंड के नरियार और महिषी प्रखंड के उतरी पंचायत का नजारा दिखा रहे हैं.इस
इलाके के लोगों को कहना है की चापाकल तो लगा दिया गया लेकिन उन्हें आजतक
इस चापाकल से एक बूंद पानी नसीब नहीं हुआ.इनका कहना है की इन चापाकलों के
पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं की गयी.यमुना देवी,सदानंद ठाकुर,जय बहादुर
ठाकुर,मोहम्मद मुस्तकीम,बच्चू
साह,भूमि मंडल जैसे इलाके के लोग सहरसा टाईम्स से चीख--चीख कर
कह रहे हैं की इन चापाकलों को मनमाने तरीके से बस लगा भर दिया गया.यह काम
कर रहा है की नहीं,इसे देखने वाला कोई नहीं.लोग साफ़ तौर प़र स्वीकार कर रहे
हैं की सरकार का पैसा बिना पानी बहाए,पानी में बह गया.
कार्यपालक अभियंता राजेश प्रसाद सिन्हा |
अब बारी है विभाग के हाकिम की.सहरसा PHED के कार्यपालक अभियंता राजेश प्रसाद सिन्हा की नजर में
यह योजना जिले भर में मिला--जुलाकर ठीक--ठाक चल रही है.इनकी नजर में कुछ
जगहों प़र जल--निकासी की वजह से चापाकल नहीं चलने की सूचना उन्हें मिली
है.सहरसा टाईम्स द्वारा बार--बार झंक--झोड़ने प़र अधिकारी ने यह जरुर स्वीकार
किया की उनके पास कनीय अभियंताओं की घोर कमी है जिस कारण से चापाकलों
के मेंटेनेंस यानि रख--रखाव में उन्हें दिक्कत होती है.जनाब का यह जबाब
स्थिति का खुलासा करने के लिए काफी है.
नीतीश
बाबू करोड़ों के फ्लॉप शो का यह नजारा लालू के जंगलराज का नहीं है,यह नजारा
आपकी सुशासन की सरकार के कार्यकाल का है.ए.सी युक्त कमरे में योजनाओं के
ताने--बाने और हवाई उड़ान से जनता का भला होने वाला नहीं है.अगर जनता की सही
चिंता करनी है तो नौकरशाहों का लगाया चश्मा अपनी आँखों से उतारिये और किसी
मजलूम की आँखों का चश्मा पहनिए.आप जान जायेंगे की आपके कार्यकाल में सब
कुछ ठीक--ठाक नहीं चल रहा है.हम डंके की चोट प़र कहते हैं की आप यह भी जान
जायेंगे की सुशासन की सरकार का तमगा महज लफ्फाजी है.जागिये नीतीश बाबू
जागिये.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
THANKS FOR YOURS COMMENTS.