मुकेश कुमार सिंह रिपोर्ट: दो
दिवसीय कोसी महोत्सव के दुसरे और अंतिम दिन दोपहर में महोत्सव स्थल
सहरसा स्टेडियम में जिले के तमाम जनप्रतिनिधियों की एक कार्यशाला का आयोजन
किया गया था।इस कार्यशाला में शामिल होने आये जनप्रतिनिधियों ने जिला
प्रशासन पर उन्हें सम्मान देने में कमी,उनके साथ भेदभाव,मनमानी और महोत्सव
के आयोजन में लूट करने सहित विभिन्य तरह के गंभीर लगाए। महोत्सव को लेकर
उनसे किसी भी तरह का विमर्श जिला प्रशासन द्वारा नहीं किये जाने से बिफरे
इन जनप्रतिनिधियों ने महोत्सव स्थल पर जमकर हंगामा किया और करीब दो घंटे
तक बबाल काटे। जनप्रतिनिधियों ने कई तरह के गंभीर आरोप जिला प्रशासन पर
लगाते हुए पहले तो यह कहा की एक तो उन्हें महोत्सव के दिन महोत्सव को लेकर
जानकारी दी गयी,दूजा जब वे यहाँ पहुंचे तो महोत्सव के मंच पर कुछ चुनिन्दा
जनप्रतिनिधियों को बुला कर बिठाया गया जो कहीं से भी उचित नहीं था। सभी
जनप्रतिनिधियों का मान बराबर है।जनप्रतिनधियों ने कुछ बड़े सवाल जिला
प्रशासन पर खड़े करते हुए कहा की कोसी महोत्सव का अभिप्राय कोसी क्षेत्र की
सांस्कृतिक,आध्यात्मिक,पौराणिक और एतिहासिक पूंजी को टटोलना और उसे सहेज कर
रखने की जुगात है।
लेकिन हद की इंतहा देखिये की कोसी प्रमंडल में
सहरसा,मधेपुरा और सुपौल तीन जिले आते हैं लेकिन इस महोत्सव में सहरसा जिला
प्रशासन की मनमानी की वजह से सुपौल और मधेपुरा जिले के ना तो कोई अधिकारी
शामिल हुए और ना ही वहाँ के एक भी जनप्रतिनिधि ही आये।अब आप ही सोचिये की
यह कैसा महोत्सव है।इन जनप्रतिनिधियों ने आरोप लगाते हुए कहा की इस महोत्सव
का प्रचार--प्रसार तक नहीं किया गया। सहरसा जिले के ग्रामीण इलाके के लोगों
को भी इस महोत्सव की कोई जानकारी नहीं थी। इनकी मानें तो एक तो जिला
प्रशासन ने उनकी उपेक्षा की ही दुसरा क्षेत्र की जनता का भी घोर अपमान किया
है।ये जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए कहते हैं की महोत्सव के
आयोजन के नाम पर जमकर गबन और लूट का खेल खेला गया है। बताना लाजिमी है की
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ इस महोत्सव पर सत्रह लाख से ज्यादा के
खर्च आये हैं। इस महोत्सव को लेकर हम भी एक जानकारी लगे हाथ आपको दे दें।हर
साल महोत्सव में लाखों खर्च करके विभिन्य तरह के खेलकूद,नौका रेस और
घुडदौड़ का आयोजन होता था जिसमें प्रमंडल के तीनों जिले के प्रतिभागी शामिल
होते थे लेकिन इस बार सुपौल और मधेपुरा जिले से किसी भी विधा से जुडे एक भी
खिलाड़ी तक शामिल नहीं हुए।यानि कोई भी खेल करीने और ढंग से नहीं हुआ।अब
भगवान जाने कौन से खेल में जिला प्रशासन ने खर्चे किये
होंगे।जनप्रतिनिधियों के हंगामे को सहरसा के डी.एम सतीश चन्द्र झा,एस.डी.ओ
राजेश कुमार,उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम सहित जिले के तमाम वरीय
अधिकारियों ने मिलकर शांत कराया।हद और अजूबी बात तो यह भी थी की डी.एम सतीश
चन्द्र झा ने जनप्रतिनिधियों के सामने घुटने टेकते हुए उनसे माफ़ी मांगी और
महोत्सव को सफल बनाने की अपील की।
सहरसा टाईम्स का कैमरा जबतक महोत्सव
स्थल
पर पहुंचता तबतक उग्र हंगामे का माहौल खत्म हो चुका था लेकिन फिर भी हमने
हंगामे और बहस की कुछ तस्वीरें कैद कर ही ली। यहाँ तक की सहरसा टाईम्स के
खुले
कैमरे को देखकर डी.एम सतीश चन्द्र झा आनन--फानन में महोत्सव स्थल से भाग
खड़े हुए। हमने इस हंगामे को लेकर डी.एम सहित कई अधिकारियों से पूछताछ करनी
चाही लेकिन सभी ने हाथ जोड़कर कुछ ना पूछने का हमसे तत्काल ना केवल आग्रह
किया बल्कि आखिरकार वे इतना भर बोले की जनप्रतिनिधियों की कुछ शिकायतें थी
जिसे उनलोगों वार्ता कर के खत्म करा डाला।फिर सबकुछ सामान्य और ठीक---ठाक
हो गया।हांलांकि चलते--चलते हमने
इंदु भूषण सिंह,प्रवीण आनंद दोनों जिला परिषद् सदस्य और सरपंच मंटू सिंह
जैसे कई जनप्रतिनिधियों से हंगामे के बाबत जानकारी ले ही ली।
इस
कोसी महोत्सव को समग्र में समेटकर देखें तो जरुर गड़बड़झाला हुआ है।कोसी
महोत्सव आखिर सहरसा महोत्सव में क्यों और कैसे तब्दील हुआ इसे
जांचने--परखने और सच को बेपर्दा करने की जरुरत है।राज्य मुख्यालय में बैठे
आका--सूरमाओं को सहरसा टाईम्स इतल्ला कर रहा है की इस कोसी महोत्सव की आड़
में
जरुर बड़ा खेल हुआ है जिसकी बू जनता को आ रही है।सरकार इसे अपने स्तर से ना
केवल अपने तकिया कलाम जांच और दोषी पाए जाने पर कारवाई होगी के तर्ज पर ले
बल्कि पारदर्शिता से सच को सामने लाये।
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