फ़रवरी 06, 2013

सहरसा टाईम्स की खबर से तेज हुयी पहल

 पिछले पांच दिनों से अपने ही घर में कैद हुए परिवार को घर से निकलने के लिए रास्ता दिलाने की प्रशासन ने शुरू की कोशिश............
सी.ओ साहब सहरसा टाईम्स के साथ
सहरसा टाईम्स की खबर का असर देखिये पिछले पांच दिनों अपने ही घर में से कैद एक परिवार से मिलने के लिए बीते कल 4 जनवरी  को जहां सियासतदान से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं का जत्था दिनभर पहुंचता रहा वहीँ आज सुबह से प्रशासनिक पहल भी तेज हुयी है।जिला प्रशासन के आलाधिकारी के निर्देश पर मौके पर सी.ओ ने पहुंचकर सहरसा टाईम्स के साथ मिलकर ना केवल विमर्श किया बल्कि दो विकल्प को सी.ओ ने तलाशकर, पड़ोसियों को अपने में समझौता करने सुझाव भी दिया।सी.ओ ने सामाजिक स्तर से समाधान निकालने के लिए पड़ोसियों को दो दिनों का मौक़ा दिया है।अगर सामाजिक पहल से पीड़ित को रास्ता नहीं मिलता है तो शख्ती बरतते हुए जिला प्रशासन खुद रास्ता निकालकर पीड़ित परिवार को न्याय दिलाएगा।सी.ओ ने खुलकर कहा की सहरसा टाईम्स की वजह से वे ना केवल मौके पर पहुंचे हैं बल्कि इस परिवार को हर हाल में जिला प्रशासन रास्ता दिलाकर रहेगा।
सहरसा टाईम्स सिर्फ ख़बरें नहीं बनाता है बल्कि जिनको इन्साफ की दरकार है उसके साथ हरवक्त सिद्दत से खड़ा भी रहता है।सहरसा टाईम्स की वजह से आज जिला प्रशासन के आलाधिकारी की नींद टूटी और उन्होनें मौके पर कहरा के सी.ओ लम्बोदर झा को भेजा है।सी.ओ साहब सहरसा टाईम्स के साथ घूम-घूमकर पीड़ित परिवार को रास्ता दिलाने के लिए पड़ोसियों के साथ--साथ सहरसा टाईम्स से विमर्श करते रहे।उन्होने साफ़--साफ़ लहजे में कहा की सहरसा टाईम्स की वजह से ही वे यहाँ आये हैं और घटना को पूरी तरह से सच भी पा रहे हैं।तत्काल इन्होनें दो विकल्प निकालकर पड़ोसियों के सामने रखे हैं और आपस में मिल--बैठकर उन्हें समाधान के लिए दो दिनों का वक्त दिया है।प्रशासन हर हाल में बंदी बने इस परिवार को रास्ता दिलाकर रहेगा,सी.ओ साहब ने इसका पक्का भरोसा सहरसा टाईम्स को दिया है।
अभी इन्साफ का आधा रास्ता तैयार हुआ है।पीड़ित परिवार को पूरा इन्साफ दिलाने तक सहरसा टाईम्स उनके साथ खडा रहेगा।सच मानिए,इन्साफ की पूरी खबर के साथ हम एक बार फिर आपके सामने दो दिनों के भीतर हाजिर होंगे।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।