फ़रवरी 04, 2013

अपने ही घर में कैद है एक परिवार

बीते चार दिनों से एक परिवार के सभी सदस्य हैं अपने ही घर में कैद, देखो सरकार समाज का बदरंग चेहरा,अधिकारियों का टालू  रवैया  ......
मुकेश कुमार सिंह की कलम से--------
-इंसानियत अब मर चुकी है।रिश्तों के पाए कब के दरक चुके हैं।आज हम सहरसा के एक परिवार की ऐसी कहानी आपको दिखाने और बताने जा रहे हैं जिसे देख और सुनकर आप अपना कलेजा खुद पीट लेंगे।सहरसा के सदर थाना के रिहायशी मुहल्ला प्रताप नगर में एक परिवार अपने ही घर में पिछले चार दिनों से ना केवल बंदी बना हुआ है बल्कि घर से वह निकले तो आखिर कैसे इस उहापोह में सिसक और सुबकियां ले रहा है।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की घनी आबादी के बीच में बसे इस परिवार को बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं है।पड़ोसियों ने इस परिवार के घर के चारों तरफ या तो घर बना डाले या फिर ऊँची दीवारें खड़ी कर दी है।बताना लाजिमी है की अप्रैल 2012 से ही इस परिवार के सभी सदस्य बांस की सीढ़ी  लगाकर दूसरे की दीवार को लांघकर पढने या फिर किसी और काम के लिए जाते थे।लेकिन हैवानियत की इंतहा देखिये की बीते चार दिन से इन्हें सीढ़ी लगाने पर भी मनाही हो गयी है।यूँ बताते चलें की इस घर के मुखिया घर के एक अदद रास्ते के लिए बीते कई महीनों से अधिकारी से लेकर कोर्ट तक में अर्जी लगाते रहे लेकिन किसी का दिल आजतक नहीं पसीजा है।आज आलम यह है की यह परिवार अपने ही घर में बंदी की तरह है।यह घर सुकून के घर की जगह जेल में तब्दील है।सहरसा टाईम्स की पुरजोर दखल के बाद पुलिस के आलाधिकारी मौके पर जरुर पहुंचे लेकिन वे भी इस समस्या का समाधान मोहल्ले में पंचायत कर निपटाने का निर्देश देकर चलते बने।क्या होगा इस परिवार का।इस दर्द,जुल्म और ज्यादती को देखो सरकार। 
हम आपको लेकर सदर थाना के रिहायशी मुहल्ला प्रताप नगर में आये हैं।देखिये किस तरह से अनेकों घरों और दीवारों के बीच इस पीड़ित का घर छुपा हुआ है।यह घर सेवानिवृत शिक्षक कमल नारायण झा का घर है।इनके दो बेटे हैं।एक बेटा पशुपतिनाथ झा मुहाली में इंजीनियरिंग का छात्र है जबकि दुसरा गणपति झा पटना के ए.एन कॉलेज में स्नातक का छात्र है।गुरूजी को सात बेटियाँ हैं।छः की शादी हो गयी है जबकि एक अभी कुंवारी है।इस घर में गुरूजी अपनी पत्नी,एक कुंवारी बेटी,दो नाती और दो नतिनी के साथ रहते हैं।
गुरूजी ने जब अपने इस घर का निर्माण कराया था उस समय आसपास इतने घर नहीं थे और सब कुछ ठीक--ठाक चल रहा था।लेकिन धीरे--धीरे आसपास घर बनने लगे।आसपास लोग ऊँची---ऊँची दीवार भी बनाने लगे।बीते वर्ष 2012 के अप्रैल माह से गुरूजी की मुश्किल बढ़ गयी।इनके घर के चारों तरफ से लोगों ने घर बना लिया और दीवारें भी खड़ी कर ली।शांत और सौम्य स्वभाव के गुरूजी लोगों से मिन्नत करते रहे की उनको निकलने का रास्ता मिले लेकिन किसी ने उनकी एक ना सुनी और आखिरकार गुरूजी वर्ष 2012 के अप्रैल माह से अपने घर में ही कैद होकर रह गए।उसके बाद गुरूजी ने एस.डी.ओ कोर्ट से लेकर डी.एम और कमिश्नर तक रास्ते के लिए अर्जी लगाई लेकिन वहाँ से बस डेट पर डेट मिलता रहा।इस दौरान गुरूजी का पूरा परिवार बांस की सीढ़ी लगाकर ऊँची दीवार को लांघकर अपना---अपना काम करता रहा।गुरूजी को भरोसा था की एक दिन उनके साफ़ इन्साफ होगा और उन्हें आने--जाने के लिए रास्ता मिल जाएगा।लेकिन सुखद परिणाम सामने अभीतक कुछ भी नहीं आया था लेकिन एक बड़ी मुसीबत और आफत जरुर चली आई।
गुरुजी का परिवार जिधर से पिछले कई महीनों से निकल रहा था उसके स्वामी ने अपना घर बनाना शुरू कर दिया और पिछले चार दिनों से गुरूजी के घर के लोगों के आने जाने पर पाबंदी लगा दी।यानि अपने ही घर में कैद का आज चौथा दिन है।स्कूल--कॉलेज नहीं जा पाने की वजह से जहां बच्चों की पढाई रुक गयी है वहीँ घर में राशन--पानी का भी अभाव है।गुरूजी कमल नारायण झा रो---रोकर तो घर के अन्य लोग गुरूजी की पत्नी बुचनी देवी और गुरूजी की नतिनी पूजा कुमारी कातर स्वर में अपनी व्यथा सुनाते हुए सहरसा टाईम्स से इन्साफ की गुहार लगा रहे हैं।
अब गुरूजी की एक और नतिनी इस नन्हीं सी जान सौम्या को देखिये।जिन्दगी का सही माने भी इसे अभी नहीं पता।धन---दौलत,षड्यंत्र और दुनियावी गणित भूगोल से यह पूरी तरह से बेखबर है।अपनी तुतली आवाज में कहती है की रास्ता बंद हो गया है इसलिए वह स्कूल नहीं जा पा रही है।

सदर एस.डी.पी ओ अशोक कुमार दास
सहरसा टाईम्स की पुरजोर पहल और दखल के बाद मौके पर सदर एस.डी.पी ओ अशोक कुमार दास और इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे सहित पुलिस के थोक में कई जवान भी यहाँ पहुंचे और गुरूजी की मुसीबत को अपनी नंगी आँखों से देखा।पुलिस अधिकारी ने गुरूजी की मुश्किल को अपने बयान में स्वीकारा भी लेकिन उन्होनें अपनी तरफ से तत्काल किसी तरह के समाधान के लिए कोई पहल नहीं की।इनकी नजर में गुरूजी वर्ष 2012 से ही  सीढियों के रास्ते अपना काम कर रहे थे।पिछले तीन दिन से सीढ़ी हटा दी गयी है।इस मामले का निपटारा वे सामाजिक पंचायत से करवाएंगे।यानि इनका रवैया टालू और बेहद शर्मनाक था।सच मुंह बाए सामने खडा था लेकिन ये सारे अधिकारी अपनी ड्यूटी बजाकर यह से निकलना ही मुनासिब समझा।
कहते हैं की एक अच्छा पड़ोसी भगवान की तरह होता है।अगर सामने कोई दुर्जन पड़ोसी मिल गया तो वह आपके सुख चैन को डंस लेंगे।यहाँ तो गुरूजी सिर्फ और सिर्फ दुर्जन पड़ोसियों से घिरे दिख रहे हैं।सहरसा टाईम्स ने गुरूजी के परिवार को इन्साफ दिलाने के लिए उनके हक़ में आवाज बुलंद की है।जबतक गुरूजी को घर से निकलने का रास्ता यानि मुकम्मिल इन्साफ उनके परिवार को नहीं मिल जाता है हम उनके साथ सिद्दत से ना केवल खड़े रहेंगे बल्कि उनको इन्साफ दिलाकर रहेंगे।

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