कचरे में फना होती जिन्दगी |
सहरसा टाईम्स एक्सक्लूसिव--------
मुकेश कुमार सिंह, सहरसा टाईम्स
इस प्राणघाती और प्रलयंकारी ठंढ में कचरे की ढेर पर पड़ी दो इंसानी जिंदगियां इंसानियत को ना केवल शर्मसार कर रही है बल्कि आदमजात के मरे जमीर को धिक्कार---ललकार भी रही है।सहरसा रेलवे स्टेशन के समीप रेल पटरी के नीचे कचरे की ढेर पर दो व्यक्ति इस कदर सोये हुए हैं गोया कचरे की सल्तनत के वे दोनों बेताज बादशाह हों। हद की इंतहा तो यह है की भीड़ की शक्ल में लोग तमाशबीन हैं लेकिन कोई उन्हें वहाँ से उठाकर अस्पताल या कोई और वाजिब जगह ले जाने की जुगात में नहीं हैं। बड़ी मशक्कत बाद सहरसा टाईम्स ने इनदोनों को ना केवल यहाँ से उठवाया बल्कि यहाँ से उठवाकर अस्पताल भी पहुंचाया जहां अभी इनदोनों का इलाज चल रहा है।-
मुकेश कुमार सिंह, सहरसा टाईम्स
इस प्राणघाती और प्रलयंकारी ठंढ में कचरे की ढेर पर पड़ी दो इंसानी जिंदगियां इंसानियत को ना केवल शर्मसार कर रही है बल्कि आदमजात के मरे जमीर को धिक्कार---ललकार भी रही है।सहरसा रेलवे स्टेशन के समीप रेल पटरी के नीचे कचरे की ढेर पर दो व्यक्ति इस कदर सोये हुए हैं गोया कचरे की सल्तनत के वे दोनों बेताज बादशाह हों। हद की इंतहा तो यह है की भीड़ की शक्ल में लोग तमाशबीन हैं लेकिन कोई उन्हें वहाँ से उठाकर अस्पताल या कोई और वाजिब जगह ले जाने की जुगात में नहीं हैं। बड़ी मशक्कत बाद सहरसा टाईम्स ने इनदोनों को ना केवल यहाँ से उठवाया बल्कि यहाँ से उठवाकर अस्पताल भी पहुंचाया जहां अभी इनदोनों का इलाज चल रहा है।-
अपने----पराए का फर्क क्या होता है इसकी बानगी से आज हम आपको
दो--चार करा रहे हैं।देखिये इन दो अलग-अलग व्यक्ति को।रेलवे पटरी के कचरे
की ढेर पर किस तरह ये सोये हुए हैं।कहते हैं की जिसका कोई नहीं,उसका तो
खुदा है यारों।लेकिन यहाँ तो लगता है की खुदा भी इनदोनों के लिए नहीं
हैं।किस तरह से जिदगी बेजा और मजाक बनी यहाँ पर इंसानियत को तमाचा लगा रही
है।अगर इनका अपना घर होता,अपने स्वजन--परिजन होते तो शायद ये इस तरह से
कचरे पर निढाल नहीं हुए होते।हद की इंतहा तो यह है आने-जाने वाले भर नहीं
बल्कि भीड़ की शक्ल में लोग बस एक तमाशा समझकर इनदोनों को बस निहार रहे
हैं।
तमाशबीन बने लोगों से सहरसा टाईम्स ने यह सवाल किया की ये दोनों कडाके की
ठंढ में मर जायेंगे,आपलोग इन्हें उठाकर अस्पताल या कहीं और जगह क्यों नहीं
ले जाते।लोगों का कहना था की वे बाहर के लोग हैं।यहाँ तो कई लोग
मौजूद हैं,आखिर कोई और क्यों आगे नहीं आ रहा।उनकी नजर में यह काम
पुलिस-प्रशासन का है।हांलांकि लोगों का यह रुख देखकर सहरसा टाईम्स ने अपनी
जिम्मेवारी निभायी और अपने खर्चे पर इनदोनों को सदर अस्पताल पहुंचाया,जहां
अभी उनका इलाज चल रहा है।
ऊपर
वाले तूने देने में तो कोई कमी नहीं की लेकिन किसे क्या मिला यह मुकद्दर
की बात है।बेजा जिन्दगी के लिए आखिर कोई मेहरबां,कोई तारणहार ससमय सामने
क्यों नहीं आता।आज लोग मदद भी सामने वाले की सूरत और हैसियत देखकर आखिर
क्योंकर करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
THANKS FOR YOURS COMMENTS.