मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट: बीते कल
सहरसा में पुलिस की बर्बरता की इंतहा पर लोगों का गुस्सा न केवल फूटा
बल्कि लोगों ने सदर अस्पताल में घंटों बबाल भी काटे और मौके पर पहुंचे
तीन अधिकारियों को घंटों बंधक बनाए रखा..गुस्साए लोगों का आरोप है की
बीते 13 अक्तूबर को एक निर्दोष की गिरफ्तारी कर बनगांव थाने की पुलिस ने
बेरहमी से दो दिनों
तक हाजत में बंद कर के उसकी बेरहमी से पहले तो पिटाई की फिर आज सुबह जख्मी
शख्स को सड़क
किनारे लाकर लावारिश की तरह फेंक दिया और वहाँ से चलते बने.बनगांव
थानाध्यक्ष संजीव कुमार सहित
बनगांव पुलिस की बर्बरता और दादागिरी की इंतहा की इस घटना पर घंटों बबाल
हुआ.बनगांव थाना क्षेत्र के वसुदेवा गाँव के रहने वाले संजीव दास को जख्मी
हालत में ग्रामीणों ने सदर अस्पताल में भर्ती कराया है जहां उसकी स्थित
नाजुक बनी हुयी है.लोगों और परिजनों का कहना है की चोरी,लूटपाट और मारपीट
के एक झूठे मामले में पुलिस
ने संजीव दास को पहले तो गिरफ्तार करके ले गयी
लेकिन बाद में उसकी बेरहमी से पिटाई कर के उसे छोड़ दिया.मामला काफी विस्फोटक और यहाँ की तस्वीर काफी
भयावह होती लेकिन आज तमाम विरोधी दलों के द्वारा बिहार बंद की वजह से उन
लोगों का पूरा ध्यान सहरसा की बंदी में रहा इसलिए किसी का ध्यान इधर नहीं
खिंचा वर्ना हम अभी आपको कुछ और ही दिखा रहे होते.आपातकालीन कक्ष में
देखिये संजीव दास को किस तरह से बर्बर बनगांव पुलिस ने बेरहमी और निर्ममता
से उसकी पिटाई की है.उसके दोनों चुतर,छाती और पाँव में गंभीर जख्मों के
निशान मौजूद हैं जो पुलिस को यमराज साबित करने में समर्थ हैं.इस जख्मी और
पुलिस की काली करतूत को देखने पहले एस.डी.ओ,ए.डी.एम और एस.डी.पी.ओ साहब
आये.लेकिन लोगों ने इनकी एक न सुनी.इन्हें लोगों ने करीब दो घंटे तक अपनी
गिरफ्त में रखा.बड़ी मुश्किल से ये लोग अपनी--अपनी गाडी लेकर यहाँ से
भागे।फिर ये सभी डी.एम और एस.पी के साथ पुनः यहाँ आये.जख्मी संजीव की हालत
काफी नाजुक है.उसके परिजन बताते हैं की पुलिस उसे एक झूठे मामले में पकड़ कर
ले गयी और उसकी ऐसी पिटाई की उसका बचना मुश्किल है.पुलिस की बर्बरता की
कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती है.पुलिस वालों ने इसे पीट --पीट कर पहले तो
अधमरा कर दिया फिर उसे वसुदेवा गाँव के समीप एक सड़क के किनारे लाकर फेंक
दिया
सहरसा जलते--जलते बच्च गया.अगर पुलिस ने अपना रवैया नहीं बदला तो मधुवनी से बड़ी घटना यहाँ घटित होकर रहेगी.बताते चलें की बीते 29 दिसंबर 2011 को पुलिस और प्रशासन की नादानी से सहरसा में लगातार दो दिनों तक छात्र और पुलिस---प्रशासन के बीच संग्राम छिड़ा था.उस समय भी काफी बर्बादी हुयी थी लेकिन अब उस घटना से बड़ी घटना की आशंका कुलाचें भर रही है.जाहिर तौर पर पुलिस--प्रशासन के अधिकारियों को अपनी आदत और कार्यशैली में बदलाव लाना होगा,तभी ऐसी बड़ी घटनाओं को रोका जा सकेगा.
सहरसा जलते--जलते बच्च गया.अगर पुलिस ने अपना रवैया नहीं बदला तो मधुवनी से बड़ी घटना यहाँ घटित होकर रहेगी.बताते चलें की बीते 29 दिसंबर 2011 को पुलिस और प्रशासन की नादानी से सहरसा में लगातार दो दिनों तक छात्र और पुलिस---प्रशासन के बीच संग्राम छिड़ा था.उस समय भी काफी बर्बादी हुयी थी लेकिन अब उस घटना से बड़ी घटना की आशंका कुलाचें भर रही है.जाहिर तौर पर पुलिस--प्रशासन के अधिकारियों को अपनी आदत और कार्यशैली में बदलाव लाना होगा,तभी ऐसी बड़ी घटनाओं को रोका जा सकेगा.
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