बिना की सरकारी मदद के चल रहा है यह अनाथ आश्रम.....
लोगों की दया और चंदे पर टिका है,यहां के बच्चों का जीवन और भविष्य.....
लोगों की दया और चंदे पर टिका है,यहां के बच्चों का जीवन और भविष्य.....
सहरसा से मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-----
आज हम एक ऐसे अनाथ आश्रम की कहानी लेकर हाजिर हो रहे है जिसे पढ़कर आप रोयेंगे, सुबकेंगे, तड़पेंगे और सम्भव हुआ तो मदद के लिए आगे भी आएंगे। शिवेंद्र कुमार और बबली देवी निःसंतान थे. 2008 कुसहा त्रासदी हुयी। उस भीषण त्रासदी में बहुतो बच्चे अनाथ हुए।
इस निःसंतान दम्पति ने तब फैसला लिया की उन्हें बच्चे नहीं है तो क्या हुआ? वे अनाथ बच्चों के ही माता--पिता बनेंगे। शुरू में इन्हें कुसहा त्रासदी के सताये पांच बच्चे मिले, जिन्हें इन्होने एक भाड़े के मकान में पालना शुरू किया। मुझे इस बात की जानकारी मिली और मैं 2008 के दिसम्बर माह में शिवेंद्र और उनकी पत्नी से मिला और उनकी सारी कहानी सुनी।
उस वक्त मैंने और मेरे कुछ मित्रों ने इस महान दम्पति को सलाह दिया की आप एक संस्था बना लो, जिसका नियमानुसार निबंधन हो। हमारी सलाह मानकर इस दम्पति ने इन्द्राक्षी फाउंडेशन कर के एक संस्था बनायी फिर इस अनाथ आश्रम का सफ़र शुरू हुआ। शुरू में बच्चे कम थे लेकिन बाद में इसकी संख्यां में इजाफा होता चला गया।
फाइल फोटो |
इस क्रम में जगह बदल--बदल कर यह आश्रम चलता रहा । लेकिन 6 जनवरी 2011 को तत्कालीन जिलाधिकारी आर.लक्षमणण को बड़ी कोशिशों से मना कर हमने इस अनाथ आश्रम को जिला समाहरणालय के ठीक सामने खाली पड़े सरकारी भवन में शुरू करवा दिया । अबतक इस आश्रम में 26 बच्चे हो गए थे । पुलिस और प्रशासन को जहां कोई अनाथ बच्चा मिलता था वे उस बच्चे को इसी आश्रम में डालकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते थे । बताना बेहद जरुरी है की इस दौरान इस संस्था को किसी भी तरह की सरकारी और प्रशासनिक मदद नहीं मिलती थी । हमारी खुद की मदद, हमारे कुछ मित्रों की मदद और चंदे से यह अनाथ आश्रम चलता रहा । पर्व और त्यौहार भी इस आश्रम में हमारी कोशिश से बेहतर तरीके से मनता रहा । 13 मार्च 2011 को अनाथ आश्रम में पल रही एक गूंगी बच्ची नीलम की शादी हमने अपनी महती कोशिश से पुदीन कुमार से करायी । इस शादी में बच्ची का कन्यादान हमने तत्कालीन जिलाधिकारी देवराज देव से करवाई ।
बाल संरक्षण आयोग की सदस्या अर्पणा सिंह इस शादी में बढ़--चढ़कर हिस्सा लीं ।देवराज देव ने इस मौके पर अंतर्जातीय विवाह के नाम पर 25 हजार और कन्या विवाह योजना मद से 10 हजार का चेक अलग से इस दंपति को दिए ।
बिना सरकारी मदद के चलने वाले इस अनाथ आश्रम को हम अपनी हैसियत से ज्यादा अनवरत देते रहे ।इस आश्रम को हमारी पहल से बहुतो समाजसेवी जैसे प्रवीण आनंद, सुभाष गांधी, राजेश कुमार सिंह, सोनू सिंह तोमर और भी कई लोग मदद करने लगे ।
बीते 22 जनवरी को एक साथ दो अनाथ बच्चियों की शादी इस आश्रम में हुयी । इसमें से एक बच्ची सुमन जिसके दोनों पाँव कटे हुए थे से भानु यादव और रंजू कुमारी की बेचन मिश्र से शादी हुयी ।इस शादी में मृदुला मिश्रा,रिटायर्ड जज,पटना हाईकोर्ट सह भूमि प्राधिकार की वर्तमान चैयरमेन शामिल हुयीं । शादी का खर्चा मेरे अलावे कई लोगों ने उठाया ।
लेकिन सब से अधिक और बड़ी भूमिका छातापुर बीजेपी विधायक नीरज कुमार"बबलू"और उनकी विधान पार्षद पत्नी नूतन सिंह ने निभायी । शादी के बाद दिव्यांग सुमन "ससुराल नहीं जाउंगी" की जिद पर अड़ गयी । वजह यह थी की उसकी ससुराल में शौचालय नहीं था । फिर डीडीसी से मिलकर सरकारी योजना से सुमन की ससुराल में शौचालय बनवाने का आदेश लिया गया, तब सुमन अपनी ससुराल गयी ।दोनों बच्चियां अपनी ससुराल में अभी बेहद खुश हैं ।जाहिर सी बात है की उनके सूखे सपने और मरे जज्बात को सुर्खाबी पर लग गए हैं ।
शिवेंद्र के साथ सहरसा टाईम्स के एडिटर चीफ मुकेश सिंह |
हमने बहुतो कोशिश की,किसी तरह से इस संस्था को सरकारी मंजूरी मिल जाए लेकिन पटना में इस संस्था की फाईल 2010 से ही पड़ी हुयी है ।पैरवी और पैसे की कमी की वजह से इस संस्था का विधिवत सरकारी निबंधन नहीं हो सका है ।इस संस्था की फाईल बस इस टेबुल से उस टेबुल पर उछल--कूद कर रही है ।
सबसे अहम् बात एक साथ हुयी दोनों बच्चियों की शादी को लेकर यह हुयी है की महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने काफी तारीफ़ की है । राज्यपाल ने अपने पत्र में इस आश्रम का जिक्र करते हुए लिखा है की इस शादी से इन अनाथ बच्चियों के जीवन में ना केवल नया सवेरा आएगा बल्कि ये अपना जीवनयापन भी खुशी--खुशी कर सकेंगे ।उन्होनें उक्त वैवाहिक कार्यक्रम की सफलता की कामना भी की है ।
एक अनाथ आश्रम में अबतक तीन शादियां हो चुकी है । लेकिन विडम्बना देखिये की अभीतक इस आश्रम को कोई सरकारी मदद नहीं मिली है । आप यह जानकार हैरान हो जाएंगे की समय--समय पर सरकारी बड़े अधिकारी इस संस्था के संचालक को डराने--धमकाने और मारने तक के लिए यह कहकर चले आते हैं की यह संस्था विध--सम्मत, यानि वैधानिक नहीं है । अगर यह संस्था वैद्य नहीं है तो, अभीतक इस संस्था में कई विधायक, सांसद, मंत्री, विविध ओहदेदार लगातार क्यों आते रहे हैं और संचालक की पीठ क्यों थपथपाते रहे हैं ?
महामहिम राज्यपाल के पत्र आने के बाद इस संस्था के संचालक दम्पति को राष्ट्रपति पुरूस्कार मिलने की संभावना भी बढ़ गयी है ।हमारी महती कोशिश इसको लेकर जारी है ।
इस आलेख के माध्यम से हम कई सवाल खड़े कर रहे हैं ।पहला सवाल जब इस अनाथ आश्रम में इतने पुनीत कार्य हो रहे हैं, तो,सरकार इसका निबंधन क्यों नहीं कर रही है ?दूसरा सवाल आखिर और बड़े पैसे वाले इस आश्रम की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे ?तीसरा सवाल आखिर क्या सोचकर पुलिस और प्रशासन के मुलाजिक कहीं मिले अनाथ बच्चे को इस आश्रम में पहुंचाते रहे ?चौथा सवाल क्या सरकारी कागज और कंप्यूटर में दर्ज संस्था ही वैद्य होती है ?पांचवां सवाल जो संस्था इतने दिनों से सेवा दे रही है,उसके साथ सरकारी अन्याय क्यों ?छठा सवाल जिस संस्था में खुद डीएम कन्यादान करते हों,उसे वैद्य संस्था बनाने से क्यों है परहेज ?
सातवां सवाल जिस संस्था में हुयी शादी के गवाह बड़ी हस्तियां बनीं,उसे सरकार कब करेगी वैद्य ?आठवां सवाल जिस संस्था की तारीफ़ में महामहिम राज्यपाल तारीफ़ में कसीदे कढ़ रहे हों, उसे अवैद्य संस्था कहना कहाँ तक है मुनासिब ?
आखिर में हम राज्यवासियों और देश वासियों से यह जानना चाहते है की आरा--तिरछा कर के सरकारी कागज़ पर निबंधन कराकर संस्था के नाम पर पैसे का खेल--खेलने वाले लोग ही सरकार की नजर में कबतक सही रहेंगे ?हमने कई सरकारी संस्था को देखा है,जहां अन्याय हो रहे हैं लेकिन उसकी फ़िक्र सरकार को नहीं है ।ऐसी सरकारी संस्थाओं में लगातार अनाथ बच्चों की मौत होती है लेकिन उसकी जांच हो रही है के तकिया कलाम से ज्यादा कुछ भी फलाफल नहीं निकलता ।हमने आजतक किसी सरकारी संस्था पर बड़ी कार्रवाई होते नहीं देखा है ।
महामहिम की हौसला आफजाई से इस अनाथ आश्रम को अकूत संबल मिला है ।हम यह उम्मीद करते हैं की सरकार इस दंपति को उनके त्याग और तपस्या के बदले,इसबार जरूर सरकारी निबन्धन का तोहफा देगी ।आखिर कबतक दान और चंदे पर इस अनाथ आश्रम में मासूम नौनिहालों के मनसुख सपने यूँ ही दम तोड़ते रहेंगे ।
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