सहरसा पुलिस हफ्ता और महीना वसूली में है माहिर
लेकिन ज्यादा रोजाना वसूली पर रहती है नजर
किसी संगीन मामले के पटाक्षेप में फिस्सडी साबित रहने वाली पुलिस को हरदम चाहिए नजराना
हांलांकि नोटबन्दी से थाने में अभी है मंदी का असर
यहां के दारोगा खुद को समझते हैं डीजीपी
जातीय भावना,अगड़े--पिछड़े की घृणित सोच से ग्रसित अधिकारियों की वजह से आमलोगों को न्याय मिलना मुश्किल
सहरसा से मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---->>
यूँ तो पुरे जिले के थानों की एक ही राम कहानी है लेकिन सदर थाना का रिकॉर्ड अव्वल है ।कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सह सहरसा जिला मुख्यालय का यह सदर थाना है ।आप समझ सकते हैं की यह कितना महत्वपूर्ण थाना है ।लेकिन इस थाने में किसी घटना के घटित होने पर दफा लगाने की भी बोली लगती है ।इस थाने की यह परम्परा रही है । मारपीट की घटना,एक्सिडेंट,छेड़खानी आदि की घटनाओं में रोजाना आमदनी होती है ।वाहन चेकिंग और ओवरलोडिंग से भी अच्छी कमाई होती है ।ह्त्या,अपहरण,छिनतई और लूट की घटनाओं में अगर नामजद अपराधी हैं तो उसे पकड़ने के नाम पर कमाई होती है ।अगर FIR में कोई नामजद नहीं है,तो फिर इन वर्दी वालों की चल निकलती है ।ये थोक में निर्दोषों को पकड़ कर लाते हैं और फिर पैरवी--पैगाम और नजराने पर उनकी दरियादिली से रिहाई होती है ।
रात्रि में कमाई के अवसर कुछ ज्यादा होते हैं । लेकिन ये पुलिस वाले कोई अवसर नहीं गंवाते । वैसे ये कमाई के अवसर तैयार करने में भी माहिर होते हैं ।जमीन की दलाली में खूब कमाई होती है ।सदर थाना के पूर्व थानेदार संजय सिंह कमाई में एक शानदार रिकॉर्ड बनाकर यहां से गए हैं । जमीन के फंसे कई मामलों के निपटारे कर उन्होनें लाखों कमाए लेकिन बहुतो मामलों के निपटारे पैसे लेकर भी वे नहीं कर पाये ।जिनकी जमीन का निपटारा नहीं हो सका और जिनके रूपये फंसे हैं,वे सदर थाना आते हैं लेकिन निराश होकर लौट जाते हैं ।ना वो नगरी ना वो ठाम ।संजय सिंह तबादले के बाद भागलपुर जोन जा चुके हैं और सदर थाने के अब नए थानेदार हैं भाई भरत कुमार ।हमने आपको यह बताने का अभीतक प्रयास किया है की पुलिस की रोजाना कमाई के कई जरिये हैं ।यहां बताना बेहद जरुरी है की इस कार्य में कुछ तथाकथित पत्रकार भी संलिप्त हैं ।
हमने कुछ दिन पूर्व सहरसा के होटलों में फल--फूल रहे सैक्स रैकेट को लेकर एक आलेख लिखा था ।उस आलेख को मैंने सदर थाने के ह्वाट्स एप ग्रुप में डाल दिया ।हमारे आलेख से तिलमिलाए प्रभारी थानाध्यक्ष नितेश कुमार ने हमें उस ग्रुप से रिमूव कर दिया ।वैसे मुझे उस ग्रुप से किसने जोड़ा था,इसकी जानकारी भी मुझे नहीं है ।वैसे भी ऐसे घृणित ग्रुप से मैं अलग रहना अपने लिए ज्यादा मुफीद समझता हूँ ।मैं अक्सर थाना स्तर के अधिकारी से एक दूरी पसन्द करता हूँ ।चूँकि मेरी नजर में यह जगह इन्साफ देने की जगह दलाली की मंडी है ।मैंने प्रभारी थानेदार को फोन लगाया की भाई मुझ नाचीज को ग्रुप से आपने बाहर का रास्ता क्यों दिखाया ।तो,जनाब ने कहा की पुलिस कहाँ हफ्ता वसूली करती है,उसका मेरे पास क्या प्रमाण है ? जनाब ऐसे बात कर रहे थे गोया हमारी बातचीत एसपी,आईजी से नहीं डीजीपी से हो रही हो ।हमने उन्हें बताया की कुछ जगहों का उसमें जिक्र है जहां हफ्ता और महीना वसूली होती है ।वैसे वे इतने बड़े अधिकारी नहीं हैं,जिन्हें हम हर जगह की सीडी बनाकर दें ।मैंने एक एसआई से ज्यादा मुंह लगाना ठीक नहीं समझा और बात वहीं खत्म कर दी ।लेकिन इस एसआई की फितरत के बारे में थोड़ा बताना लाजिमी है ।इस अधिकारी ने कुछ माह पूर्व न्यूज 24 के पत्रकार अमित कुमार से बदसलूकी की ।पंचायत चुनाव के काउंटिंग दौरान एक प्रतिष्ठित दैनिक अखबार के पत्रकार सुशील झा से बदसलूकी और मारपीट मई ।समकालीन तापमान के पत्रकार तेजस्वी ठाकुर से भी इनका विवाद हुआ है ।यही नहीं कई और पत्रकारों से भी इनका तू--तू मैं--मैं हो चुका है ।
भाई भरत दो माह से सदर थानाध्यक्ष हैं ।शालीन व्यक्ति हैं और काम करना चाहते हैं ।लेकिन इनको गाईड लाईन नितेश कुमार से मिलता है ।यूँ सही मायने में थाने से फिलवक्त पिछले दरवाजे से कमाई से ज्यादा जातिगत और अगड़े--पिछड़े की बू आ रही है ।
अब जानिये की पुलिस हफ्ता और महीना वसूली कहाँ से करती है ।एसपी ऑफिस के बेहद करीब कचहरी ढ़ाला पर गांजे का कारोबार होता है । गांधी पथ के पोखर के आसपास,सराही मोड़, बेंगहा,मछली पट्टी,फकीर टोला,सहरसा बस्ती,रिफ्यूजी चौक,चांदनी चौक,बटराहा, सिमराहा,बोरापट्टी,हटियागाछी सहित कई अन्य जगहों पर शराब बेची जाती है ।आखिर शराब की बिक्री बिना पुलिस की सहमति या सहयोग के कैसे होती है?इसे बस समझने की जरुरत है ।सहरसा गेस्ट हॉउस,दिल्ली रेस्ट हॉउस,वेलकम होटल,एम्बेसी होटल,मनोरमा,कोसी टूरिस्ट होटल सहित सहरसा के दर्जनों होटल,या यूँ कहें लगभग सभी होटल में देह का कारोबार होता है ।अच्छे घराने की लड़की प्रेमपाश में,या पैसे की खातिर अपना देह परोस रही हैं ।होटल के रजिस्टर की रोजाना चेकिंग नहीं होती है ।अगर चेकिंग होती है,तो,सेटिंग से ।जिस काम को किसी भी सूरत में नहीं होने देना चाहिए ।जिस काम से हमारी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है ।उस काम को पुष्पित और पल्लवित किया जा रहा है,महज चन्द नोटों की खातिर।
जहांतक मुझे जानकारी है CRPC की धारा 157 के तहत थानाध्यक्ष किसी भी मामले और इस तरह के मामले की जांच या तो खुद करेंगे,या फिर अपने मातहत से कराएंगे । हाँ!एसपी के विशेष निर्देश पर एसडीपीओ जांचकर्ता बन सकते हैं ।लेकिन मामले में पहले से बहुत ही पेंच है ।सेक्स रैकेट का पर्दाफाश जिस सहरसा रेस्ट हॉउस में हुआ,उसका जिक्र आवेदन के सबसे नीचे है ।सबसे चौंकाने वाली बात यह है की पीड़िता ने पिछले साल भी एक केस महिला थाना में किया था,जहां उसने अपना हस्ताक्षर बनाया था ।लेकिन इस बार के आवेदन में उसके अंगूठे के निशान हैं ।यानि गेम बड़ा है ।हांलांकि इस मामले में बेहद दबाब के बाद रेस्ट हॉउस के मालिक को जेल भेजा गया है ।लेकिन पीड़िता से कातिब के माध्यम से ऐसा आवेदन लिखाया गया है और जिसपर FIR हुआ है,उसमें कोई दम नहीं है ।इतने बड़े मामले को बड़ी समझदारी से कमजोर किया गया है ।
जब संजय सिंह,इस थाने के थानाध्यक्ष हुआ करते थे,तो,उनकी तूती बोलती थी ।उन्होनें लाखों में अवैद्य कमाई की ।फिलवक्त सहरसा के ही एक मामले को लेकर भागलपुर प्रक्षेत्र में वे निलंबित हैं ।संजय सिंह ने बहुत से जमीन के निपटारे मामले में बहुतों से पैसे लिए थे जिनमें से बहुतों का काम नहीं हुआ ।वे लोग सदर थाने संजय सिंह को ढूंढने आते हैं ।लेकिन "का वर्षा जब कृषि सुखानी" ।संजय सिंह फुर्र हो चुके हैं।
इधर सदर थाने से जातिगत और अगड़े--पिछड़े की बू आ रही है ।नए थानाध्यक्ष भाई भरत कुमार से हमारा आग्रह है की वे अपने कार्य क्षेत्र को पहले समझें ।अपना सूचना तंत्र मजबूत करें ।मुखबिर बनाएं और कोशिश करें की नोटबंदी की इस मार में ईमानदारी से जनता की सेवा ज्यादा से ज्यादा हो ।गला दबाकर या किसी की खेत गिरवी रखवाकर कमाई ना करें ।हमारी दुआ है की भाई भरत खुद को एक काबिल ऑफिसर साबित करने के साथ--साथ ईमानदारी का परचम लहराएँ । जरूरतमंदों की वे ज्यादा से ज्यादा दुआ बटोरें ।
सराही तो बदमाश और शराब माफिओ का अड्डा बसन गया है।
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