विवेक सिंह सहरसा टाईम्स: ट्रैक्टर हादसे में यूँ तो बारह लोग मारे गए हैं लेकिन हम
आपको उस अभागे हरिलाल यादव के घर लेकर आये हैं जिनके घर दर्द की सुनामी आई
है.हरिलाल की पत्नी सहित उनके घर के छः लोग इस हादसे में मारे गए हैं.खुद
हरिलाल भी उस हादसे वाले ट्रैक्टर पर सवार थे लेकिन उनकी जान बच गयी.इस घर में दर्द की सुनामी आई है.पीड़ित के घर
अधिकारियों का तांता लगा हुआ है. ये सभी सरकारी कागजात दुरुस्त करने में
जुटे हुए हैं. हरिलाल के घर एक तरफ जहां सरकारी बाबू सरकारी कागजात बनाने में मशगूल हैं
वहीँ छः लाश को एक जगह रखकर रोदन और कन्द्रण हो रहा है.घर के शेष बचे लोगों
का कलेजा फट रहा है.इस घर की तीन बच्चियां और तीन महिलायें इस दुनिया से
अचानक विदा हुयी हैं.घर के लोग तो दर्द में डूबे हुए हैं ही पड़ोस और गाँव
के लोग भी मातम में डूबे हुए हैं.इस अभागे परिवार पर दुर्गा पूजा के पावन
मौके पर गम का ऐसा पहाड़ टूटा है जिसकी कल्पना मात्र से ही रूह थर्रा जाती
है.इस हादसे में इक्कीस लोग जख्मी हुए हैं
जिनमें से तीन की स्थिति अभीतक नाजुक बनी हुयी है जिसमें से दो जख्मियों को
बेहतर ईलाज के लिए PMCH रेफर किया गया है.
सरकारी बाबू अभी पीड़ित परिवार को दाह संस्कार के लिए सभी मृतकों के लिए कबीर
अन्तियेष्टि योजना से अलग-अलग डेढ़ हजार और पारिवारिक सुरक्षा योजना से बीस
हजार रूपये दिए जा रहे हैं.चूँकि मृतकों को राज्य सरकार ने डेढ़--डेढ़ लाख
रूपये मुआवजे के तौर पर देने की भी घोषणा उसी रात ही कर दी थी इसलिए उसके
मुताल्लिक भी कागजात तैयार किये जा रहे हैं.पीड़ित के घर अधिकारी भी खासे
दुखी हैं और सरकारी प्रक्रिया की जानकारी देने के अलावे वे यह भी कह रहे
हैं की इस घटना से वे भी काफी मर्माहत हैं.
एक तरफ जहां दुर्गा पूजा की वजह से चहुँदिश हर्षौल्लास और ख़ुशी का माहौल है वहीँ एक परिवार का सबकुछ पल में खत्म हो चुका है.जिन्दगी से ऐसा दर्द आ लगा है जिससे उबर पाना हरिलाल के लिए पहाड़ खोदकर दूध निकालने के समान है.माँ दुर्गा मौत की ईबारत लिख चुकी है.अब हरिलाल को कम से कम वह इतनी ताकत बख्से जिससे वह इस दर्द को ना केवल सह सके बल्कि उससे उबार भी सके.
एक तरफ जहां दुर्गा पूजा की वजह से चहुँदिश हर्षौल्लास और ख़ुशी का माहौल है वहीँ एक परिवार का सबकुछ पल में खत्म हो चुका है.जिन्दगी से ऐसा दर्द आ लगा है जिससे उबर पाना हरिलाल के लिए पहाड़ खोदकर दूध निकालने के समान है.माँ दुर्गा मौत की ईबारत लिख चुकी है.अब हरिलाल को कम से कम वह इतनी ताकत बख्से जिससे वह इस दर्द को ना केवल सह सके बल्कि उससे उबार भी सके.
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