जनवरी 19, 2013

सरकारी कम्बल का तमाशा

सहरसा टाईम्स की खास रिपोर्ट----

मुकेश कुमार सिंह : रेकॉर्ड तोड़ इस कडाके की ठंढ में सरकार ने सहरसा जिले की 18 लाख से ज्यादा आबादी को ठंढ से लड़ने के लिए 241 कम्बल भेजे। आप यह आंकड़े देखकर चौंकिए मत।बात इतने पर ही खत्म नहीं हो रही। हद की इंतहा तो यह है की एक तरह से कहर बरपाती ठंढ अब जाने को है लेकिन इन कम्बलों का अभीतक वितरण जरुरतमंदों के बीच नहीं किया जा सका है।  इस साल कडाके की लहू को जमा देने वाली प्राणघाती ठंढ की अनेकों तस्वीरें सहरसा टाईम्स ने अपने दर्शकों को कई बार दिखाया है। 
सहरसा जिले के दस प्रखंड में 153 पंचायत,नगर परिषद् के 40 वार्ड और सिमरी बख्तियारपुर नगर पंचायत के 15 वार्ड हैं। जिले की कुल आबादी की बात करें तो आंकडा 18 लाख से कुछ ज्यादा का है।इतने बड़े जिले के लोगों को ठंढ से लड़ने के लिए सरकार की तरफ से महज 241 कम्बल मिले। आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की कम कम्बल की वजह से इन कम्बलों को कहाँ और कैसे बांटा जाए,यह अभीतक मुसीबत बनी हुयी है।
मिसबाह बारी,डी.एम सहरसा
सहरसा टाईम्स ने सरकारी कम्बल को लेकर मिसबाह बारी,डी.एम सहरसा से बातचीत की तो उनका कहना था की सरकार की तरफ से उन्हें एक लाख की राशि प्राप्त हुयी थी जिसमें इतने कम्बल ही खरीदे जा सके।इनकी मानें तो सारे कम्बल बांटे जा चुके हैं।लेकिन यह डी.एम साहब सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं। इन्होनें कहा की वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी के समय आये कुछ कपडे और चादर बचे थे,उसका वितरण भी इस ठंढ में कराया गया।बड़ा सवाल यहाँ यह भी है की कुसहा त्रासदी के मारे थोक में आज भी ऐसे अभागे परिवार हैं जो आजतक किसी तारणहार की बाट जोह रहे हैं। आखिर उस वक्त के इन बचे सामानों को उन पीड़ितों तक क्यों नहीं पहुंचाया गया। वैसे हाकिम अलग से कम्बल के आवंटन के लिए सरकार को लिख भी रहे हैं। भगवान जाने अगर आवंटन मिल भी गया तो वे कम्बल आगे कब और किस मौसम में बांटेंगे।
राजद जिला महासचिव क्षत्री यादव
 इस मुद्दे पर हमने विरोधी दल के लोगों को भी टटोलना चाहा। विरोधी दल के राजद के जिला महासचिव क्षत्री यादव का साफ़ कहना है की सरकार गरीब विरोधी है। सिर्फ नारे से काम चलाया जा रहा है। इतने कम कम्बल गरीबों के किसी काम का नहीं है।अच्छा होता जो ये सारे कम्बल जिले के अधिकारी आपस में ही बाँट लेते।
सहरसा टाईम्स ने एक बड़े खेल से आपको रूबरू कराया है। वैसे सबकुछ सरकार पर ही छोड़ना जायज नहीं है। इस नेक काम के लिए निजी संगठनों के साथ---साथ समाज के अन्य समृद्ध तंत्र को भी मजबूती से आगे आना चाहिए था। जाहिर तौर पर समाज को भी अपनी जिम्मेवारी का दायरा बढ़ाना होगा।

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