जनवरी 15, 2013

अस्पताल है या मजाक

मुकेश कुमार सिंह, एक्सक्लूसिव रिपोर्ट--------
सहरसा सदर अस्पताल इनदिनों पूरी तरह से मजाक बना हुआ है। यहाँ पर कोई नियम--कायदा नहीं है। सबकुछ बस भगवान् भरोसे है। इस अस्पताल के प्रसव कक्ष और आपातकालीन कक्ष में रुम हीटर नहीं है। इस जानलेवा ठंढ से बचने के लिए इन कक्षों में अलाव जलाकर मरीज और मरीज के परिजन यहाँ अपनी जिन्दगी बचाने की कवायद कर रहे हैं। यह सारा तमाशा और जानलेवा खेल नियम के बिलकुल खिलाफ हो रहा है। लेकिन स्वास्थ्य प्रशासन इससे पूरी तरह बेखबर बना खामोशी से महज तमाशबीन है। जाहिर तौर पर धुएं से मरीजों और नवजात बच्चा--जच्चा को जान का खतरा है। यही नहीं प्रसव कक्ष में महिला बेड पर पुरुष कब्जा जमाकर हैरतंगेज तरीके से आराम भी फरमा रहे हैं, गोया वे खुद गर्भवती हों,या फिर कोई प्रसूता।
                           सबसे पहले आपातकालीन कक्ष का नजारा। खिये इस कक्ष का आलम।अलाव जल रहा है और पुरे कक्ष में धुंआ भरा हुआ है।सरकार के निर्देश के मुताबिक़ कम से कम तीन जगहों आपातकालीन कक्ष,प्रसव कक्ष और ऑपरेशन कक्ष में रूम हीटर की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन यहाँ सबकुछ हवा--हवाई है।अब चलिए महिला प्रसव कक्ष।देखिये यहाँ भी जोगाड़ टेक्नोलोजी से अलाव का इंतजाम किया गया है।यहाँ पर बच्चा--जच्चा दोनों की जान खतरे में है।लेकिन क्या करें जब रूम हीटर या फिर कोई बड़ी व्यवस्था नहीं हो तो इस कड़ाके की ठंढ में जान बचाने के लिए कुछ तो करना पडेगा ही।नूतन देवी और कुंती देवी जैसी कई महिलायें कह रही हैं की यहाँ पर कोई व्यवस्था नहीं है।जान बचाने के लिए इस तरह से आग जलाना उनकी विवशता है।।
मोहम्मद सद्दीक गर्भवतीके बेड पर

अब सहरसा टाईम्स की एक्सक्लूसिव तस्वीर से हम आपको रूबरू करा रहे हैं। देखिये यह है गायनिक कक्ष। इस कक्ष के बेड पर या तो गर्भवती या फिर प्रसूता महिला को होना चाहिए लेकिन इस बेड पर मोहम्मद सद्दीक भाई ने ना केवल कब्ज़ा जमा रखा है बल्कि इस बेड पर वे लोटन कबूतर भी बने हुए हैं। हमने जब यह तस्वीर देखी तो पहले तो हमारा कलेजा मुंह को आ गया लेकिन जब हम थोड़ा संभले तो इस अस्पताल की दुर्दशा पर एक मुश्ते तरस आया। हमने सद्दीक भाई को काफी कुरेदा की वे गर्भवती हैं या फिर प्रसूता।गर्भवती है तो सिस्टर ने क्या कहा और प्रसूता है तो उन्हें लड़का हुआ या फिर लड़की। लेकिन सद्दीक भाई बड़े मंझे हुए खिलाड़ी थे। बस हमें यूँ ही उलझाते रहे और कुछ भी साफ़---साफ़ नहीं बताया। ज्यादातर वे खामोश ही रहे। लेकिन वे इतना जरुर कह गए की इस बेड की महिला कहीं गयी थी इसलिए वे यहाँ पर आसीन हो गए। आप इनकी हालत को देखें।
इस अस्पताल में जो भी हो रहा है, हमारी समझ से बहुत कम हो रहा है।इस अस्पताल का कोई माई--बाप नहीं है।यह तरह--तरह के कारनामे करने वाला और गुल खिलाने वाला अस्पताल है।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।