सहरसा का नाथ मंदिर |
वट सावित्री व्रत उत्तर भारतीय स्त्रियों के लिये सबसे महत्वपूर्ण दिन तो होता ही है लेकिन मिथलांचल में ये और भी खाश होता है. सहरसा के नाथ मंदिर प्रांगन में आज सुबह से ही बरगद पेड़ के नीचे पूजन पाठ के लिये महिलाओं की भीर लगी रही. वट सावित्री व्रत के दिन पतिव्रता स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है. सभी उलझनों से बचाए रखने व दम्पतजीवन को खुशहाल रखने के लिये इस दिन वट वृक्ष का पूजन किया जाता है. वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है. पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है. पाराशर मुनि के अनुसार वट मुले तोपवासा ऐसा कहा गया है. पुरानों में यह स्पस्ट किया गया है की वट में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो का वास है. इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है. जाहिर तौर से आज भी स्त्रियों में इतनी संवेदना है की अपने पति की लम्बी आयु और सलामती के लिये हमेशा दुआ मांगती है लेकिन इसी सामाज में महिलाओं के साथ अन्याय और शोषण भी होता है उस समय हमारी संवेदना क्यों मर जाती है.
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