रीना,कुसहा त्रासदी में अनाथ हुई बच्ची. |
18 सितम्बर 2008 की कुसहा त्रासदी में अपना घर--बार और माँ--बाप सहित अपने स्वजनों को गंवाकर अनाथ हुए सैंकड़ों बच्चों में से कुछ बच्चों को सहरसा के एक दंपत्ति आकांक्षा अनाथ आश्रम में रखकर विगत तीन वर्षों से परवरिश कर रहे हैं.निः संतान यह दंपत्ति सेवा भाव से पहले तो चुन--चुनकर इन बच्चों को इकठ्ठा किया फिर जो कुछ खुद के पास था उसे झोंक कर इन बच्चों की परवरिश की लेकिन सफ़र मुश्किल था और इनके पास साधन नहीं थे.बाद में इस दंपत्ति ने समाज के लोगों से चंदे और भीख मांगकर इन बच्चों की परवरिश की.लेकिन किसी भी चीज की हद और सीमा होती है.अब चंदे के दौर को भी ग्रहण लग चुका है.बच्चे धीरे--धीरे बड़े हो रहे हैं.ऐसे में इन्हें भोजन के साथ--साथ उचित शिक्षा की भी दरकार है.लेकिन करें क्या,हाथ तो खाली है.आज इसी अनाथ आश्रम का संचालक इन बच्चों को साथ लेकर सहरसा के डी.एम से इनके जीवन रक्षा की फ़रियाद करने डी.एम के जनता दरबार पहुंचा.लेकिन बदकिस्मती यहाँ भी आगे--आगे पहुँच गयी. डी.एम आज किसी कार्य से बाहर थे और जनता दरबार में फ़रियाद उनकी जगह ए.डी.एम सुन रहे थे.ए.डी.एम साहब ने इन बच्चों को और आश्रम के संचालक को सुना और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को आदेश दिया की वे आश्रम को देखें और इसकी रिपोर्ट करें.
यानि पहले जांच फिर कारवाई होगी.बताना लाजिमी है की इस आश्रम के संचालक को पिछले दो वर्षों से अधिकारियों से इसी तरह का आश्वासन मिलता रहा है जो आज लेकर वह वापिस अपने दरके आश्रम लौट रहा है.
वर्तमान जिलाधिकारी मिसबाह बारी से भी यह आश्रम संचालक एक सप्ताह पूर्व मिलकर फ़रियाद कर चुका है.यही नहीं इससे पूर्व के दो पूर्व जिलाधिकारी आर.लक्ष्मणन और देव राज देव से भी ये फ़रियाद कर चुके हैं लेकिन परिणाम आजतक सिफर ही रहा.दस दिन पूर्व जिला में पदभार संभालने वाले ए.डी.एम सतीश चन्द्र झा साहब को सुनिए किस तरह वे आकांक्षा अनाथ आश्रम की कुंडली देखने की बात कर रहे हैं.उन्होनें तमाम बच्चों को देखकर कहीं से भी मानवीय संवेदना का इजहार नहीं किया और अफसरशाही की मोटी चमरी में कैद रहकर जांच का जिम्मा जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को सौंप दिया की वे जांच कर देखें की माजरा क्या है.जांच के तराजू प़र आश्रम को तौला जाएगा फिर सोचा जाएगा की इस आश्रम के लिए क्या कुछ किया जाए.पिछले दो वर्षों से जांच के नाम प़र चल रहे इस गोरख खेल को एक बार फिर पंख लग गए.
ये मासूम बच्चे बर्बादी के जिन्दा इस्तहार हैं.इनकी मासूमियत को बचाने और उनमें उड़ान भरने की जरुरत है.नीतीश बाबू कुसहा के इन दर्दीले तोहफे को अपने सजावटी फूलदानों में जगह ना दीजिये चलेगा,कम से कम अपनी फटी कालीन--दरीचे और कूड़ेदान में तो इन्हें जगह दीजिये.इतने में भी ये दम भर जी लेंगे.
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Chandan Singh
Managing Director
SAHARSA TIMES