अपने पति के झूठे अपहरण मामले में बन्द एक नवयुवती ने अपने नवजात के इलाज में बरती गयी लापरवाही की वजह से उसे जनम के कुछ दिनों के बाद ही खो दिया.पिछले चार दिनों से बीमार बच्चे के इलाज के लिए वह जेल के भीतर गुहार लगाती रही लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी.बीती रात जेल प्रशासन ने उसे उसके बीमार बच्चे के साथ सदर अस्पताल तो भेजा लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. नवजात बच्चे ने अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ दिया.नवजात बच्चे की माँ और उसके पिता सहित अस्पताल में मौजूद उसके सभी परिजन इस बच्चे की मौत के लिए जेल प्रशासन और अपने घर के उन सदस्यों को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं जिन्होनें झूठे मुकदमें में फंसाकर इस नवयुवती को जेल भेजा था जिससे आज ये मातम का दिन देखना पड़ा.नवजात की मौत में लापरवाही बरतने की बात को जेल प्रशासन सिरे से ख़ारिज करते हुए कह रहा है की जेल प्रशासन ने ना केवल इस नवयुवती बल्कि नवजात के इलाज के लिए भी उससे जो संभव हुआ हर संभव प्रयास किया.इस बच्चे की मौत पर विलाप चल रहा है लेकिन यह मामला एक तरह से दब ही जाएगा.यह मौत एक बड़ा मामला है लेकिन इससे भी बड़ा मामला है की यह नवयुवती आखिर जेल गयी तो किस वजह से.इस नवयुवती पर उसके दो भैंसुर ने मिलकर झूठा मुकदमा दर्ज करा डाला की उसने अपनी माँ के साथ मिलकर संपत्ति हड़पने की नीयत से उसके छोटे भाई यानि अपने पति का अपहरण कर लिया है.हद बात देखिये की अपने बड़े भाईयों के रसूख और उनकी ताकत के डर से इस नवयुवती का पति सहरसा से भागकर नेपाल के धरान में शरण लिए हुए था.चूँकि इस नवयुवती और उसके पति ने प्रेम विवाह किया था जिसे उसके घर के कुछ लोग स्वीकार नहीं कर रहे थे.हांलांकि लड़के के पिता और एक भाई इस शादी से रजामंद थे.लेकिन यह परिवार अजूबा परिवार है जहां के लोग दो फाड़ हैं.एक खेमे में दो बेटे और माँ हैं तो दूसरे खेमे में दो बेटे और पिता हैं.माँ की तरफ का एक बेटा पेशे से वकील और नाम--सोहरत के साथ--साथ रसूख वाला है.इनलोगों को लग रहा था की घर के लोग आखिर में मान जायेंगे और उनके रिस्ते को स्वीकार कर लिया जाएगा.लेकिन साजिश के तहत अपहरण का मुकदमा ना केवल दर्ज कराया गया बल्कि बड़ी साजिश और पैसे के दम पर पुलिस के तमाम अधिकारियों के द्वारा इस अपहरण की झूठी घटना को अनुसंधान में भी सत्य साबित कर दिया गया.नवयुवती और उसकी माँ को इस काण्ड में आरोपी बनाया गया था जिसे पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. हद बात तो यह भी है की जिस समय सीजीएम के पास आरोपी नवयुवती और उसकी माँ को प्रस्तुत किया गया था उस समय भी अगवा घोषित पति ने सीजीएम साहब के सामने उपस्थित होकर अपनी पत्नी और सास को बेकसूर बताया था.लेकिन सभी की आँखों में पट्टी बंधी थी और सब के सब बहरे हो गए थे.पति चीखता--चिल्लाता रहा लेकिन उसकी आँखों के सामने ही उसकी पत्नी को जेल भेज दिया गया.आज अगर वह घर में होती तो मासूम नवाजा पालने में होता लेकिन असमय वह इस दुनिया से जा चुका है.बिलख--बिलखकर यह नवयुवती कह रही है उसे जाना था ससुराल लेकिन चली गयी जेल.यह कैसा इन्साफ है.संपत्ति की लालच में एक बड़ी साजिश से एक परिवार में बिखड रही जिन्दगी की अजीबो--गरीब दास्ताँ.एक
अपने पति के ही अपहरण के झूठे मुकदमें में फंसाकर अपनों के ही द्वारा जेल भेजी गयी एक नवयुवती यहाँ पर विलाप कर रही है.बीती रात यह सहरसा जेल से अपने नवजात बच्चे को लेकर इलाज के लिए आई थी लेकिन अस्पताल पहुँचने से पहले ही बच्चे ने दम तोड़ दिया.देखिये इस नवयुवती का विलाप.यह नजारा देखकर यमराज के भी पसीने छूट जायेंगे.यह नवयुवती बताती है की पिछले चार दिनों से जेल में बीमार बच्चे को अस्पताल ले जाकर वह इलाज कराने के लिए जेल के सभी अधिकारियों से फ़रियाद करती रही लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी.जेल का कमपाउंडर कुछ से कुछ दवाई देकर बहलाता रहा.आखिरकार कल जब बच्चे की तबियत बहुत बिगड़ गयी तो जेलर ने अस्पताल ले जाने की इजाजत दी.यह देखिये नवजात के पिता किस तरह से ना केवल बेसुध पड़े हुए है बल्कि जब उन्हें होश में लाया जाता है तो कैसे वे चीख रहे हैं.छाती पीट रहे हैं.नवजात के पिता ने भी जेल प्रशासन पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है.आईये दोनों पीड़ित दम्पति को बच्चे की मौत पर वे क्या कह रहे हैं सुनते हैं.
सबसे पहले हम इस अध्याय को खत्म करना चाह रहे हैं.इसलिए चलिए पहले बच्चे की मौत को लेकर जो जेल प्रशासन पर आरोप लग रहे हैं उसको लेकर जेल प्रशासन से जबाब-तलब कर लेते हैं.जेल अधीक्षक देवेन्द्र कुमार अवकाश पर हैं.उनकी अनुपस्थिति में जेलर सुरेश चौधरी जेलर के अलावे जेल अधीक्षक के प्रभार में भी हैं.इनका कहना है की इसी वर्ष 19 अगस्त को अपहरण काण्ड की आरोपी अन्नू देवी को उनकी माँ कृष्णा देवी के साथ जेल भेजा गया था.बीते 25 अक्तूबर को उसे प्रसव पीड़ा होने लगी तो उसे सदर अस्पताल भेजा गया.25 अक्तूबर को ही उसने बेटे को जन्म दिया.उस वक्त बच्चे को पीलिया रोग हो गया था इसलिए नौ दिनों तक उसका इलाज अस्पताल में होता रहा. डिस्चार्ज किये जाने के बाद वह पुनः 2 नवम्बर को जेल लायी गयी.जेल के भीतर ही बच्चा और जच्चा दोनों का का इलाज हो रहा था लेकिन बीती रात बच्चे की तबियत अचानक बिगड़ गयी तो उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल भेजा गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी.जेल में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गयी है.
अब हम नवजात की मौत से इतर आपको ऐसे वाकये से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसे जानकार आप ना केवल दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे बल्कि पुलिस की अजीबो-गरीब कारस्तानी ऐसा भी कर सकती है को लेकर सोचने को विवश भी हो जायेंगे.बनगांव थाना क्षेत्र के बरियाही गाँव के रहने वाले धीरज और अन्नू एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे.लेकिन धीरज की माँ और उसके दो भाईयों को यह पसंद नहीं था.अन्नू और धीरज ने घर से भागकर पहले मदिर फिर न्यायालय में शादी कर ली.यह दोनों शादी के बाद छुप--छुपाके रह रहे थे.बताना लाजिमी है की धीरज चार भाई है.उसके पिता बालमुकुन्द गुप्ता बरियाही के सबसे अधिक धनाढ्यों में से एक हैं.लेकिन उनके दो बेटे और उनकी पत्नी गौरी देवी आपस में मिलकर वर्षों से साजिश करते रहते हैं.खुद उन्हें भी इनलोगों ने कई झूठे मुकदमें में फंसा रखा है.बालमुकुन्द गुप्ता और उनके दो बेटे उनके साथ हैं जिसे पहला खेमा देखना नहीं चाहता है.जाहिर तौर पर बता दूँ की सभी कुछ जायदाद को लेकर है.अपनी माँ के साथ रह रहे दो बेटे अमर रंजन और नीरज रंजन दोनों रसूखदार और पैरवी--पहुँच वाले हो गए हैं.पैसा भी अच्छा कमाया है और जायदाद पर भी कुंडली मारकर बैठे हुए हैं.बालमुकुन्द गुप्ता प्रेम विवाह किये अपने बेटे धीरज रंजन और सबसे बड़े बेटे सरोज रंजन के साथ पिछले चार वर्षों से घर छोड़कर भागे--भागे फिर रहे हैं.इसी अजीबो--गरीब परिवार के दो बेटों नें अन्नू को अपने ही पति के अपहरण के आरोप में फंसा दिया और उसे और उसकी माँ कृष्णा देवी दोनों को आरोपी बना डाला.यही नहीं इनके पैरवी की ताकत देखिये की अन्नू के पति यानि अपने सगे भाई धीरज को पागल करार करने के लिए PMCH से सर्टिफिकेट भी बनवा लिया.यही नहीं वे सारे लोग पूरी जायदाद को हड़प सकें इसके लिए साजिश करके अपहरण के मुक़दमे को बड़े अधिकारियों के अनुसंधान में हर जगह सत्य करवा लिया.पुलिस ने इस काण्ड का चार्जसीट तक कोर्ट में जमा कर दिया. आखिरकार अन्नू और उसकी माँ को पुलिस ने गिरफ्तार कर के सीजीएम के पास प्रस्तुत किया.धीरज ने वहाँ पर चीख-चीख कर बताया की वह सही सलामत है.उसकी पत्नी ने उसका अपहरण नहीं करवाया है.उसकी पत्नी और सास दोनों बेकसूर हैं.लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी और अन्नू और उसकी को जेल भेज दिया गया.
सबसे पहले हम इस अध्याय को खत्म करना चाह रहे हैं.इसलिए चलिए पहले बच्चे की मौत को लेकर जो जेल प्रशासन पर आरोप लग रहे हैं उसको लेकर जेल प्रशासन से जबाब-तलब कर लेते हैं.जेल अधीक्षक देवेन्द्र कुमार अवकाश पर हैं.उनकी अनुपस्थिति में जेलर सुरेश चौधरी जेलर के अलावे जेल अधीक्षक के प्रभार में भी हैं.इनका कहना है की इसी वर्ष 19 अगस्त को अपहरण काण्ड की आरोपी अन्नू देवी को उनकी माँ कृष्णा देवी के साथ जेल भेजा गया था.बीते 25 अक्तूबर को उसे प्रसव पीड़ा होने लगी तो उसे सदर अस्पताल भेजा गया.25 अक्तूबर को ही उसने बेटे को जन्म दिया.उस वक्त बच्चे को पीलिया रोग हो गया था इसलिए नौ दिनों तक उसका इलाज अस्पताल में होता रहा. डिस्चार्ज किये जाने के बाद वह पुनः 2 नवम्बर को जेल लायी गयी.जेल के भीतर ही बच्चा और जच्चा दोनों का का इलाज हो रहा था लेकिन बीती रात बच्चे की तबियत अचानक बिगड़ गयी तो उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल भेजा गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी.जेल में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गयी है.
अब हम नवजात की मौत से इतर आपको ऐसे वाकये से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसे जानकार आप ना केवल दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे बल्कि पुलिस की अजीबो-गरीब कारस्तानी ऐसा भी कर सकती है को लेकर सोचने को विवश भी हो जायेंगे.बनगांव थाना क्षेत्र के बरियाही गाँव के रहने वाले धीरज और अन्नू एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे.लेकिन धीरज की माँ और उसके दो भाईयों को यह पसंद नहीं था.अन्नू और धीरज ने घर से भागकर पहले मदिर फिर न्यायालय में शादी कर ली.यह दोनों शादी के बाद छुप--छुपाके रह रहे थे.बताना लाजिमी है की धीरज चार भाई है.उसके पिता बालमुकुन्द गुप्ता बरियाही के सबसे अधिक धनाढ्यों में से एक हैं.लेकिन उनके दो बेटे और उनकी पत्नी गौरी देवी आपस में मिलकर वर्षों से साजिश करते रहते हैं.खुद उन्हें भी इनलोगों ने कई झूठे मुकदमें में फंसा रखा है.बालमुकुन्द गुप्ता और उनके दो बेटे उनके साथ हैं जिसे पहला खेमा देखना नहीं चाहता है.जाहिर तौर पर बता दूँ की सभी कुछ जायदाद को लेकर है.अपनी माँ के साथ रह रहे दो बेटे अमर रंजन और नीरज रंजन दोनों रसूखदार और पैरवी--पहुँच वाले हो गए हैं.पैसा भी अच्छा कमाया है और जायदाद पर भी कुंडली मारकर बैठे हुए हैं.बालमुकुन्द गुप्ता प्रेम विवाह किये अपने बेटे धीरज रंजन और सबसे बड़े बेटे सरोज रंजन के साथ पिछले चार वर्षों से घर छोड़कर भागे--भागे फिर रहे हैं.इसी अजीबो--गरीब परिवार के दो बेटों नें अन्नू को अपने ही पति के अपहरण के आरोप में फंसा दिया और उसे और उसकी माँ कृष्णा देवी दोनों को आरोपी बना डाला.यही नहीं इनके पैरवी की ताकत देखिये की अन्नू के पति यानि अपने सगे भाई धीरज को पागल करार करने के लिए PMCH से सर्टिफिकेट भी बनवा लिया.यही नहीं वे सारे लोग पूरी जायदाद को हड़प सकें इसके लिए साजिश करके अपहरण के मुक़दमे को बड़े अधिकारियों के अनुसंधान में हर जगह सत्य करवा लिया.पुलिस ने इस काण्ड का चार्जसीट तक कोर्ट में जमा कर दिया. आखिरकार अन्नू और उसकी माँ को पुलिस ने गिरफ्तार कर के सीजीएम के पास प्रस्तुत किया.धीरज ने वहाँ पर चीख-चीख कर बताया की वह सही सलामत है.उसकी पत्नी ने उसका अपहरण नहीं करवाया है.उसकी पत्नी और सास दोनों बेकसूर हैं.लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी और अन्नू और उसकी को जेल भेज दिया गया.
अस्पताल में बेहाल अन्नू की हालत देख स्थानीय मीडिया ने जिलाधिकारी को नवजात की मौत और फर्जी अपहरण को लेकर पूरी जानकारी दी.देखिये जिलाधिकारी अस्पताल पहुँचे तो अन्नू किस तरह से अपने मर चुके बच्चे को लेकर जिलाधिकारी की गाड़ी के आगे बैठी और किस तरह से फ़रियाद कर रही है.जिलाधिकारी ने ना केवल अन्नू को बल्कि उसके पति धीरज को भी गंभीरता से सुना और इस मामले की पुनः जांच का भरोसा दिलाया.इस फर्जी अपहरण के मुक़दमे को लेकर हमने पुलिस अधीक्षक से भी तल्ख़ अंदाज में जबाब--तलब किया. पुलिस अधीक्षक कहना है की वरीय अधिकारी के निर्देश पर सारी प्रक्रिया हुई है.अब जो भी होगा अदालत के माध्यम से ही होगा.पुलिस की इतनी बड़ी लापरवाही को पुलिस अधीक्षक बड़े मामूली लहजे में बस टालते दिखे. इस परिवार को पुलिस ने अपने अनुसंधान से तबाह करके रख डाला और जबाब भी दे रहे हैं तो घुमाने वाले लहजे में.
लालच और प्रपंच में डूबे घर के ही कुछ सदस्यों की साजिश और पुलिस की लापरवाही ने एक हँसते---खेलते प्रेमी जोड़े को तबाह करके रख डाला है.बदले निजाम में भी पुलिस की कार्यशैली बदली हो,ऐसा कम से कम इस जिले में तो प्रतीत नहीं हो रहा है.नीतीश बाबू एक बार तो आप को भी पति के इस फर्जी अपहरण की दास्ताँ पर यकीन नहीं होगा लेकिन अब आपको कुछ हटकर ना केवल यकीन करने होंगे बल्कि काम--काज के तौर--तरीके भी बदलने होने.आगे इस अपहरण काण्ड के कैसे परिणाम आयेंगे,फिलवक्त हम तो कुछ भी कहने से रहे.इस लोमहर्षक झूठ के खेल में अभीतक तो एक नवजात की बलि पर चुकी है.
लालच और प्रपंच में डूबे घर के ही कुछ सदस्यों की साजिश और पुलिस की लापरवाही ने एक हँसते---खेलते प्रेमी जोड़े को तबाह करके रख डाला है.बदले निजाम में भी पुलिस की कार्यशैली बदली हो,ऐसा कम से कम इस जिले में तो प्रतीत नहीं हो रहा है.नीतीश बाबू एक बार तो आप को भी पति के इस फर्जी अपहरण की दास्ताँ पर यकीन नहीं होगा लेकिन अब आपको कुछ हटकर ना केवल यकीन करने होंगे बल्कि काम--काज के तौर--तरीके भी बदलने होने.आगे इस अपहरण काण्ड के कैसे परिणाम आयेंगे,फिलवक्त हम तो कुछ भी कहने से रहे.इस लोमहर्षक झूठ के खेल में अभीतक तो एक नवजात की बलि पर चुकी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
THANKS FOR YOURS COMMENTS.