अप्रैल 16, 2011

जड़-जड़ नहर और उदाश किशान

                                                     जड़-जड़ नहर और उदाश किशान

रिपोर्ट
अनिल कुमार झा सहरसा



 जड़-जड़ नहर, नहरी से पानी मिलने की आशा छोड़ किसान  करने लगे है मजदूरी|
 कोशी क्षेत्र में किसानो के खेती को ध्यान में रख कर सरकार ने तटवंध  निर्माण के बाद किसानो के सिंचाई हेतु नहर एवं नहरी का निर्माण कराया था |यह सोच कर की यहाँ के किसानो की खेती मानसून के भरोसे नही होगी |खेतो में जब भी पटवन की आवश्यकता होगी तो नहर के पानी का उपयोग कर अच्छी  पैदावार की जाएगी और इससे तटवंध पर दबाब भी कम होगा | सहरसा जिला के किसान नहरों से खेती के लिये पानी मिलने की आशा छोड़  दिया है |नहरों में पिछले कई  सालो से पानी का आना बंद है और यहाँ के किसान पम्पसेट या मानसून के भरोसे ही खेती करते है  |कई ऐसे भी किसान है जो खेती छोड़ मजदूरी करने लगे है |इनका मानना है महंगी बीज व् खाद और अब पम्पसेट से पटवन कर खेती करना आसान नही रहा |पहले नहर से पानी मिलता था तो तीन पटवन कर अछ्छी पैदावार कर लेते थे |अब खाद बीज के साथ-साथ ससमय पटवन कर खेती करने में नुकसान भी उठाना पड़ता है |
  सहरसा के किसानो का अधिकांश यही हाल है | दुधैला व् परविनिया गावं के किसानो को पिछले ६-७ साल से नहरों से पानी मिलना बंद है तो वही कहरा गावं के नहरी से १० साल से पानी नही मिलने से अब किसान खेती छोड़ मजदूरी करने लगे है |
 सहरसा के भाजपा विधायक आलोक रंजन किसानो के खेती छोड़ मजदूरी व् पलायन की बात मानते है और कहते है हमारी सरकार गंभीर है बहुत सारी योजना किसानो के हित में रख कर की जा रही है जिसमे नहर नहरी की सफाई चल रही है |अब किसानो को पलायन करने की जरूरत नही है | 
अधीक्षण अभियंता नहर अंचल बिरेन्द्र नारायण ठाकुर

  सहरसा जिला मुख्यालय से सटे तीन किलो मीटर की दुरी पर यह  रहुआ नहर की सुलिस गेट है  जड़-जड़ नहर, नहरी व् छहरी चीख चीख कर कहती है मेरी रख-रखाव मरम्मत कागजो पर ही होती है| करोड़ों खर्च मुझ पर किया जा चूका है और बहुत कुछ होना बाकि है | सहरसा के अधीक्षण अभियंता नहर अंचल बिरेन्द्र नारायण ठाकुर कार्यालय में नहीं बैठ आवाश से ही चलाते है कार्यालय और पत्रकारों को कैमरे पर कुछ भी कहने से करते है इंकार | आखिर क्या होगा इन किसानो का ?


अप्रैल 06, 2011

यह गुलशन कही उजर न जाये


                                                  यह गुलशन कही उजर न  जाये
बुद्धेशवर प्रसाद सिंह
भतखोरा, मधेपुरा , 06-04-2011                     
मत मरो बम
कि यह आशियाना उजर न जाये .

इसी मै कही तेरा भी घर है
 तेरा भी घर कही उजर न जाये .

 बड़ी मुश्किल से सजाया है आशियाना
यह आशियाना कही उजर न जाये..

                                   रहो में बच्चे भी है
                                   ये बच्चे भी कही ख़तम न हो जाये ...

                                   बड़ी मुश्किल से सजाया है ये गुलशन
                                   यह गुलशन कही उजर न  जाये......

अप्रैल 04, 2011

कोशी की त्रासदी और सरकार

                                                    कोशी   की त्रासदी और सरकार

 चन्दन सिंह की रिपोर्ट  
 सहरसा      04-04-2011

2008 कोशी   की त्रासदी जिसे कोई अपने दिलो दिमाग से भुला नहीं सकता. सुनामी से भी ज्यादा    दर्दनाक वह मंजर ... मौत के मुँह मै समाता पूरा का पूरा गांव , मौत को करीब से देखने का मंजर , चोट भरी वर्षा की बूंदों मै माँ की गोद मै नंगा बच्चा जिसे माँ बचाने  के लिए कोसो दूर भागती चली जा रही ,  किसी को  मौत से लड़ के  अपने पुर्बजो के धरोहरों को बचाने का ज़िद ......
   जिसे हमने आपने और हमारी लोकतान्त्रिक केंद्र व राज्य की सरकारे भी जाना .. जी हाँ ......... जब केंद्र सरकार ( कांग्रेस )  के भीष्मपिता  ( मनमोहन जी ) बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रो का दौरा किया तब इसे आननफानन में इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया ... लोगो मै नई उम्मीद तो जगी लेकिन...... सारे के सारे अधूरे सपने बनकर रह गए. जितनी भी सरकारे आई सभी ने इसे प्राकृतिक आपदा  बता कर पल्ले झार लिए .... अब जनता किया करे..... सिर्फ व सिर्फ उम्मीद के सहारे समय बीतता चला जा रहा है. कोशी की आक्रामकता हर वर्ष जिंदगियो को तबाह करती है... परन्तु २००८ की आक्रामकता ने उन क्षेत्रो को नस्तानाबुत किया.. जिसने कभी सोचा तक नहीं था ... बाढ़ को देखने और उसका सामना  करने का तजुर्बा  इन्हें नहीं था..... ख़त्म हो गया सब कुछ मिट गया पूरा का पूरा गांव .... कुशहा तटबंध जंहा टूटा वंहा किया कोई बस्ती थी... क्या हमने कभी ऐसा सवाल अपने सरकार से किया ? येनकेन प्रकारेण इससे भुलाया जा रहा है ...... क्या हमने बाढ़ प्रभावित्  क्षेत्रो मै  कभी उन घरो को झाकने का दुष्साहस किया जिनका सब कुछ  बर्बाद हो गया . मुसलाधार बारिस  मै.... कराके की ठण्ड  व  चिलचिलाती धुप मै कैसे रहते है ..... जी नहीं ...हमारी  सरकारे सिर्फ और सिर्फ हवाई पूल का निर्माण किया .... अपने जेबों को भरे ...... जिन दलालों, कर्मचारिओ  व जन पर्तिनिधि को सही से दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता  था.... वह आज राजशाही तरीके से रह रहा है बाढ़ आने से तो इनकी बल्ले - बल्ले हो गई. राज्य मै नई सरकार थी..... लोगो को  इस सरकार से काफी उम्मीदे थी , लेकिन आज हकीकत कुछ और है...... जिससे सभी अच्छी तरह से वाकिफ़ नहीं  है.... हमारी सोच का बाजारीकण हो चूका है... हम सिर्फ अपने लिए सोचते है ... हम अंग्रेजो से आजाद तो हुए परन्तु हम और हमारा पिछरा समाज और दलदल मै फंसता चला जा रहा है.... सरकारे कहती है बिहार बदला है..... लेकिन बिहार का परिदृश्य कुछ ओर बयां कर रही है.... सरकार कहती है बहुरास्ट्रीय कंपनियों के आने से बिहार की आर्थिक तंगी दूर हो रही है.... मगर ये सिर्फ दिखाबा है..ये सिर्फ पूंजीपतियो के  हितो मै है जिन्हें न सामाजिक सरोकार व मानवीय सरोकार से मतलब है ......
          वाहवही लूट रही ये राज्य के वर्तमान सरकार जिस तरह विकास का ढोल बजवा रहा है . क्या हमने इस सरकार से सवाल किया... जी नहीं ..... यंहा घंटी बंधने वाली बात हो जाती है.... तानासाह  सरकार के सामने कोई भी अपनी जुबान नहीं चला सकता..... जो हो रहा है होने दो... सब ठीक चल रहा है यंहा खामोश मंजर है..... सब चुप है...... लोकतंत्र की दुहाई देने वाली ये मीडिया भी सरकार की पीछ लग्गू  हो गई है... कुछ लिखा या दिया तो विज्ञापन नहीं मिलेगा.....
         आज भी आप अगर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रो का दोरा करेंगे तो आपको यह बिकास का नारा सब बकबास लगेगा..... अपने आपसे सवाल - दर - सवाल करते चले जायेंगे.... मेरा कहना तो सिर्फ इतना है कि हर सूरत मै यंहा कि दशा सुधरनी चाहिए..... इन्हें अच्छी सुविधा प्रदान किया जाय..... जिससे इनके दर्दो को मिटाया जा सके.... ये फिर से अपनी उजरी हुई बस्ती को बसा सके......  

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।