लोग सतह पर ही गुजार देते है जीवन.......
अनमोल पर भारी है बेमोल .........
हमारी समझ से नारी को उनकी ताकत के मुताबिक सही अवसर नहीं मिलने से वे कुंठित हो जाती हैं,जो धीरे--धीरे उन्हें अंतर्मुखी बना डालती है ।नारी जननी है और उसे सृष्टि की संज्ञा दी गयी है ।पुरे जगत में भारतीय नारी की एक अलग गरिमा है ।नारी की भीतरी सुंदरता को भी सामने आने देना बेहद जरुरी है ।बाजार से हम बेहद कीमती चीज खरीदकर घर लाते हैं जो बाहर ना केवल खूब चमकदार होती है बल्कि मन को खूब रिझाती भी है । लेकिन कुछ समय बाद पता चलता है की भीतर से वह बिल्कुल खोखला है ।नारी बाहर से जितनी चमकीली हो,भीतर से और ज्यादा चमकीली होती है ।उसकी आंतरिक चमक को बाहर लाईये और देखिये समाज में एक नयी धारा का आगाज होगा ।एक नए युग का शंखनाद होगा ।
अनमोल पर भारी है बेमोल .........
पूजा परासर (आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया आलेख) मानव सभ्यता के सृष्टि और सृजन काल से ही उलझन और असमंजस की स्थिति ना केवल जड़वत् हैं बल्कि साथ--साथ चल भी रहे हैं ।नारी और पुरुष का एक दूसरे के प्रति आकर्षण प्रकृति का नियम है ।इसी आकर्षण से सृष्टि को पीढ़ी मिलती है और यह दुनिया गतिशील है । लेकिन आज हम एक अदद गम्भीर विषय पर चर्चा चाहते हैं,जो अनवरत छूटते रहते हैं ।कहावत है की ""सभी चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती""और ठीक उसी तरह ""दाढ़ी और भभूत लगाकर ऋषि और मुनि नहीं होते""।
नारी की असल पूंजी और सुंदरता,उसके भीतर की खोह में होती है ।नारी की बाह्य सुंदरता के पुरुष कायल होते हैं और जीवन सतह पर ही रेंग--रेंग कर गुजर जाता है ।नारी की भीतरी सुंदरता को आज के बदले परिवेश में एक तो आसानी से फलक नहीं मिलता,दूसरा नारी खुद से पहल भी नहीं करती । अपवाद स्वरूप कुछ नारियों को छोड़ दें,तो नारियों के भीतर अथाह निर्मल प्यार, ममता, त्याग, समर्पण, निष्ठा, भरोसा, कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशें,घर--परिवार और रिश्तों को जोड़ने का हुनर,तकलीफ सहने की अकूत ताकत और सदैव दूसरों को खुश रखने की मार्मिक सोच होती है । लेकिन इन गुणों की तरफ किसका ध्यान जाता है ।झंझावत भरे जीवन में पुरुष अपनी सोच को अव्वल समझकर नारी से विमर्श करना भी जरुरी नहीं समझते ।
कुछ उदाहरण देखिये इंदिरा गांधी, सुनीता विलियम्स, कल्पना चावला, अनीता यादव, भावना कंठ, शाइना नेहवाल और रियो ओलम्पिक की साक्षी मलिक और पी.वी. संधु महिला शौर्य और ताकत के मौजूं उदाहरण हैं । हांलांकि चाँद में भी दाग होते हैं ।हम उनके व्यक्तिगत जीवन पर अपनी राय नहीं दे रहे और फिर से अपने विषय पर लौट रहे हैं ।
कुछ उदाहरण देखिये इंदिरा गांधी, सुनीता विलियम्स, कल्पना चावला, अनीता यादव, भावना कंठ, शाइना नेहवाल और रियो ओलम्पिक की साक्षी मलिक और पी.वी. संधु महिला शौर्य और ताकत के मौजूं उदाहरण हैं । हांलांकि चाँद में भी दाग होते हैं ।हम उनके व्यक्तिगत जीवन पर अपनी राय नहीं दे रहे और फिर से अपने विषय पर लौट रहे हैं ।
नारी के सुंदर देह यानि उसकी काया पर ही पुरुष अपनी जिंदगी वार देता है ।उस नारी को खुद की जिंदगी जीने के अवसर ही नहीं मिलते ।पुरुष को चाहिये की वह उस सुन्दर नारी की जिज्ञासाओं और उसकी सारगर्भित मंसा को जाने ।और जो बेहतर लगे उसे मूर्त रूप देने में अपनी महती भागीदारी दे ।लेकिन ऐसा नहीं होता है ।पुरुष खुद को इतना काम करने वाला योद्धा साबित किये रहता है की नारी बस उसके सुकून के साधनों को जुटाने में रह जाती है ।
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