बिहार में शराबबंदी के बाद क्या चल रहा है खेल....
मुकेश कुमार सिंह की कलम से दो टूक---
5 अप्रैल 2016 को बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुयी ।जाहिर सी बात है है की किसी भी प्रांत में अगर शराब जैसी विनाशकारी चीज पर पूर्ण पाबंदी लगे तो हर्ष लाजिमी है । समाज का एक बड़ा तबका सरकार के इस फैसले से बेहद खुश और आह्लादित था। आधी आबादी की ख़ुशी का तो मानो, कोई पारावार ही नहीं था ।शुरूआती कुछ दिनों में शराबबंदी का व्यापक और मौलिक असर दिख रहा था ।
चौक--चौराहे, बाजार, होटल से लेकर गाँव की पगडंडियों पर ऊधम मचाते शराबी नहीं दिख रहे थे। शराब के नशे में धुत्त होकर बलबा और मारपीट की घटनाएं नहीं घट रही थी ।
एक मायने में खासकर के शहरी इलाके चौक--चौराहे और बाजार की रौनक खत्म सी हो गयी थी । शाम ढ़लते ही लगता था कर्फ्यू लागू है । भूंजा दूकान वाले, ठेले पर पकौड़ी बनाने वाले फुटकर दुकानदार से लेकर पान दूकान वाले और मांस--मछली सहित चटकदार होटल चलाने वालों की बिक्री पर मानों ब्रेक लग गया था । एक ओर खुशहाली तो दूसरी ररफ मातमी सन्नाटा था। पूर्ण शराबबंदी से शराब पीने वालों को दिक्कत आ सकती है, इसके लिए सरकार मजबूती से तैयार थी । जिला मुख्यालय के सभी सदर अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र खोला गया था, जहां एसी युक्त वार्ड बनाये गए थे। शुरू के समय में इन नशा मुक्ति केंद्र पर थोक में शराब की लत के शिकार लोग आये जिनका कई दिनों तक ईलाज भी चला ।
चौक--चौराहे, बाजार, होटल से लेकर गाँव की पगडंडियों पर ऊधम मचाते शराबी नहीं दिख रहे थे। शराब के नशे में धुत्त होकर बलबा और मारपीट की घटनाएं नहीं घट रही थी ।
एक मायने में खासकर के शहरी इलाके चौक--चौराहे और बाजार की रौनक खत्म सी हो गयी थी । शाम ढ़लते ही लगता था कर्फ्यू लागू है । भूंजा दूकान वाले, ठेले पर पकौड़ी बनाने वाले फुटकर दुकानदार से लेकर पान दूकान वाले और मांस--मछली सहित चटकदार होटल चलाने वालों की बिक्री पर मानों ब्रेक लग गया था । एक ओर खुशहाली तो दूसरी ररफ मातमी सन्नाटा था। पूर्ण शराबबंदी से शराब पीने वालों को दिक्कत आ सकती है, इसके लिए सरकार मजबूती से तैयार थी । जिला मुख्यालय के सभी सदर अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र खोला गया था, जहां एसी युक्त वार्ड बनाये गए थे। शुरू के समय में इन नशा मुक्ति केंद्र पर थोक में शराब की लत के शिकार लोग आये जिनका कई दिनों तक ईलाज भी चला ।
हमारा आज का विषय है की बिहार में पूर्ण शराबबंदी का साईड इफेक्ट क्या है ? क्या सच में बिहार में शराबबंदी लागू है । हमने इस मसले पर गंभीर मंथन किया है और बहुतेरे साक्ष्य जुटाए हैं ।
हम डंके की चोट पर कह रहे हैं की शराबबंदी लागू होने का बेहद बुरा साईड इफेक्ट दिख रहा है । हाँ ! यह एक बड़ा सच है की बिहार में एक भी शराब की दूकान नहीं खुली है । सारी की सारी दुकानें जरूर बंद हैं । बाबजूद इसके शराब बिक भी रही है और लोग पी भी रहे हैं । फायदा इतना जरूर हुआ है की बिना ढूंढे पहले थोक में शराबी चहुँदिश मिल जाते थे लेकिन अब उन्हें खोजना पड़ता है । नेपाल और झारखण्ड से मिलने वाली बिहार की सीमा इनदिनों शराब तस्करी के लिए सबसे मुफीद रास्ते साबित हो रहे हैं । सड़क मार्ग के साथ--साथ रेल मार्ग से भी शराब की बड़ी खेप बिहार में पहुँच रही है। यहां हम बिना लाग--लपेट के कहना चाहते हैं की शराब के इस काले कारोबार में खादी और खाकी का भरपूर आशीर्वाद है।
पुलिस और प्रशासन के छोटे मुलाजिम से लेकर बड़े हाकिम और किसी दल के छुटभैये नेता से लेकर विधायक--मंत्री तक इस काले खेल में शामिल हैं । पश्चिम बंगाल, नेपाल, उत्तर प्रदेश से शराब बिहार आ रही है। हम आपको यह बताना चाहते की कई इलाके में शराब बालू लदी ट्रकों के माध्यम से इधर से उधर की जाती हैं जिसकी जानकारी पुलिस अधिकारी को होती है। सूत्रों की मानें, तो ख़ास किस्म के लोग अपने घर से शराब की दुकानदारी कर रहे हैं। बताना लाजिमी है की हमारी जानकारी के मुताबिक़ शराब की होम डिलेवरी भी की जाती है। सभी ब्रांड की शराब मौजूद हैं। बस आपको तय मूल्य से दुगने,या फिर तिगुने दाम देने होंगे । ग्राहक की जेब की मोटाई देखकर सौदा होता है ।
पुलिस और प्रशासन के छोटे मुलाजिम से लेकर बड़े हाकिम और किसी दल के छुटभैये नेता से लेकर विधायक--मंत्री तक इस काले खेल में शामिल हैं । पश्चिम बंगाल, नेपाल, उत्तर प्रदेश से शराब बिहार आ रही है। हम आपको यह बताना चाहते की कई इलाके में शराब बालू लदी ट्रकों के माध्यम से इधर से उधर की जाती हैं जिसकी जानकारी पुलिस अधिकारी को होती है। सूत्रों की मानें, तो ख़ास किस्म के लोग अपने घर से शराब की दुकानदारी कर रहे हैं। बताना लाजिमी है की हमारी जानकारी के मुताबिक़ शराब की होम डिलेवरी भी की जाती है। सभी ब्रांड की शराब मौजूद हैं। बस आपको तय मूल्य से दुगने,या फिर तिगुने दाम देने होंगे । ग्राहक की जेब की मोटाई देखकर सौदा होता है ।
हमारी जानकारी के मुताबिक़ पूर्वी और पश्चिमी कोसी तटबंध के भीतर करोड़ों की शराब जमाकर के रखी गयी है । एक कयास लगाएं तो यह जमा शराब कई जिलों को वर्षों पिलाई जा सकती है । हालिया दिनों की बात करें तो बिहार के विभिन्य जिलों में शराब की बरामदगी होती रही है । सुपौल, कटिहार, किशनगंज, खगड़िया, गो पालगंज, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, सा रण, पटना, सहरसा, दरभंगा, मधुबनी, शेखपुरा सहित कई ऐसे जिले हैं जहां से लगातार शराब बरामद होती रही है। शराब किसी के घर से, ट्रेन से, पुलिस और प्रेस लिखे वाहन से भी बरामद हो रहे हैं ।
हमारे इस आलेख का मकसद यह है की सरकार की आँख खुले । कोई महान कार्य से पहले मंथन और गहरे होमवर्क की जरुरत होती है। सरकार का पूर्ण शराबबंदी का फैसला स्वागत योग्य है लेकिन अचानक से यह सही समय पर लिया गया फैसला किसी भी सूरत में नहीं है। एक दशक पूर्व में हमें याद है की भले लोग जिनको शराब की लत थी, वे खुद से शराब की दूकान पर नहीं जाते थे। रिक्शे वाले या किसी दोयम दर्जे के शख्स को भेजकर वे अपने लिए शराब मंगवाते थे। लेकिन बदले निजाम में सरकार ने पंचायत स्तर तक जाकर शराब की दूकान खोल दी।
अचानक शराबियों की संख्यां में भारी उछाल आया और हमारा खुद का ज्ञान बताता है की इस दौर में युवा पीढ़ी ज्यादा शराब की तरफ खीचीं आई ।शराब की दूकान पर जाने का वह परहेज और संकोच का दौर खत्म हो गया ।कम उम्र के बच्चे भी शराब की दूकान पर आसानी से दिखने लगे ।
एकतरफ जहां इस कदर शराबियों की फ़ौज तैयार हो गयी, वहाँ आप अचानक पूरा लगाम लगा रहे, यह कतई युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता । अभी का आलम यह है की जो गरीब आदमी रोज पी रहा था, वह पांच दिनों के बाद पी रहा है लेकिन अपनी कमाई का मोटा हिस्सा अदा कर के । बड़े कारोबारी, सरकारी मुलाजिम या फिर अन्य धंधे से जुड़े लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है। 500 की शराब वे हजार से पंद्रह सौ में ले रहे हैं ।उनके पास पैसे यूँ ही आते--जाते हैं । लेकिन ज़रा उस तबका के बारे में सोचिये जो इतने पैसे में अपने परिवार की गाड़ी सरपट दौड़ाता लेकिन हो क्या रहा है ?
अचानक शराबियों की संख्यां में भारी उछाल आया और हमारा खुद का ज्ञान बताता है की इस दौर में युवा पीढ़ी ज्यादा शराब की तरफ खीचीं आई ।शराब की दूकान पर जाने का वह परहेज और संकोच का दौर खत्म हो गया ।कम उम्र के बच्चे भी शराब की दूकान पर आसानी से दिखने लगे ।
एकतरफ जहां इस कदर शराबियों की फ़ौज तैयार हो गयी, वहाँ आप अचानक पूरा लगाम लगा रहे, यह कतई युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता । अभी का आलम यह है की जो गरीब आदमी रोज पी रहा था, वह पांच दिनों के बाद पी रहा है लेकिन अपनी कमाई का मोटा हिस्सा अदा कर के । बड़े कारोबारी, सरकारी मुलाजिम या फिर अन्य धंधे से जुड़े लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है। 500 की शराब वे हजार से पंद्रह सौ में ले रहे हैं ।उनके पास पैसे यूँ ही आते--जाते हैं । लेकिन ज़रा उस तबका के बारे में सोचिये जो इतने पैसे में अपने परिवार की गाड़ी सरपट दौड़ाता लेकिन हो क्या रहा है ?
बेबाक और खरी--खरी--सरकार के मुलाजिम ब्रेथ एनेलाईजर से लोगों की जांच करते हैं की किसने शराब पी रखी है । अगर कोई पकड़ में आता है,तो जरा गौर से देखिये की वह पकड़ाया व्यक्ति किस कद का है ।वह बेहद छोटे तबके का दोयम और तीसरे दर्जे का आदमी होगा ।अधिकारी और सियासतदां के घर की आलमारी में शराब की बोतलें अभी भी सजी हुयी हैं ।बहुतों के दीवान के अंदर शराब रखी हुयी है ।बहुतों ने तो घर के नीचे खुदाई करा के गोदाम बना लिया है ।क्या अभीतक किसी बड़े अधिकारी या सियासतदां के मुंह में ब्रेथ एनेलाईजर लगाते हुए आपमें से किसी ने देखा है ।हम बहुतो अधिकारी,नेता और पत्रकार तक को जानते हैं,जो रोजाना शराब पी रहे हैं लेकिन उनको छूने की हिम्मत किसी में नहीं है ।वैसे हम तो वर्षों से बेईमानों के राडार पर हैं ।हम रोजाना और पल--पल मरने वालों में से नहीं है ।एक बार मरेंगे हम,वह भी शेर की तरह ।हम तो कब से मौत का इन्तजार कर रहे हैं ।
अब आप किसी भी सदर अस्पताल चले जाएँ ।वहाँ खोले गए नशा मुक्ति केंद्र का एसी वार्ड शराबी के आने की बाट जोह रहा है । एक भी आउटडोर या इनडोर मरीज वहां नहीं है। क्या अचानक बिहार शराबमुक्त प्रांत हो गया ? बिना शराब के आखिर वैसे शराबी कहाँ गए जिन्हें शराब नहीं मिल रही है? क्या बिना शराब के सभी शराबी स्वस्थ रह रहे हैं? नहीं जनाब शराब बिक भी रही है और लोग शराब पी भी रहे हैं ।पूर्ण शराबबंदी के नाम पर कुछ ख़ास वर्ग खूब मालामाल हो रहा है ।सरकार की घोषणा थी की जिस थाना क्षेत्र के अंदर शराब पकड़ी जायेगी, उस थाने के थानेदार पर बड़ी कार्रवाई होगी । दस साल तक वह दारोगा किसी थाने का थानेदार नहीं बनेगा ।क्या अभीतक किसी एक थानेदार पर कोई कार्रवाई हुयी है ?
इधर शराब के वाजिब कारोबारी हाईकोर्ट गए हैं ।उन्हें उम्मीद है की हाईकोर्ट फिर से बिहार में शराबबिक्री का आदेश देगी। शराबियों के एक बड़े कुनबे की भी सारी उम्मीद माननीय हाईकोर्ट पर टिकी है ।वैसे कोर्ट का जो फैसला होगा, हमारे लिए भी सम्मानित फैसला होगा ।
हमें कोर्ट की कारवाही और आगे होने वाले उसके फैसले पर कोई शब्द नहीं देना ।
हमें कोर्ट की कारवाही और आगे होने वाले उसके फैसले पर कोई शब्द नहीं देना ।
आखिर में हम इतना जरूर कहेंगे की बिहार में पूर्ण शराबबंदी के नाम पर कुछ खाकीधारी, कुछ खद्दरधारी, कुछ पेंट--शर्ट वाले अधिकारी और कुछ माफिया किस्म के लोग करोड़पति और अरबपति जरूर होंगे । बेचारी जनता पहले कम पैसे देकर शराबरूपी जहर को खुलकर पी रही थी और अभी ज्यादा पैसे खर्च कर के छुपकर पी रही है ।
भैया अपना काम बनता , भाड़ में जाए जनता ।
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