*नवहट्टा,महिषी,सलखुआ,बनमा ईटहरी और सिमरी
बख्तियारपुर प्रखंड के
दर्जनों गाँव में कोसी का कहर
*हजारों की आबादी प्रभावित
*ना राहत हुयी मयस्सर और ना ही रहने का कोई प्रबंध
*जिला प्रशासन पीड़ितों की सूचि बनाने में है जुटा हुआ
*एक पीड़ित परिवार को राहत के नाम पर मिलते हैं 6100 रूपये नकद और एक क्विंटल अनाज
*इस इलाके के लोगों की जिंदगी है,एक जंग के समान
*हजारों की आबादी प्रभावित
*ना राहत हुयी मयस्सर और ना ही रहने का कोई प्रबंध
*जिला प्रशासन पीड़ितों की सूचि बनाने में है जुटा हुआ
*एक पीड़ित परिवार को राहत के नाम पर मिलते हैं 6100 रूपये नकद और एक क्विंटल अनाज
*इस इलाके के लोगों की जिंदगी है,एक जंग के समान
मुकेश कुमार सिंह की कलम से-----कोसी तबाही की दास्ताँ बड़ी दर्दनाक और सीने को चाक करने वाली है.पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर दर्जनों गाँव के लोग कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ के चपेट में आकर ना केवल दाने--दाने को मोहताज हैं बल्कि जान बचाने के लिए किसी तारणहार की बाट भी जोह रहे हैं.सरकार और उनके नुमाईंदों के एसी कमरे में बैठकर हो रही बाढ़ की समीक्षा में जो तस्वीर उभर रही हो,लेकिन जमीनी हकीकत यह है की जो लोग बाढ़ में फंसे हैं,वे सरकारी दावों की पूरी तरह से हवा निकाल रहे हैं.सहरसा टाईम्स आपको ग्राउंड जीरो के सच से आपको रूबरू कराने जा रहा है जिसे देखकर आपकी रूह थर्रा उठेगी.
यूँ तो सहरसा जिले के नवहट्टा,महिषी,सलखुआ,बनमा ईटहरी और सिमरी
बख्तियारपुर प्रखंड के
दर्जनों गाँव को कोसी लील रही है.लेकिन बानगी के तौर पर हम आपको महज
नवहट्टा प्रखंड के सिसई,रामपुर,केदली,बरियाही, छतवन, हाटी, डरहार, नौला, बिरजाईन आदि गावों
का नजारा दिखा रहे हैं.नदी की तेज धार से तबाही मची हुयी है.हम आज इस
इलाके का सच जानने और समझने के साथ--साथ उसे अपनी नंगी आँखों से देखने
निकले हैं.देखिये कोसी
किस तरह से गाँव के गाँव को निगल रही है.कमोबेस सभी गाँव की एक ही
तड़प,टीस,दर्द,सीलन और चुभन की कहानी है.
अब सरकारी हाकिम की बात करें तो.एसी कमरे में बैठकर साहब खुद को बेहद
संजीदा बता रहे हैं.एसडीओ साहब जहांगीर आलम जी कह रहे हैं की उन्हें कटाव की जानकारी मिली
है.राहत और बचाव कार्य मुस्तैदी से किये जा रहे हैं.इनके बयान सिर्फ कोरे
और सफ़ेद झूठ हैं.जमीनी हकीकत यह है की पीड़ित लोग ना केवल दाने--दाने को
मोहताज हैं बल्कि किसी तारणहार की बाट भी जोह रहे हैं.
सहरसा टाईम्स के सच की इस पड़ताल को देखकर यह पता चलता है की इन पीड़ितों की
जिंदगी बचाने के लिए सरकार और उसके तंत्र कहीं से भी संजीदा नहीं है.सभी को
सियासत और फ्लड लूट की बड़ी चिंता सता रही है.अगर इस इलाके जिंदगी बच रही
है,तो समझिए ऊपर वाला मेहरबान है.आखिर में,मोटे तौर पर हम यही कहेंगे की"कुदरत के कहर के साथ--साथ इस इलाके में सरकारी
करतूत का कहर भी जारी है".
jo bhi Hua bahut bura hua
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