कृष्णमोहन सोनी की रिपोर्ट:- केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा शिकंजा कसने के बाद
भी जिले में सरकारी खाद्य गेहूँ,चावल की कालाबाजारी का धंधा बदस्तूर
जारी है.सूत्रों के मुताबिक शहर में ऐसे गुप्त स्थान पर कई ऐसे गोदाम हैं जहाँ रात के अँधेरे में
छुपा कर कालाजारी के माल रखे जाते हैं और सुबह से ही उसकी ढुलाई कर उसे बाजार में
कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों के हाथ बेच दिया जाता है. ख़ास रिपोर्ट -
जी
हाँ इस दिशा में
जिला प्रशासन द्धारा चलाये गए धड़-पकड़ अभियान का कोई मायने नहीं रहता है,
कारण जो भी हो. जानकार बताते हैं की जिले के विभिन्न क्षेत्रों में
कालाबाजारी करने वाले ऐसे
माफियाओं द्धारा किये जा रहे ऐसे धंधे से गरीबों की हकमारी होती
है.सरकार के खाद्य सुरक्षा कानून से जहाँ गरीब उचित लाभ लेने से वंचित हो
जाते हैं वहीँ ऐसे
कालाबाजारी करने वाले माफियाओं की चांदी कटती रहती है.जिला प्रशासन
द्धारा बीच - बीच में अभियान भी चलाया जाता है,बाबजूद इसके कालाबाजारी का
धंधा
रुक नहीं रहा है.जिले में कालाबाजारी करने वाले ऐसे लोग प्रशासन पर ही भारी
पड़ रहे हैं.प्रशासन द्धारा चलाये गए अभियान के समय थोड़े दिन के लिए
कालाबाजारी में
रुकावट जरूर होती है,मगर पुनः यह धंधा शुरू हो जाता है सूत्रों के मुताबिक
एफ.सी.आई.से गेहूँ और चावल का उठाव किया जाता है और उसे डोर स्टेप के तहत
जन वितरण प्रणाली की दुकानों तक पहुचाना होता है ताकि इस सरकारी
योजनाओं का लाभ गरीबों को मिल सके.इस पर जिला प्रशासन या पुलिस की पैनी
नजर तो कम लेकिन कालाबाजारी करने वाले माफियाओं की पैनी नजर जरूर रहती
है.गेहूँ--चावल की बोरी पर बिहार राज्य खाद्य निगम भी
लिखा
हुआ अंकित रहता है.गोदाम से गेहूँ या चावल से लदे वाहनों के वहां से
निकलते ही माफियाओं द्धारा रात के अँधेरे में ही कम कीमतों में उसे खरीद
लिया जाता है.फिर उसे विभिन्न क्षेत्रों में बनाये गए गोदाम में छुपा कर
रखा जाता है.बाद में सहूलियत के मुताबिक़ उसे बाजार में ऊँचे दामो में
व्यापारियों के हाथ बेच दिया जाता है.
जिले
में अब माफियाओं का नायाब तरीका देखा
जा रहा है.इस नये तरीके से अब कालाबाजारी को
अंजाम दिया जा रहा है अब तो बड़े वाहनो की जगह रिक्सा का इस्तेमाल किया जा
रहा
है रिक्सा पर ले जा रहे बोरी के बारे में पूछने पर रिक्सा चालक ने बताया
की हमे सिर्फ बतायी गयी दूकान पर दुकान पर माल उतार देते हैं.बताते चलें
की गोदाम में
छुपा कर रखे गए सरकारी गेहूँ--चावल की बोरी
पर लिखे हुए राज्य खाद्य निगम की बोरी को पलटी कर दिया जाता है.नयी बोडी की
सिलाई हाथ से कर उसे रिक्से के
माध्यम से दिन भर ढुलाई कर खुले आम बाजारों में बेचा जाता है ताकि प्रशासन
को इस गोरख
धंधे की भनक तक नही लगे.हद की इंतहा तो यह है की रिक्सा चालकों को भी
इसका पता नही होता की क्या खेल हो रहा है.गरीब रिक्सा चालकों को उनकी
मजदूरी मिलती है जिससे उनका परिवार पलटा है.एक रिक्सा पर चार बोरा लाद कर
व्यापारियों के
यहाँ भेजा जाता है जहाँ से आराम से कालाबाजारी होता है. सूत्रों के
अनुसार इस कालाबाजारी की गोरख धंधे की जानकारी पुलिस और जिला प्रशासन के
आलाधिकारी को भी है जिन्हे आँखे बंद और चुप्पी साधने के साथ-साथ किसी भी
तरह की कोई करवाई नहीं करने के लिए मोटी रकम दी जाती है.भले ही पुलिस व
प्रशासन धर-पकड़ अभियान चला कर कालाबाजारी पर रोक लगाने के लाख दावे कर ले
मगर सच यह है की शहर में
प्रशासनिक मौन स्वीकृति के कारण ही कालाबाजारी का धंधा बदस्तूर जारी है.यह
आईने की तरह साफ़ है की दिन के उजाले में सरकारी खाद्य गेहूँ--चावल के बोड़े
कालाबाजारी के
लिए खुले आम ले जाए जा रहे हैं लेकिन आखिर क्योंकर उसपर तंत्र की नजर नही
है.
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