मुकेश कुमार सिंह की कलम से------
जहाँ हम इक्कीस वी सदी में चाँद पर पहुँच चुके है वही अभी भी कुछ एसे गांव है जहाँ पत्थर से लिखी हुई संस्कृति से जिंदगी के मायने गढ़े जाते है.जी हाँ सहरसा शहर से महज 10 किमी दूर परविनिया गांव में पति की मौत के बाद पत्नी ने उसी चिता में कूद कर जान दे दी जो चिता उसके पति के नहीं होने की आग उगल रहा था.परिवार सहित गाँव वाले उन्हें सती का नाम दे रहे है.:---
चिता जल--जल कर अब खामोश हो चुकी है लेकिन सवालों के धुंएँ अब भी उठ रहे हैं.जाहिर तौर पर यह कोई आम चिता नहीं है.इस चिता में दो लोग जले है..एक की मौत बीमारी से हुई और दुसरे ने उसके प्रेम में जान दे दी.राम चरित्र मंडल की तबियत काफी दिन से ख़राब थी.ईलाज के दौरान कल सुबह उनकी मौत हो गई मगर इनकी मौत का गम पत्नी दिवा देवी सहन नहीं कर पाई.परिवार वालों ने राम चरित्र मंडल के अंतिम संस्कार करने के लिए तैयारी की लेकिन दिवा देवी सभी कुछ अपनी सुनी आँखों से बस देखती रही.तब इस दुःख की घडी में बिल्कुल खामोश थी.बीती देर शाम राम चरित्र मंडल का अंतिम संस्कार कर परिजन घर लौट गए लेकिन राम चन्द्र मंडल की चिता अब भी जल रही थी.घर लौटे परिजन विधि--विधान में जुट गए और दूसरी तरफ हल्ला हुवा की चिता में किसी ने छलाग लगा दी है.
जब तक परिवार वाले और गाँव वाले कुछ समझ पाते उससे पहले ही दिवा देवी पूरी तरह से जल चुकी थी.ग्रामीणों में इस घटना को लेकर चर्चा बनी हुई है.लोग इस प्रेमी जोड़े की प्रेम कथा को शुरू से ही जानते थे लेकिन इस उम्र में इतना प्रेम किसी ने सोचा न था. शिवपुराण में सती होने की कथा या कहानी लोगो ने तो सुनी थी.
मगर लोगो ने इस घटना को सहरसा के अपने गांव में देख लिया.बेटा रमेश कुमार मंडल,पुतोहु रेनू देवी,ग्रामीण दीपक कुमार गुप्ता सहित परिवार के सभी सहित और अन्य ग्रामीण कह रहे हैं की दिवा देवी सती हो गयी हैं.उनलोगों को इस मौत से दुःख है लेकिन चूँकि वे सती हुयी हैं इसलिए पूरा गाँव आज खुद को धन्य समझ रहा है. इधर पुलिस के अधिकारी डी.एस.पी.प्रेम सागर इस मामले को लेकर कह रहे हैं की यह मामला सती की जगह ख़ुदकुशी का है. मध्यकालीन भारत की सती प्रथा की याद ताजा होते ही आज भी रूह थर्रा जाती है.कुछ साल पहले राजस्थान की रूपकंवर ने सती होकर आदमजात को हिला कर रख दिया था.प्रेम में अंधी हुयी एक बुजुर्ग महिला ने अपनी जान देकर प्रेम को नए सिरे से ना केवल परिभाषित किया है बल्कि तमाम कुंद पड़ चुकी किवदंतियों को एक बार फिर से हवा दे दी है.लेकिन यह वाकया खुश और गौरवान्वित कराने की जगह मातम और अंधविश्वास की पटकथा लिख रहा है.
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