प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
नरेंद्र मोदी गुरुवार को कड़ी
सुरक्षा व्यवस्था के बीच स्थानीय पटेल मैदान में चुनावी सभा को संबोधित
करेंगे। उनकी सुरक्षा के कड़ी इंतजाम किए जा रहे हैं। सहरसा में ३० अप्रैल
को चुनाव होनी है. कल तक जो लोग मोदी को टीवी पर देखा करते थे वह चाय बेचने
वाला देश का भावी प्रधानमंत्री सहरसा के पटेल मैदान के मंच से लोगो को
सम्बोधित करेंगे। गॉव घर से लोगों का आना शुरू हो चूका है मोदी के दूर दराज
का समर्थक अपने रिश्तेदार के यंहा आकर डेरा जमा दिए है. मोदी के मंच पर
भीड़ न लगे इसके चलते दो मंच का निर्माण किया जा रहा है एक मंच से मोदी लोगो
को सम्बोधित करेंगे तो दूसरे मंच पर प्रदेश स्तर के नेता, विधायक व
सांसद होंगे। सुरक्षा को लेकर आइबी की टीम और गुजरात
से भी डीआइजी एवं डीएसपी रैंक के अधिकारी सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने
पहुंचे चुके हैं. सुरक्षा के ख़ाश इंतजाम को लेकर डी एरिया को मेटल
डिडेक्टर से जाँच की जा चुकी है. नरेंद्र मोदी की सभा को सफल बनाने के लिए
भाजपा के कार्यकर्ताओ और विधायकों ने पूरी ताकत लगा दी है। शहर से लेकर
सुदूर गांव व कस्बों लोगो को मोदी के सभा में आने को आमंत्रित कर रहे है.
अप्रैल 23, 2014
अप्रैल 03, 2014
किसी तरह रात का खाना बन जाए
रिपोर्ट सहरसा टाईम्स: भविष्य संवारना किसे अच्छा नहीं लगता,सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता.लेकिन जहां गरीबी और मुफलिसी में
जिदगी जार-जार हो और जहां एक जून रोटी का जुगाड़ मील का पत्थर साबित हो
रहा हो वहाँ सपने नहीं पलते,वहाँ जिन्दगी बस घिसटती,रिसती--सिलती यूँ ही कब
शुरू और कब खत्म हो जाती है,कुछ पता ही नहीं चलता.सहरसा का आलम कुछ ऐसा है
की यमराज को भी रोना आ जाए.सुदूर ग्रामीण इलाके की बात तो छोड़िये जिला
मुख्यालय में मासूम नौनिहाल थोक में अपना भविष्य संवारने की जगह सड़कों के किनारे, ऑफिस--ऑफिस या फिर जिधर पेड़ों से भरे इलाके हैं उधर पत्ते और जलावन चुनने में सुबह
से शाम कर देते हैं.ये वे तंगहाली की कोख से जन्मे बच्चे हैं जो पत्ते और
जलावन चुनकर ले जाते हैं तो घर का चूल्हा जलता है फिर सडा--गला कुछ पकता है
और फिर कुलबुलाते पेट की ज्वाला शांत होती है.सरकारी इंतजामात से महरूम
घरों में अभिशाप की तरह पैदा हुए इन बच्चों को
क्या पता की इनके घर के बड़ो और खुद उनपर सियासतदान सियासत की बड़ी--बड़ी
सीढियां चढ़ते हैं.एक तरफ गरीबों और बच्चों के नाम प़र योजनाओं की आई सुनामी
थमने का नाम नहीं ले रही है तो दूसरी तरफ सरकारी खजाने के मुंह इनके लिए
यूँ खुले हैं की कभी बन्द होने का नाम ही नहीं लेते,फिर भी ये गरीब घर के
बच्चे दोजख की बेजा जिन्दगी जीने को विवश हैं.सरकार के सारे नारे--दावे "सब पढ़े--सब बढे" और "मुनिया बेटी पढ़ती जाए" सहरसा में पूरी तरह से दफ़न हो
रहे हैं.
सुशासन बाबू आँखों प़र चढ़ा सरकारी चस्मा उतारिये और इन तस्वीरों को देखिये.हमें पता है की आप संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं.आपका कलेजा इन तस्वीरों को देखकर जरुर फट पड़ेगा.अगर ये तस्वीरें आपको दहला--रुला नहीं सकीं तो यकीन मानिए आगे हम कोसी तटबंध के भीतर और सुदूर ग्रामीण इलाके की तस्वीरें लेकर आयेंगे जो सुशासन के सारे ढोल--ताशे के चिथड़े तो उड़ाएंगी ही,साथ ही सुशासन या कुशासन या फिर ठगासन सभी की सारी पोल--पट्टी भी खोलकर रख देंगी.जागिये नीतीश बाबू जागिये.इतना आसान नहीं है विकसित बिहार के सपने को सच कर दिखाना.
सुशासन बाबू आँखों प़र चढ़ा सरकारी चस्मा उतारिये और इन तस्वीरों को देखिये.हमें पता है की आप संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं.आपका कलेजा इन तस्वीरों को देखकर जरुर फट पड़ेगा.अगर ये तस्वीरें आपको दहला--रुला नहीं सकीं तो यकीन मानिए आगे हम कोसी तटबंध के भीतर और सुदूर ग्रामीण इलाके की तस्वीरें लेकर आयेंगे जो सुशासन के सारे ढोल--ताशे के चिथड़े तो उड़ाएंगी ही,साथ ही सुशासन या कुशासन या फिर ठगासन सभी की सारी पोल--पट्टी भी खोलकर रख देंगी.जागिये नीतीश बाबू जागिये.इतना आसान नहीं है विकसित बिहार के सपने को सच कर दिखाना.
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