अक्तूबर 04, 2011

माँ के भक्त कर रहे हैं अजीबो--गरीब तरीके से हठयोग

   SAHARSA : 04-10-11   


देश भर में नवरात्र की धूम है.हर कोई अपने--अपने तरीके से माँ की पूजा--अर्चना में जुटा है.माँ के दरबार में बस जयकारे की गूंज है.घंटे--घड़ियाल बजाने से लेकर नांच--गाकर लोग माँ को अपनी कृपा बरसाने के लिए विवश करने को आतुर हैं.ऐसे भक्तिमय अवसर पर सहरसा के दो भक्त माँ को रिझाने--मनाने के लिए अजीबो--गरीब तरीके से हठयोग कर रहे हैं.एक भक्त ज़मीन के अंदर समाकर अपनी छाती पर कलश रखे हुए है तो दूसरा भक्त ज़मीन पर सोकर अपनी छाती पर जयंती उगा रहा है.माँ उनकी पुकार सुन लें इसलिए ये दोनों हठयोग से जतन कर रहे हैं.घर--परिवार और  समाज से लेकर विश्वकल्याण के लिए ये हठयोग कर रहे हैं.
 दशहरे के इस पावन अवसर पर सहरसा टाईम्स आज आपको सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर महिषी प्रखंड के दो गाँव का नजारा कराने लाये हैं जहां दो हठयोगी अपने हठयोग से माँ की तपस्या कर रहे हैं.सबसे पहले हम आपको लहुआर गाँव के मुसहरी टोला लेकर आये हैं.देखिये ज़मीन के भीतर पूरी तरह से समाकर माँ की अराधना कर रहा यह हठयोगी श्री प्रसाद सदा है.ज़मीन के भीतर इसने अपनी छाती पर माँ के नाम का कलश बिठा रखा है.पिछले पाँच वर्षों से यह इसी तरह से इस टोले में स्थित माँ शीतला के इस छोटी सी कुटिया में हठयोग करता आ रहा है.मुसहरी टोले की शान्ति--समृधि और महादलितों के दिन बहुरंगे हों इसके लिए यह इस तरह से माँ को मनाने में जुटा है.पूरे विश्व का कल्याण हो यह भी इसकी इच्छा है.देखिये किस तरह से यह योगी ज़मीन के भीतर साधना में लगा है.उसके दो बच्चे बाहर बैठे उसे पंखा झल रहे हैं.टोले के निवासियों का कहना है की पिछले पाँच सालों से यह इसी तरह से पहली पूजा से लेकर विजयादशमी तक बिना कुछ खाए--पिए योग करता आ रहा है.महादलितों के शुख--शान्ति और विश्व के कल्याण के लिए यह योग कर रहा है.

अब हम आपको लेकर आये हैं बलुआहा गाँव.माँ दुर्गा के इस मंदिर में रंजीत भगत नाम का यह भक्त पिछले तीन वर्षों से अपनी छाती पर जयंती उगाता आ रहा है.यह भी अपने परिवार की समृधि और विश्व कल्याण के लिए इस तरह से माँ की अराधना करने की बात करते हैं.देखिये किस तरह से ये लेटे हुए हैं और इनकी छाती पर मिट्टी के साथ जौ रखी हुई है.अपनी छाती पर ये माँ के नाम की जयंती उगा रहे हैं.इनका प्रण है की ये लगातार नौ वर्षों तक इसी तरह से माँ के नाम की जयंती अपनी छाती पर उगाते रहेंगे.जयंती उगाने का यह उनका तीसरा वर्ष है यानि आने वाले छः वर्षों तक यह इसी तरह से जयंती उगाते रहेंगे.बिना कुछ खाए--पिए इनकी साधना भी चल रही है.ये खुद बता रहे हैं की गाँव,समाज और अपने परिवार के सुख--समृधि और विश्व शान्ति के लिए वे यह कठिन तप कर रहे हैं.गाँव के लोग भी इनके सूर में ही सूर मिला रहे हैं.

माँ की महिमा अपरम्पार है और भक्त अपने--अपने तरीके से माँ को रिझाने में जुटे हैं.माँ करुणामयी हैं वे भक्तों के द्वारा सच्चे मन से की गयी पुकार को जरुर सुनेंगी और भक्तों की झोली को उनकी मुरादों से भर देंगी.आईये मिलाकर जयकारा लगाएं--------------------जय माता दी.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।