मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---
आज पत्रकारिता और पत्रकार दोनों को परिभाषित करने की जरूरत है ।पूर्व की पत्रकारिता और आधुनिक पत्रकारिता का ढांचा बिल्कुल बदल गया है । हमारी समझ से पत्रकार कभी दलाल नहीं हो सकते और दलाल कभी पत्रकार नहीं हो सकते ।पत्रकार का सही अर्थ है देश और दुनिया का आईना ।हालिया दिनों में पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले में लगातार तेजी आई है ।यह मसला बेहद गंभीर है ।आखिर क्या वजह है जो हमारे साथियों के साथ ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं ?
इस गंभीर विषय पर आत्मचिंतन,आत्ममंथन और सामूहिक विचार--विमर्श की जरूरत है ।पत्रकारों के साथ घटित हो रही घटनाओं का अवलोकन और घटना की वजह की तह में उतरना बेहद जरुरी है ।हमें पीड़ित पत्रकार साथी की हर सम्भव मदद करनी है लेकिन घटना की वजह को परत दर परत उकेरना भी जरुरी है ।हमारी समझ से पात्र देखकर मदद की पहल की जानी चाहिए ।अनजाने और भावावेश में बिना सच्चाई को टटोले मदद करने की कोशिश,कहीं से भी जायज नहीं है ।
हम दृढ संकल्पित हैं की हम पीड़ित पत्रकार साथी की हर सूरत में ना केवल मदद करेंगे बल्कि उनके साथ पूरा न्याय हो,इसकी भी मुकम्मिल लड़ाई लड़ेंगे ।लेकिन हमारा सुझाव है की जिस साथी के साथ किसी तरह की घटना घटी है,उसकी पहले तटस्थ पड़ताल करा लें ।हम अपने अनुभव के आधार पर कहना चाहते हैं की कभी---कभी अँधेरे में रहकर हम ऐसे शख्स की मदद कर डालते हैं,जो आगे हमारे लिए नुकसान का सबब बन जाते हैं ।खुले सफे और बेहद साफ लहजे में हम कहना चाहते हैं की पात्र देखकर मदद की परिपाटी शुरू करें ।
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