वर्षों से अपनी काली करतूत के लिए बदनाम सहरसा पुलिस कुछ भी कर सकती है साहेब
बन्दी मरीज के हाथ में बेड़ी और कमर में रस्सी बांधकर जेल से अस्पताल और अस्पताल से ले जाया जाता है जेल.
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक----
अपनी बिगड़ैल और बेशर्म कार्यशैली के लिए वर्षों से बदनाम रही सहरसा पुलिस कुछ भी कर सकती है साहेब ।रोजाना,हफ्ता और महीना वसूली में माहिर ये खाकी वाले कोई भी जुल्म ढ़ा सकते हैं और कोई भी कहर बरपा सकते हैं ।
ताजा वाकया सहरसा सदर अस्पताल का है जहां एक सप्ताह पूर्व सहरसा जेल में बंद दो बन्दी दिनेश शर्मा और मोहम्मद तीरो को बीमार होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था ।आज दोनों ठीक होकर पुनः जेल ले जाए जा रहे थे ।आपको यह जानकार हैरानी होगी जो तस्वीर हम आज दिखा रहे हैं,वही मंजर तब भी था,जब इन दोनों बंदी को अस्पताल लाया गया था ।
देखिये तस्वीर में किस तरह से दिनेश शर्मा के कमर को रस्सी से जकड़ा गया है और मोहम्मद तीरो के दोनों हाथ बेड़ी से जकड़े हैं ।क्या यही इंसानियत और मानवता है ।एक तो ये दोनों बंदी हैं दूजा बीमार होकर पुनः ठीक हुए हैं ।वैसे इनका ईलाज सदर अस्पताल में कितना कारगर हुआ होगा,उसपर अलग से प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है ।
इन दोनों बन्दी को जानवर बनाकर अस्पताल से पुनः वापिस जेल ले जा रहे सुरक्षा कर्मी सिकंदर सरदार,छेदीलाल मरांडी और सुनील पासवान का समवेत कहना है की सुरक्षा की गरज से दोनों बंदियों इस तरह से ले जाया जा रहा है ।अगर ये दोनों भाग जाएंगे,तो उनकी नौकरी फंस जायेगी । यानि अपनी नौकरी बचाने के लिए ये सुरक्षाकर्मी मानवाधिकार का सर कलम कर रहे हैं ।विवश हैं ये बेचारे,इसलिए ये बंदी को जानवर और मुर्गा बनाकर ले जा रहे हैं ।हमारे पाठक तस्वीर को देखें और खुद तय करें की सहरसा पुलिस की यह कार्यशैली कितनी जायज हैं ?वैसे हम ताल ठोंककर कहते हैं की यहां की पुलिस अपनी मर्जी से चलती है ।इन खाकी वालों के लिए सारे नियम--कायदे ढ़ाक के तीन पात और पूरी तरह से बेमानी हैं ।यहां की पुलिस मैं चाहूँ,ये करूँ,मैं चाहूँ,वो करूँ,मेरी मर्जी.......की तर्ज पर काम करती है ।
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