कृष्ण मोहन सोनी की रिपोर्ट:- मुस्लिम समुदाय द्धारा मनाये जाने वाली मुहर्रम त्यौहार का बड़ा महत्व समझा जाता है. वर्षो से इस पर्व को मनाये जाने की परम्पराओ में इसका अलग महत्व है. यह पर्व वैसे तो मुस्लिम समुदाय के लोग बड़े धूम धाम से विभिन्न क्षेत्रों में मनाते है लेकिन हिन्दू धर्म के लोगो में भी आस्था है यही कारण है की इस पर्व में जंगियो में हिन्दू भी भाग लेते है. यह पर्व दो दिन का होता है. इसमें नवमी व दशमी दो दिन मनाये जाते है. बताया जाता है की मुहर्रम का यह त्यौहार हुसेन की याद में मनाया जाता है जिसे गम का त्यौहार भी कहा जाता है.
इस पर्व में एक दिन पहले नवमी के दिन चौकी पूजा मेला होता है, नवमी व दशमी दो दिन का रोजा रखकर गम मनाते है, कहा जाता है कि मो० साहब के नवासे हसन रजिअल्लाहो अनाह के कर्बला मैदान में शहीद होने पर उसकी याद में हर वर्ष मुहर्रम का त्यौहार मनाया जाता है. जिसमे तजिया बनाकर दशमी के दिन इमामबाड़ा से रणखेत पर जाकर परम्पागत हथियार का खेल का प्रदर्शन किया जाता है. जिस मे युवा वर्ग से लेकर बृद्ध भी भाग लेते है. इस त्यौहार में फकीरो को दान भी दिया जाता है हिन्दू समाज के भी लोग लोग ताजिया का पूजा करते है और अपने घर परिवार की शुख, शान्ति के लिए सलामती की दुआ भी मांगते है.
इस पर्व में एक दिन पहले नवमी के दिन चौकी पूजा मेला होता है, नवमी व दशमी दो दिन का रोजा रखकर गम मनाते है, कहा जाता है कि मो० साहब के नवासे हसन रजिअल्लाहो अनाह के कर्बला मैदान में शहीद होने पर उसकी याद में हर वर्ष मुहर्रम का त्यौहार मनाया जाता है. जिसमे तजिया बनाकर दशमी के दिन इमामबाड़ा से रणखेत पर जाकर परम्पागत हथियार का खेल का प्रदर्शन किया जाता है. जिस मे युवा वर्ग से लेकर बृद्ध भी भाग लेते है. इस त्यौहार में फकीरो को दान भी दिया जाता है हिन्दू समाज के भी लोग लोग ताजिया का पूजा करते है और अपने घर परिवार की शुख, शान्ति के लिए सलामती की दुआ भी मांगते है.
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