मुकेश कुमार सिंह की कलम से----------
देश के अंदर कई बड़े मुद्दे और जलते हुए सवाल हैं जिनपर लगातार बहस और
विमर्श किये जाने की जरुरत है।लेकिन आज हम देश के विभिन्य सूबे से लेकर
राष्ट्रीय राजनीति में राजनेताओं के द्वारा की जा रही अमर्यादित बयानबाजी
को लेकर चर्चा के लिए विवश हुए हैं।आज के राजनीतिक परिवेश में यह चिंता का
विषय बन चुका है कि राजनीति में मर्यादा के लिए कोई जगह शेष भी है अथवा
नहीं।यूँ हम डंके की चोट पर कहते हैं कि आजादी के कुछ समय बाद से ही यह
परिलक्षित होने लगे थे कि भारतीय राजनीति में मर्यादा को संजोने के लिए कोई
अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गयी है।आज परिणाम सामने है कि स्थिति ना केवल
विस्फोटक बल्कि भयावह शक्ल अख्तियार कर चुकी है।
लोकतांत्रिक ढाँचे में भारत एक अजूबे देश की श्रेणी में है जहां शासन के
शीर्ष पर बैठे लोगों के लिए कोई वैधानिक योग्यता और मापदंड तय नहीं
हैं।इतने बड़े देश के लिए जहां उत्कृष्ट राजनीतिक व्यवस्था के इंतजाम होने
चाहिए वहाँ छिन्न--भिन्न और टूटी--बिखड़ी परिपाटी के अस्थिपंजर राजनीति के
परचम लहरा रहे हैं।हम शब्दजाल में ना तो खुद और ना ही आपको उलझाने की मंशा
रखते हैं,इसलिए मौजूं सवाल पर आ रहे हैं।देश आज राजनीतिक संक्रमण के दौर से
गुजर रहा है।विभिन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के नेता
एक दूसरे पर अमर्यादित शब्दों के विष वाण छोड़ रहे हैं।राजनेताओं के ऐसे
उत्तेजक और बहुघाती बयान आ रहे हैं जो भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिए कहीं
से भी शुभ संकेत देने वाले नहीं कहे जा सकते।
अमूमन मामलों पर गौर करें तो खासकर चुनाव के समय विभिन्य दलों के
नेताओं के बयान एक दूसरे पर ना केवल हमलावर होते हैं बल्कि कतिपय धारदार और
असहज होते हैं।हमें यह कहने में कतई गुरेज नहीं है कि ऐसे बयान राजनीतिक
दलों के साथ--साथ आम जनता के बीच भी कटुता पैदा करने का काम करते हैं।यह
बिलकुल आईने की तरह साफ़ है कि बयानों में इस्तेमाल हो रही भाषा लोकतांत्रिक
मूल्यों के खिलाफ हैं।हमारी समझ से राजनीतिक संवाद का मौजूदा स्वरूप
अत्यंत चिंतित करने वाला है जो राजनीतिक अपरिपक्वता से लवरेज है।हालिया समय
पर गौर करें तो एक दूसरे को बस जबाब देने की होड़ लगी है लेकिन किसी भी
स्तर पर और सार्थक बहस की गुंजाईश कम होती जा रही है।कुल मिलाकर किसी भी दल
की तरफ से यह प्रयास नहीं हो रहा है कि राजनीतिक संवाद का तौर--तरीका बदले
और वह मर्यादित स्वरूप ले। जहांतक दूसरे प्रतिष्ठित देशों का सवाल है तो
वहाँ भारतीय राजनीतिक विचित्रता के ठीक उलट स्थिति है।वहाँ
राष्ट्रपति,प्रधानमन्त्री सहित विभिन्य जिम्मेवारी भरे पदों पर आसीन होने
वाले उम्मीदवारों के बीच विकास,देशहित और विदेश नीति को लेकर सार्थक,समृद्ध
और बड़ी बहस होती है जो तर्कों के साथ--साथ साक्ष्यों पर आधारित होती
हैं।जाहिर तौर पर यहाँ भी बयानबाजी होती है लेकिन उसमें जलालत भरे गलीज
आरोप---प्रत्यारोप और व्यक्तिगत हमले नहीं होते हैं।इस बहस पर जनता की
सीधी और कड़ी नजर रहती है।
फिलवक्त यहाँ देश स्तर पर चल रही बयानबाजी पर गौर करें तो विभिन्य मंचों से
भाजपा द्वारा प्रधानमन्त्री पद के सम्भावित दावेदार नरेंद्र मोदी कॉंग्रेस
के शीर्षस्थ नेताओं से लेकर अन्य दलों पर विष वाण छोड़ रहे हैं।नरेंद्र
मोदी द्वारा कॉंग्रेस के खूनी पंजे वाले बयान और कॉंग्रेस के पाप की उपज
बसपा और सपा पर कड़ी आपत्ति जतायी गयी।कॉंग्रेस के सिरमौर्य राहुल गांधी के
तेवर भी नरेंद्र मोदी पर ज्यादातर तल्ख़ और हमलावर ही दिखे हैं और उन्होनें
कई असहज बयान भी दिए हैं।मुजफ्फरनगर दंगे में राहुल गांधी के दिए यह बयान
कि "वहाँ के दंगाई आई.एस.आई के सम्पर्क में थे" पर कडा विरोध जताया गया।
बात यहीं पर नहीं थम रही बल्कि भाजपा और कॉंग्रेस के कई बड़े नेता लगातार एक
दूसरे के आमने--सामने हैं।कॉंग्रेस के दिग्विजय सिंह,कपिल सिंबल और मनीष
तिवारी हों या फिर भाजपा के अरुण जेटली,मुख्तार अब्बास नकवी,शहनवाज हुसैन
के साथ--साथ और शीर्षस्थ नेताओ की टोली सभी की भवें अक्सर एक--दूसरे पर तनी
ही रहती हैं।इस कड़ी में हम बिहार के कुछ बयान बहादुरों की चर्चा भी जरुर
करना चाहेंगे।भाजपा के कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी ने खूंखार आतंकी
यासिन भटकल को बिहार का दामाद तक कह डाला तो जदयू के मौजूदा मंत्री भीम
सिंह ने सैनिकों की शहादत पर ही चुटकी ले ली।यही नहीं बीते कई महीनों से
सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भाजपा के गिरिराज सिंह के हमले और जदयू
प्रवक्ता नीरज कुमार और संजय सिंह के बयान भी मर्यादा की दीवार गिरा रहे
हैं।
जो कुछ सामने है उसके मुताबिक़ देश की राजनीति का स्तर लगातार नीचे
गिरता जा रहा है। विभिन्य राजनीतिक दल एक दूसरे को नीचा दिखाने लिए गड़े
मुर्दे उखाड़ने और उनके जरिये सनसनीखेज और आपत्तिजनक आरोप लगाने में पिले
हुए हैं।हाल के दिनों में कई नेताओं के खिलाफ ऐसे आरोप उछाले गए हैं जिसका
इस्तेमाल पहले भी किया जा चुका है।जाहिर तौर पर वक्त बहुत नाजुक हो चला है
और ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि राजनीतिक दल इस पर विचार करें कि
बयानबाजी का स्तर कैसे सुधारा जाए?केवल चुनाव के समय ही नहीं बल्कि सामान्य
अवसरों पर भी नेताओं को अपनी बयानबाजी में संयम और शालीनता का परिचय देना
होगा।
नेताओं के अमर्यादित बयानबाजी के सन्दर्भ में निर्वाचन
आयोग की भूमिका अत्यंत लाचारी भरी और सीमित नजर आती है।निर्वाचन आयोग ने
हाल के दिनों में कुछ नेताओं के बयानों और टिप्पणियों पर संज्ञान लिया
है।खासकर के राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बयानबाजी को लेकर निर्वाचन
आयोग गम्भीर हुआ है।लेकिन आयोग के हाथ बंधे हुए हैं।निर्वाचन आयोग के पास
इतनी संवैधानिक ताकत नहीं है कि वह नेताओं के बड़बोलेपन पर कोई कठोर कारवाई
का रास्ता तैयार कर सके।आयोग ऐसे बयान बहादूरों के मामले में अधिक से अधिक
अपनी असहमति जताने,चेतावनी देने और फटकार लगाने तक ही सीमित है।
हम इस आलेख को बस आपके सम्मुख परोसकर कतई निकल जाना नहीं चाह रहे
हैं। बल्कि हम इसके जरिये यह भी चाह रहे हैं कि राजनेताओं के मर्यादित
बयानबाजी के लिए बड़ा हस्तक्षेप हो।हमारी समझ से इसके लिए संसद के दोनों
सदनों में बड़ी बहस करायी जानी चाहिए।इसके लिए संविधान में ना केवल कुछ नए
अनुच्छेद की जरुरत है बल्कि इसके लिए कानून भी बनाये जाने चाहिए।इस मामले
में हद की इंतहा है,इसलिए माननीय न्यायालय को भी चुप्पी तोड़कर,इस मामले में
अब सीधा हस्तक्षेप करना चाहिए।
राजनेता
देश की दिशा तय करने वालों में अगर्णी भूमिका निभाते हैं।उनके
क्रिया--कलापों का जनता पर सीधा और व्यापक असर पड़ता है।ऐसे में नेताओं को
पूर्वागढ़ से मुक्त और दूरदर्शी होने के साथ--साथ व्यक्तिगत और पार्टी हित
की जगह देश हित का ख्याल रखना चाहिए। धर्म,सम्प्रदाय और जाति को बयानों में
रखकर देश को ये नेतागण आखिर कबतक जलालत और फजीहत में झोंकते रहेंगे।आजादी
के लगभग सात दशक के हम करीब हैं।लेकिन हमें जिस तरह से समृद्ध,संपन्न और
एकीकृत होना चाहिए,वहाँ हम कतई नहीं दिख रहे हैं।विचारों का मतभेद और उसका
स्खलन विकास का चट्टानी अवरोधक है।अब बदलाव की जरुरत है।गाँव से लेकर देश
स्तर के शीर्षस्थ नेताओं को अपने तौर--तरीके बदलकर देश निर्माण की बात ना
केवल सोचनी और गुननी होगी बल्कि नयी ऊर्जा के साथ उन्हें सामने आना होगा।
दर्द,चुभन,सीलन,टीस और सिसकियाँ भरे इस देश को जलते रहने देना,कहीं से भी
और कतई जायज नहीं है।वजूद तलाशते इस देश के राजनेताओं जागो और देश निर्माण
की नयी पटकथा लिखो।
नोट ::--इस आलेख में जो भी कार्टून इमेज लगे है वह नेट के माध्यम से लिया गया है..
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