मई 25, 2012

पुस्तकालय के आंसू


                                      SPECIAL REPORT 
जमींदोज होने के कगार पर पुस्तकालय
बेइंतहा लापरवाही
दीमकों से लड़ते बहुमूल्य पुस्तकें
कल चमन था,आज एक सहरा हुआ,देखते ही देखते ये क्या हुआ.जिला मुख्यालय के सुपर बाजार परिसर के उत्तरी कोने में वीरान पड़े दो मंजिले भवन में पाठकों की बाट जोहते दो कर्मी,भवन के अंदर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दीमकों से लड़ते बहुमूल्य पुस्तकें,यही है सहरसा का इकलौता प्रमंडलीय पुस्तकालय आज अपनी बदहाली पर खून के आंसू रो रहा है.1954 में स्थापित इस पुस्तकालय को वर्ष 2000 में दो मंजिला इमारत भी मयस्सर हुआ लेकिन वह भी इसकी तक़दीर को बदलने में नाकामयाब साबित हुआ.बेसकीमती,दुर्लभ और धरोहर की पुस्तकें यहाँ रख--रखाव के अभाव और बेइंतहा लापरवाही की वजह से बहुत हद तक दीमक का निवाला बन चुके है और जो बचे हुए हैं वे भी धीरे--धीरे दीमक का निवाला बन रहे हैं.हद की इंतहा तो यह है जिला सहित प्रमंडल के आलाधिकारी इस पुस्तकालय के संरक्षक हैं फिर भी यह पुस्तकालय ना केवल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है बल्कि जमींदोज होने के कगार पर है. जिला मुख्यालय के सुपर बाजार परिसर के उत्तरी कोने में वीरान पड़े दो मंजिले भवन में पाठकों की बाट जोहते दो कर्मी,भवन के अंदर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दीमकों से लड़ते बहुमूल्य पुस्तकें,यही है सहरसा का इकलौता प्रमंडलीय पुस्तकालय.1954 में स्थापित यह पुस्तकालय पहले जिला परिषद् के एक भवन में था लेकिन वर्ष 2000 में सांसद कोष से सहरसा के तत्कालीन सांसद दिनेश चन्द्र यादव ने इसके लिए दो मंजिला इमारत बनवा दिया,तभी से यह पुस्तकालय यहीं पर है.यहाँ पर वाचनालय की भी व्यवस्था है.जहां पुस्तकालयाध्यक्ष को महज 425 रूपये वहीँ आदेशपाल को 350 रूपये महीने बतौर वेतन मिलते हैं.तरह--तरह की दिक्कतें झेल रहे इन कर्मियों का साफ़--साफ़ कहना है की इस पुस्तकालय की बदहाली के लिए सरकार और क्षेत्रीय प्रशासन जिम्मेवार है. इसमें कोई शक नहीं है की यहाँ कुएं में भंग पड़ा है.ज्ञान की सम्पदा आँखों के सामने नष्ट हो रही है और बेगैरत अधिकारी तमाशबीन बने बैठे हैं.सरकार को लफ्फाजी छोड़कर इन पुस्तकालयों को लेकर भी चिंता करनी चाहिए.

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।