कहते हैं की वक्त और हालत हर किसी को उसकी जद में ला छोड़ता है.कभी राजपूतों का सिरमौर्य और छत्रप समझे जाने वाले पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन आज अपना चोला बदलकर कवि,लेखक और दार्शनिक हो गए हैं.इस रसूखदार और पूरा दम--ख़म वाले बाहुबली के हाथ में बन्दूक की जगह आज कलम आ चुकी है.पिछले पौने पांच साल से जेल में बंद आनंद मोहन यूँ खुद को कभी बाहुबली नहीं माने लेकिन देश उन्हें इसी नाम से जानता है.आज आनंद मोहन के इस ओजस्वी पहल को लोग ह्रदय परिवर्तन के रूप में ले रहे हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं है.आनंद मोहन रचित काव्य संग्रह "कैद में आजाद कलम"के तृतीय संस्करण का 1857 ग़दर के महानायक बहादुर शाह जफ़र और बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव समारोह के अवसर पर सहरसा के टाउन हॉल में बड़े ताम--झाम से लोकार्पण हुआ जिसमें देश की कई जानी--मानी राजनीतिक हस्ती,प्रखर समाजसेवी,नामचीन साहित्यिक हस्ती सहित कई बड़े पत्रकार भी शामिल हुए.इस लोकार्पण कार्यक्रम की सबसे ख़ास बात यह रही की इस कार्यक्रम में बिहार के कई बाहुबली नेता भी शामिल हुए जो आखिरकार कई तरह के सवाल खड़े कर गए. अंगुलीमाल बाल्मीकि बन सकता है.जेल में बाल गंगाधर तिलक गीता लिख सकते हैं.जेल में मार्क्स पूंजीवाद के खिलाफ अनुपम ग्रन्थ की रचना कर सकते हैं तो पूर्व सांसद आनंद मोहन कवि लेखक और दार्शनिक क्यों नहीं बन सकते.इस बाहुबली का नया जन्म हो चुका है और यह विचार और शब्दों की ताकत के साथ नयी हुंकार भर रहा है.रब जाने आगे क्या होगा.
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