दिसंबर 03, 2011

भूख से हुई मौत

सरकार की किसी योजना का लाभ लिए बगैर ही एक बुजुर्ग सड़क किनारे जिन्दगी से लड़ते--लड़ते आज हार मान गया.अनाज के अभाव में कुलबुलाते पेट ने उसके प्राण को बाहर निकाल फेंका.सदर थाना क्षेत्र के विस्कोमान भवन के समीप वार्ड नंबर एक में दशकों से सरकारी योजना के लाभ की बाट जोहने वाला राम बहादुर भगत आज इस दुनिया को अलविदा कह गया.तीन बेटे पंजाब में रहकर मजदूरी करते हैं. खानाबदोश घर से एक महत्वपूर्ण बुजुर्ग की बिदाई असमय हो गयी.राम के घर में कोलाहल मचा है.महिलायें और मासूम नौनिहाल बस रोये ही जा रहे हैं.बुजुर्ग की बेबा पत्नी अपने पति का हाथ थामे विलाप कर रही है.सबका कहना है की घर में राशन--किरासन के कूपन पड़े हैं लेकिन उन्हें ना तो कभी अनाज मिला और ना की किरासन तेल.वृधा पेंशन के लिए बस पासबुक खुला लेकिन पेंशन एक बार भी नहीं मिला.अन्न के अभाव में इस बुजुर्ग ने तड़प--तड़प कर दम तोड़ दिया.आखिरकार भूख ने एक निरीह की जान ले ही ली.सुशासन में गरीबों के लिए चल रही योजनाओं के काले सच को आईना दिखाती है.
सुशासन की सरकार में सबकुछ ठीक--ठाक चल रहा हो,ऐसा कहीं से भी नहीं है.ताजा वाकया कई तरह के बड़े सवाल खड़े करने वाला है. विस्कोमान भवन के ठीक सामने सड़क किनारे सरकारी जमीन पर टीन--कनस्तर डालकर बसे राम बहादुर भगत के परिवार का.70 वर्षीय राम बहादुर भगत आज इस दुनिया से कूच कर चुके हैं.तीन जवान बेटे घर की गाड़ी खींची जा सके इसके लिए पंजाब में मेहनत--मजदूरी कर रहे हैं.घर की माली हालत ठीक नहीं है.बीपीएल परिवार है.घर के लोगों के लिए राशन-किरासन के लिए वर्ष 2008 से ही इन्हें सरकारी कूपन मिला हुआ है.हद की इन्तहा देखिये की ये इन कूपनों को बस संभालने में ही लगे रहे लेकिन इन्हें कभी भी इन कूपनों से राशन--किरासन नहीं मिल सका.घर के दो बुजुर्गों के नाम का वृद्धा पेंशन पास--बुक भी खुला लेकिन एक बार भी पेंशन की राशि नहीं मिली.महीनों से घर का चूल्हा बड़ी मुश्किल से कभी--कभार जलता था. बुजुर्ग राम बहादुर को पेट भर खाना नहीं मिल पाता था.जाहिर सी बात है की घर में और भी कई छोटे--बड़े सदस्य हैं जिन्हें भोजन की जरुरत थी लेकिन किसी को शायद ही कोई दिन हो जब भर पेट खाना नसीब होता हो.बेसुमार तकलीफों को झेलता यह परिवार बस एक दूसरे के दुखों को  देख कर बस किसी तरह घिसट--पिसट कर जिन्दगी जीने को मजबूर थे.राम बहादुर उम्र के ऐसे पडाव पर थे जहां उन्हें समय पर भोजन के साथ--साथ कई तरह के मौसमी फलों की जरुरत थी.लेकिन जिस घर में गरीबी और मज़बूरी ने अपना डेरा डाल लिया हो वहाँ तो चूल्हे की अंगीठी जलनी मुश्किल होती है.राम बहादुर को खाना ना के बराबर मिलता था.उन्होनें महीनों से अपनी जिन्दगी बचाने की कोशिश की लेकिन भूखे पेट ने उनकी कमजोर काया को साथ देना बन्द कर दिया.महीनों से तड़पते इस बुजुर्ग ने आज दम तोड़ दिया.घर के लोग चीख--चीख कर कह रहे हैं की भूख ने उनके घर का बुजुर्ग लेकिन मजबूत पाए को लील लिया.
---घटना बड़ी है.भूख से मौत का मामला है.जाहिर सी बात है की खासकर के प्रशासन और सरकार के लोग कभी भी भूख की बात को स्वीकार नहीं करेंगे.लेकिन इस मामले में मौके पर आये प्रशासन के अधिकारी ने जहां कूपन की जांच करवाकर डीलर अथवा जो जिम्मेवार अधिकारी हैं पर कड़ी कारवाई की बात की,वह भूख से हुई मौत को एक तरह से स्वीकार रहे हैं.इनकी मानें तो इस परिवार को तत्काल डेढ़ हजार रूपये कबीर अन्तियेष्ठी मद से दिए जा रहे हैं ताकि शव का अंतिम संस्कार किया जा सके.आगे इस परिवार को पारिवारिक लाभ दिया जाएगा. शहरी क्षेत्र में इंदिरा आवास योजना की व्यवस्था नहीं है.अगर यह परिवार चाहे तो ग्रामीण क्षेत्र में भूमि उपलब्ध कराकर इंदिरा आवास का लाभ इन्हें दिलाया जाएगा.भूख से हुई इस मौत पर हमने वार्ड पार्षद से भी जबाब तलब किया.इन्होनें तो इस मौत को पूरी तरह से भूख से हुई मौत बताते हुए डीलर पर कई तरह के आरोप लगाए.इन्होनें तो यहाँ तक कहा की जिस डीलर ने इस परिवार को राशन--किराशन नहीं दिए उसके  खिलाफ उन्होनें तमाम आलाधिकारी से लिखित शिकायत की थी लेकिन कहीं भी कुछ नहीं हुआ और यह बुजुर्ग आज तड़प--तड़प कर मर गया. इन्होनें डीलर को इस मौत के लिए जिम्मेवार ठहराते हुए उनपर कारवाई की मांग की.-भूख से हुई मौत सरकार और प्रशासन के लिए जांच का विषय हो लेकिन यहाँ मृतक के घर के हालात चीख--चीख कर भूख--भूख का सिंहनाद कर रहे हैं.जाहिर सी बात है थोड़ी सी हाय--तौबा के बाद राम बहादुर की मौत पर शोर थम जाएगा और सबकुछ शांत हो जाएगा. लेकिन सरकार की योजनायें किस तरह से सरजमीन पर नहीं उतर पा रही हैं,यह मौत उसकी गर्जना के साथ वकालत करता रहेगा.इस मौत को प्रशासन के साथ--साथ सरकार किस तरह से लेती है इसे आगे देखना दिलचस्प होगा.

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