जनवरी 30, 2017

आखिर कौन है गुनहगार ?

★ आज के महंगाई के युग में जहां तीन सौ रुपया प्रतिदिन एक दैनिक मजदूर को मिलता है वही इस मासूम बच्चे को महज तीन सौ रुपया महीना पर खटाया जा रहा था।
★ मृतक मासूम बच्चे की मौत गरीबी और लापरवाही सही समय पर इलाज नहीं होने के कारण उसकी मौत हो गई *इसका गुनहगार कौन विशुनदेव मेहता या सरकार*
★ अब तो बड़ा सवाल यह उठता है की इस मासूम बच्चे को विषैला सांप ने काट लिया या कुछ और इस बच्चे की मौत के साथ ही दफन हो गई वास्तविक सच्चाई.
वहीं विशुनदेव मेहता कुछ लोगों को हजार 10 हजार 5 हजार देकर मैनेज कर इस मामले को दबाने में जुटे हुए थे .*

=== तेजस्वी ठाकुर की विशेष रिपोर्ट ===

*कोसी क्षेत्र* में आज भी गरीबों का शोषण जारी है. जब समाज के निचले पायदान पर बसे हुए गरीबों तक विकास पहुंचा ही नहीं तो फिर किसका हुआ विकास ? आज भी गरीबों का भविष्य अंधकार में डूबा हुआ है. बचपन मजदूरी करने को बेबस है. *न्याय के साथ विकास, ढिंढोरा खुद पीट रही सरकार, क्या है हकीकत बिहार का आज दिखा रहा सहरसा टाईम्स *
*सरकार अपने ही जुबान से कहते नहीं थकती *

*न्याय के साथ विकास,*
गरीबी ने मजबूर कर दी मजदूरी करने के लिए इस मासूम बच्चे को . सर पर से मां का साया पहले ही उठ चुका था पिता दिव्यांग है जो चलने फिरने से असमर्थ है। दिव्यांग पिता राजो चौधरी को तीनो पुत्र का भार और भोजन का खर्च उठा पाने में असमर्थ था । आज उदाहरण स्वरूप सहरसा जिले के सोनबरसा राज थाना क्षेत्र का यह मृतक मासूम बच्चा है गरीबी ने इसकी बचपन छीन ली और जिंदगी भी विशुनदेव मेहता के यहां तीन सौ रुपया महीना पर नौकरी लगा दी नीरज को . जो सबसे छोटा पुत्र था नीरज *न्याय के साथ विकास वाली सरकार में* सोनवर्षा राज थाना क्षेत्र के बेहटा मोहनपुर के विशुनदेव मेहता के यहां 10 वर्षीय मासूम सा बच्चा नीरज जो महज तीन सौ रुपया महीना पर मजदूरी कर रहा था ।
जहां आज इस मासूम बच्चा नीरज को मकई की तैयारी के दौरान विशुनदेव मेहता के घर पर विषैले सांप ने काट ली जिससे उसकी मौत हो गई . जहां यह मासूम मजदूरी करता था। *जिसका फायदा गांव के विशुनदेव मेहता जैसे लोग गरीबों का शोषण आज के महंगाई के युग में तीन सौ रूपया महीना पर बाल मजदूरी खुलेआम कराते हैं .* खेलने की उम्र में गरीब बच्चों को अपना पेट पालने की भार खुद उठानी पड़ रही है अपने घर की जीविका चलाने की बोझ इन मासूम से बच्चों के कंधों पर ही टिकी रहती है आखिरकार करे तो क्या करे घर में पिता दिव्यांग है जो चलने फिरने से लाचार है और भी दो भाई भले ही सरकार या प्रशासन इस गरीब मासूम बच्चों के परिजन को मुआवजा दे या ना दे *पहला मुआवजा विशुनदेव मेहता को देना चाहिए था ?*. क्योंकि विशुनदेव मेहता के घर पर यह बच्चा मजदूरी कर रहा था ? इलाज में लापरवाही के दौरान इस मासूम बच्चे की मौत हो गई।
जहां विशुनदेव मेहता के घर पर मजदूरी के दौरान इस मासूम बच्चे की मौत हो गई जहां परिजन को मुआवजा देना चाहिए था .? वहीं विशुनदेव मेहता कुछ लोगों को हजार 10 हजार 5 हजार देकर मैनेज कर इस मामले को दबाने में जुटे हुए थे । किसी तरह का सरकारी मदद और ना ही सरकारी लाभ नहीं मिल पाना यही न्याय के साथ विकास है गरीबी ने बचपन छीन ली और मजदूरी करने को बेवस कर दिया ।अब दिव्यांग पिता का एक सहारा ही छीन लिया भगवान यही कहते हुए रोती-बिलखती रही चाची और उसकी भाभी यहां तक कि इस मृतक बच्चा का नाही दिव्यांग पिता पहुंच पाया पहुंचा तो बस उसकी बड़ी चाची और भाभी सदर अस्पताल के बरामदे पर मृत पड़ा हुआ था यह मासूम बच्चा । वही पुलिस पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम की तैयारी में जुटी हुई थी. वही परिजन ने गुहार लगाई की अब क्या बचा हुआ है इस मासूम बच्चे के साथ अब क्या होगा जोकि पोस्टमार्टम तो बहुत की हुई उसको क्या मिला जो इस मृतक मासूम बच्चे और उसके परिजन को मिलेगा .? बिना पोस्टमार्टम के ही घर ले गया परिजन मासूम बच्चे को.
*क्या यही न्याय के साथ विकास है*
*इसका गुनहगार कौन विशुनदेव मेहता या सरकार*

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।