धिक्कार है इस सिस्टम पर जहां संवेदनाएं शून्य हो गयी है और मुनाफाखोर प्रवृति हावी। लिखते लिखते अपनी गजल की चंद पंक्तियाँ याद आ गयी अचानक-----
रो रही पूरी आबादी मुल्क के अपमान पर
आप कहते हो मिंयाँ सब छोड़ दो भगवन पर.
बेचकर सरेआम अबला की यहाँ अस्मत प्रभु -
दे रहे हो मंच से भाषण दलित उत्थान पर.
साभार --- यह पोस्ट सोशल मीडिया व ब्लागिंग जगत के चर्चित शख़्सियत डॉ० रवीन्द्र प्रभात सर के टाइम लाईन से ली गई है....
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