बीणा सिंह का यह आलेख आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया है ------
आज जीवन की आपाधापी में लोग अंधदौड़ लगा रहे हैं ।उनके जीवन का वास्तविक मकसद क्या है,यह कहीं गुम होता जा रहा है । नींद से जागने के बाद इंसान,इंसान की जगह मशीन बनकर हर काम करना चाहता है । धन अर्जन और भौतिकवादी सामग्रियों का संग्रहण बेहद जरुरी है लेकिन इस कार्यों को अमली जामा देने में इंसान का स्व मौजूद नहीं रहता है ।झूठ और फरेब के लिहाफ में इंसान घिसता हुआ जिंदगी की गाड़ी दौड़ाकर खुद को सफल इंसान समझ बैठता है । लेकिन इंसान वाकई भूल करता है । ऐसे कृत्य जिससे महज तथाकथित कुछ अपनों का भला हो रहा हो और कईयों का अहित,तो उसे कतई सही नहीं ठहराया जा सकता है ।
ऊहापोह में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो चुका है ।परिवार के परिवेश और ज्ञान की पाठशाला में अब नैतिकता या फिर व्यवहारिकता का पाठ नहीं पढ़ाया जाता है ।पहले गुरुकुल हुआ करते थे जहां हर तरह की शिक्षा के साथ--साथ स्त्री--पुरुष को लेकर भी ज्ञान भरे जाते थे । कालखण्ड में युग बदला और नयी विचारधारा ने व्यापकता पायी ।आज के समय में रिश्ते की गर्माहट में एक तरफ जहां कमी आई है वहीं व्यवहार की मधुरता भी कम हुयी है । ध्यान,योग,चिंतन और मनन की परिपाटी अपने अवसान पर है ।
इतिहास और अतीत को समेटकर,वर्तमान को जीना असल जीवन है ।ऐसे जीवन से दूसरे को चोट लगने की गुंजाईश ना के बराबर होती है । ज़रा सोचिये किसी भूखे को रोटी खिलाकर,किसी प्यासे को पानी पिलाकर,निःवस्त्र को वस्त्र पहनाकर,रोने वाले को हंसाकर,बेरंग के जीवन में रंग भरकर और निराश लोगों में जीवन भरकर अगर हम भी जियें तो अपना यह जीवन कितना सार्थक और मूल्यों से भरा होगा ।दूसरों में कमियां ढूंढने की जगह,आईये हम लोगों को खुश रखने की पहल करें ।
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