जून 22, 2016

आखिर क्यों बढ़ रहा अपराध ?

कहाँ है कानून ?
किधर है पुलिस ?
कोसी इलाके में अपराधी लगा रहे हैं जयकारा......

मुकेश कुमार सिंह की की कलम से दो टूक.....आदमजात और अपराध का निसंदेह चोली--दामन का साथ है ।लेकिन जबसे सभ्यता का विकास हुआ और संस्कृति पनपी तो फिर सामाजिक चेतना आई और लोग अच्छे और बुरे का अंतर समझने लगे ।
धीरे--धीरे समाज बना फिर नियम और कानून बने ।लेकिन जबसे सभ्य समाज अस्तित्व में आया तब से समाज कई वर्गों में विभक्त हो गया ।एक सटीक अनुमान लगाएं तो अपराध की पटकथा तभी से ही लिखी जानी शुरू हुयी ।खैर वर्तमान परिवेश में अपराध की चर्चा आज हमारा विषय है,इसलिए पुरातन बातों की अधिक चर्चा से विषय की गंभीरता भी कम हो जायेगी और सन्दर्भ की रोचकता में भी ह्रास होगा । कोसी का इलाका दशकों से अपराध को लेकर सुर्ख़ियों में रहा है । कभी नक्सली गोनर शर्मा की तूती बोलती थी तो कभी इंग्लिश चौधरी का गुंडा राज कायम था । समय बदला फिर रामानंद यादव, जाहिद कमांडो, पप्पू देव, विकास सिंह,बुटन सिंह,टोला सिंह,शंकर सिंह, मनोज सिंह, अवधेश मंडल, रघुनाथ यादव, रामपुकार यादव, छविलाल यादव, काजल यादव, देवानंद यादव, पिंटू यादव, बिजली यादव, बिंदु यादव सहित कई और खूंखार, खून चटोरे अपराधियों की इस कोसी इलाके में समानांतर सरकार चलने लगी ।
इनमें से कुछ अपराधी मारे गए और कुछ अभी सलाखों के पीछे हैं ।इसके अलावे अपराध से भी ऊपर के दो आका बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन जो अभी सहरसा जेल में बंद हैं और पप्पू यादव जो अभी मधेपुरा के सांसद हैं,का ना केवल दबदबा कायम है बल्कि ये दोनों हवा का रुख बदलने की हर कोशिश में भी लगे रहते हैं ।

इस आलेख के माध्यम से हम कोसी के मुख्यालय सहरसा जिले के अपराध का चित्रण करना चाह रहे हैं । अपराध की नयी पौध की बात करें तो ,सहरसा में युवाओं के कई गैंग सक्रिय हैं । 
अलग--अलग ढंग से संचालित इन गैंगों के संचालक भी अलग--अलग खेमे से आते हैं । हांलांकि इस तरह के गैंग को कुछ युवा सामाजिक संगठन का जामा देकर उसकी साफ़--सुथड़ी तस्वीर जनता के सामने जरूर पेश कर रहे हैं । हम ऐसे युवा तुर्क को अपराधी की संज्ञा नहीं दे रहे हैं ।
जनता इनके चरित्र का निर्धारण खुद से करे, तो वह ज्यादा बेहतर है । इन युवा की बात करें तो गोलू यादव, राजन आनंद, सोनू सिंह तोमर, संगम सिंह, मीर रिजवान, हनी चौधरी, रोहित झा, रमण यादव, सुमित पासवान, अनिमेष कुमार, करण तिवारी सुमित सिंह, मिक्की चौबे, कुशाग्र गब्बर, अली भुट्टो, बंटी सिंह, सोनू सिंह सहित कई अन्य और युवा हैं जो अपने--अपने धर्म के साथ--साथ अपनी जाति विशेष के झंडादार भी हैं । इलाके में इन युवा नेताओं की गहरी पैठ है । कुछ समय में ही सैंकड़ों दुपहिए, बड़े वाहन सहित हाथी--घोड़े के साथ-- हजारों की भीड़ जमा करने का इनमें दम--ख़म है । कुछ युवाओं की चर्चा करना यहां बेहद जरुरी है ।
1. सबसे पहले गोलू यादव के बारे में जानिये । इन्होने उच्च शिक्षा नहीं पायी है लेकिन शालीनता और दूसरों को सम्मान देने की कला इनमें कूट--कूटकर भरी है। सहरसा जिला मुख्यालय के पंचवटी चौक के रहने वाले गोलू यादव में कुछ कर गुजरने का हुनर और माद्दा है लेकिन एक जाति विशेष का इनपर ठप्पा लगाकर इनके विराट भविष्य को शुरूआती समय में ही घुन्न और ग्रहण लगाया जा रहा है ।अगर जाति से बाहर निकलकर इनके वजूद को शक्ल मिले तो यह एक बेहतर नेता साबित हो सकते हैं ।
2. अब जानिये राजन आनंद को। पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन के भतीजे हैं ये । एक बड़ी पहचान इनके हिस्से पहले से मौजूद है । गंभीर व्यक्तित्व के राजन आनंद में युवाओं को समेटकर और उन्हें साथ लेकर चलने का हुनर है । लेकिन कहते हैं की खून का असर, वह इनमें भी है और ये समझौता करने से गुरेज और परहेज करते हैं ।बड़ा सच यह है की,हवा का रुख पहचानिये लेकिन इनको उसकी परख नहीं है ।नेतागीरी विरासत में मिली है लेकिन इन्हें बहुत कुछ सीखना अभी बांकी है।
3. सोनू सिंह तोमर बिहार विकास मोर्चा के बैनर तले युवाओं को संगठित कर के समाज में नई धारा बहाने की जुगत कर रहे हैं ।
4. संगम सिंह, कुशाग्र गब्बर और हनी चौधरी बन्दुक और बारूद की भाषा ज्यादा समझते हैं । समाज में बदलाव ये भी चाहते हैं लेकिन इनका रास्ता आतंक और दहशतगर्दी का है ।
हमने इनलोगों की चर्चा इसलिए की, ताकि हम अपने पाठकों को खुले सफे से यह बता सकें की इस इलाके में होने वाले अपराध में इनकी भूमिका नहीं हो लेकिन इन तक अपराध की तक़रीबन हर जानकारी जरूर पहुँचती है । वैसे सहरसा में होने वाले छोटे से लेकर बड़े अपराध की जानकारी सहरसा जेल में बंद कुछ अपराध सूरमाओं को तो जरूर ही होती है । वैसे कुछ बड़ी घटनाओं को अंजाम दिलाने की पटकथा जेल में ही लिखी जाती है ।
आखिर सहरसा में अपराध क्यों बेहिसाब हो रहे हैं और इसपर लगाम क्यों नहीं लग रहा है ।इसको लेकर हम अपने दशकों को डंके की चोट पर कुछ जानकारी देना चाह रहे हैं । कुछ खादीधारी और कुछ खाकी वालेअपनी - अपनी जात के अपराधियों को ना केवल प्रश्रय दे रहे हैं बल्कि उन्हें भरपूर आशीर्वाद भी दे रहे हैं । यही नहीं वे इन्हें आर्थिक मदद करने के साथ--साथ उनकी हौसला आफजाई भी कर रहे हैं। यूँ सहरसा पुलिस के काम करने का तरीका भी ना केवल बिगड़ैल है बल्कि पूरी तरह से बेपटरी भी है। यहां मुकदमा कराने से लेकर अनुसंधान और कार्रवाई तक के लिए मोटी रकम चुकानी होती है। बिना नजराना के यहाँ  एक सनहा तक दर्ज नहीं होता है । जमीन के मामले में पुलिस वालों की रूचि सब से ज्यादा है। अभी शराब की बिक्री करवाने में खादी और खाकी दोनों गंभीर और सक्रिय है । बिहार में शराबबंदी है और सरकार खुद से अपनी पीठ--थपा रही है की बिहार से शराब बाहर जा चुका है ।लेकिन सच्चाई बिल्कुल इससे ईतर है ।हाँ ! ये जरूर हुआ है की शराब के आदी लोग अब शराब की दूकान पर नहीं जाते ।अब दोगुने और तिगुने कीमत पर लोगों को आज शराब की डिलेवरी उनके घर पर होती है । शराबबंदी के बाद सरकार को यह अंदेशा हुआ था की शराबबंदी से जो लोग शराब की लत के शिकार हैं,वे शराब ना मिलने की वजह से बीमार पड़ेंगे । 
इसके लिए प्रत्येक जिला के सदर अस्पताल में एसी युक्त नशा मुक्ति केंद्र खोला गया । मकसद यह था की जो शराब नहीं मिलने से बीमार होंगे, उनका वहाँ पर ईलाज होगा ।लेकिन आप बिहार के अड़तीस में से अड़तीस जिले चले जाएं। आपको नशा मुक्ति केंद्र पर एक भी मरीज नहीं मिलेगा ।अब नशा मुक्ति केंद्र पर मरीज नहीं आते हैं,तो आप इस खुशफहमी में मत रहिएगा की बिहार शराब मुक्त प्रदेश बन गया है ।असल बात यह है की खाकी और खादी के गठजोड़ से शराब बिक रही है और पीने वाले पी रहे हैं ।हांलांकि खुलेआम शराबी अब सड़कों पर नहीं मिलते,यह एक बड़ा फायदा जरूर हुआ है ।सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के मुताबिक़ पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर इतनी शराब जमा है की आने वाले पांच से सात वर्षों तक पुरे जिले को शराब पिलाई जा सकती है ।
खैर,आज हमारी चर्चा का विषय बढ़ता अपराध है । आपको यह बताना बेहद जरुरी है की पुलिस का सूचना तंत्र बेहद कमजोर है ।पुलिस के मुखबिर सटीक नहीं हैं ।चौकीदार से वाजिब काम नहीं लिए जा रहे हैं ।किस थाना क्षेत्र का कौन अपराधी कब जेल जा रहा है और कब जेल से छूट रहा है,इसकी जानकारी एक दूसरे थाने को नहीं है ।पुलिस की वाहन,बाईक और पैदल गस्ती बेहद कमजोर और सुस्ती भरी है ।शहरी इलाके की वात करें तो,पुलिस का ज्यादा समय ट्रक और मालवाहक गाड़ी की चेकिंग और रेड लाईट इलाके में धड़--पकड़ में ही ज्यादा गुजरती है ।यही नहीं मोटा नजराना किधर से आयागा,सारा ध्यान और दिमाग उधर ही रहता है ।अपराधी पर कैसे नजर रखी जाए,उसके लिए ना तो कोई होमवर्क होता है और ना ही इसको लेकर कोई गंभीरता ही दिखाई जाती है ।बस पुलिस वाले इस जुगाड़ में रहते हैं की ज्यादा से ज्यादा आमदनी उन्हें हो,इसके लिए वे कुछ भी कर गुजड़ने को आमदा रहते हैं ।
ग्रामीण इलाके में भी गस्ती इसी तर्ज पर होती है ।अगर आप किसी मुसीबत में थाना पहुँचिये,तो वहाँ के अधिकारी ऐसे बात करते मिलेंगे की वे काम कर--कर के फट चुके हैं ।अब उनकी सुन रहे हैं तो वे तरस खा रहे है ,या फिर उनपर उपकार कर रहे हैं ।अगर नोट की हरियाली दिखी तो फिर उनकी सुस्ती पल में काफूर हो जाती है ।हमने पुलिस की कार्यशैली पर तटस्थ और पारदर्शी गहन चिंतन--मंथन किया है ।हम इस नतीजे पर पहुंचे है की हर स्तर का पुलिस वाला,यानि जवान से लेकर आलाधिकारी तक यह सोचकर काम कर रहा है की नजराना लेना उसका जन्म सिद्ध अधिकार और सरकारी हक़ है ।कहते हैं की अगर समय से न्याय नहीं मिले तो वह न्याय भी अपराध की श्रेणी में आता है ।
पुलिस वाले समय से किसी के साथ न्याय करते नहीं दीखते हैं । नतीजतन अपराधियों के हौसले बुलंद हैं ।आपको यह जानना भी जरुरी है की ज्यादातर मामले का अनुसंधान अधिकारी घटनास्थल पर जाने की जगह अपने एसी कक्ष से ही करते हैं ।यह वह परिस्थिति है जिसमें न्याय होने की कोई संभावना दूर--दूर तक नजर नहीं आती है ।हमने कई नामी अपराधी को पुलिस अधिकारियों के बेहद करीब और उनसे दोस्ताना भी देखे हैं ।
हमारी समझ से पहले की पुलिस अपने कर्तव्य को लेकर बेहद गंभीर थी । नौकरी में आते समय जो शपथ लेते थे,उसका वे मान रखते थे ।लेकिन बदलते परिवेश में ये पुलिस वाले अब बस महज नौकरी करते और कमाते--खाते नजर आ रहे हैं ।हांलांकि खराब पुलिसिंग के लिए कानून और सरकार भी कम जिम्मेवार नहीं है ।लचर कानून की वजह से हत्यारोपी भी बच निकलता है ।मानवाधिकार का डण्डा पुलिस वाले पर कब चल जाए,इसका भी भय बना रहता है ।पहले के समय में पुलिस वाले अपराधियों पर थर्ड डिग्री के अलावे और कई डिग्री का प्रयोग करते थे लेकिन यह अब बीते जमाने की बात बनकर रह गयी है ।कुछ कारण ऐसे जरूर रहे हैं जिससे पुलिस बेबस,निरीह,लाचार और अपने वाजिब शौर्य से कमतर हो गयी है ।
कोसी इलाके में बढ़ रहे अपराध से अमन पसंद लोगों की बैचैनी निसंदेह बढ़ी है ।लेकिन सारा ठीकरा पुलिस पर ही फोड़ना जायज नहीं है । आमलोग भी गलत मुकदमें में दूसरों को फंसाने के लिए पुलिस वालों की जेब गर्म करते हैं ।पुलिस वालों की आदत बिगाड़ने में हुक्मरान से लेकर आम जनता तक जिम्मेवार है ।पुलिस को आज अपने शपथ को याद कर,उसपर अमल करना और खड़ा उतरना जहां बेहद जरुरी है वहीं आमजन को भी अपने कर्तव्य को लेकर सजग और ईमानदार होने की जरूरत है ।अभी के हालात में अपराधी पुलिस के सर पर चढ़कर नंगा नांच कर रहे हैं ।अपराधी ना केवल पुलिस पर भारी हैं बल्कि उनकी समानांतर सरकार भी चल रही है ।बेचारी पुलिस अपराध की मोटी फाइलों को संभालते--संभालते ना केवल हांफ रही है बल्कि अदालत के चक्कर लगा--लगा कर वह बेदम भी हुयी जा रही है ।सामाजिक न्याय के पुरोधा और सुशासन के जनक सत्तासीन हैं,तो आखिर फिर क्यों इतने अपराध हो रहे हैं ।अभी सामाजिक विषयों के जानकारों को सामने आना चाहिए और सामाजिक बदलाव का उन्हें सारथी बनना चाहिए ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।