नवंबर 26, 2015

भाई – बहनों के अटूट प्रेम का पर्व सामा–चकेवा सम्पन्न......


कृष्णमोहन सोनी के साथ मो० अजहर उद्दीन की रिपोर्ट:- मिथिलांचल में प्रचलित और लोका आस्था भाई – बहनों के अटूट प्रेम कहानी पर्व सामा – चकेवा हर वर्ष कि भांति एस वर्ष भी शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया.यह पर्व हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर मिथिलांचल में मनायी जाती है.सामा-चकेवा एस पर्व को लेकर बहने पूर्व से ही मिट्टी कि रंग-बिरंगी मुर्तिया बनाती है. जिसमें सामा-चकेवा, चुगला, सतभैया, कचबचिया, सखारी, भबरा-भबरी, वृंदावन, खजन चिड़िया, आदि कि खुबसूरत प्रतिमा पारम्परिक तरीके से बना कर आधुनिक ढंग से सजा कर मनाई गयी. 
बहने इस पर्व पर अपने भाई कि दीर्घायु लम्बी उम्र कि कामना करते हुए.गीत-नाद के साथ पूर्णिमा के रात में हँसते-गाते गावं कि कुरखेत या नदी तालाब में जा कर सामा-चकेवा का विसर्जन किया.
बताया जाता है,कि इस पर्व में सामा-चकेवा सहित अन्य पंछियों कि आकृति को बांस के बने टोकरी में लेकर माथे पे रख गीत गाती घर से निकलती है और नदी तालाब या कुरखेत में जाकर पूजा अर्चना कर विसर्जन भी करती है. इस मौके पर महिलाएं एक जुट होकर अपने गीतों में अपने भाई के लिए गाम के जमींदार आहो बड़का भैया हो मोहे आठ दस पोखरी खून वाय दिहो, जैसी गीत गाती है. जिसमें भाई के प्रति अटूट प्रेम देखने को मिलता है. ये गीत ना केवल इतिहास कि जानकारी देती है, बल्कि भाई-बहनों कि अटूट प्रेम कहानी प्रतीत होती है.
बताया जाता है, कि भगवान कृष्ण कि बेटी सामा अपने प्रेमी से गंधर्व विवाह कि थी.जिसकी शिकायत चुगला दूारा भगवान कृष्ण को के जाने बाद भगवान कृष्ण ने सामा को श्राफ दिया और मैना बना दिया जो वृन्दावन कि जंगल में भटक रही थी.सामा के भाई दूारा अपनी बहन एवं बहनोई का मिलन कराने के लिए अनजल त्याग दिया मजबूरन भगवान विष्णु ने सामा को पुनः मनुष्य योनी में लाया जहाँ सामा अपने पति के साथ खुश रहने लगी और अपने भाई चारू वक्र लम्बी आयु के लिए पूजा करने लगी तब से ये परम्परा हमलोगों के बीच सामा-चकेवा त्यौहार के रूप मानाया जाता है.         

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