कृष्ण मोहन सोनी के साथ मो० अज़हर उद्दीन की रिपोर्ट :सहरसा टाईम्स बार - बार लोगों के दर्द और विभाग की लापरवाही को कैमरे में कैद कर उस तस्वीर से आप लोगों को रू ब रू कराया है, लेकिन यहाँ तो जख्म एक हो तो बताऊ यहाँ तो जहाँ दवाये वहाँ मवाद ही मवाद है. आईये आप लोगों को लोकतंत्र के इस महापर्व में कई बादे घोषणाओं की झड़ी लगाने वाले स्थानीय छोटभैए नेताओ से लेकर राज्य स्तर तक के नेताओ ने भी एक ऐसे गांव के परिवारो को उनके अधिकारों से वंचित रखा जहां, उन्हें सिर्फ तो सिर्फ वोट देने तक का ही अधिकार है, इनके लिए सरकार की जनकल्याण कारी योजनाये एक सपने से कम नही, आखिर इन्हे भी तो जीना है पर कैसे ? अपनी जिंदगी व अपने बच्चो के लिए ये परिवार हर रोज समाज व गांव में आज भी लोगो से सहयोग व भीख मांग कर जीने के लिए मजबूर है.
ये कहानी कोई फ़िल्मी नही बल्कि आजादी के पूर्व से ही यहां उनके पूर्वजों ने डेरा डाला था लेकिन आजादी के बाद भी अब उन पूर्वजों के वारिस भी वही जिंदगी जीने के लिए बेवस व लाचार है आखिर कौन होगा इनके तारणहार.
आज चुनाव का फिर आया मौसम और वोट के लिए नेता कर रहे हैं इन बेवस लाचार को एक वोट देने के लिए मजबूर, ये दर्द है सोनवर्षा विधान सभा क्षेत्र व सिमरीबख्तियारपुर अनुमंडल के बीच छोटी घोड़दौड़ पंचायत के लाठौड़ समुदाय के बंजारन परिवार की जो सड़कों के किनारे तम्बू में अपना शेष जिंदगी गुजार रहे हैं हम इन परिवारों की तस्वीर व इनके दास्ताँ को सिर्फ आपसे रूबरू कराते है. सुनकर आपकी आँखे भर जायेगी.
ये बंजारन परिवार तकरीबन 70 वर्षो से यहाँ पे रह रहे है.इस परिवार के सदस्यों की संख्या 50 से 60 के बीच है. इन परिवार के कुछ बच्चों को छोड़ कर सभी लोगों का मतदाता सूची में नाम दर्ज है, और ये हर चुनाव में अपने वोट का प्रयोग करते है. इन परिवारों के मुखिया 80 वर्षीय दशई लाठौड सहित अन्य परिवार के लोग आज भी इन्तजार करते है किसी तारणहार की ये बताते है की हम देते है वोट बनती है सरकार, क्या सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओ पर हमें नही है. अधिकार सरकार और जनप्रतिनिधि सत्ता में आते है.लेकिन क्षेत्र के विकास से लोग मरहूम रह जाते है.
इस परिवार के लोगों के पास ना ही राशन कार्ड, विधवा पेंशन,वृद्ध पेंशन,स्मार्ट कार्ड,बेहतर रोजगार एवं बंजारन परिवार को जो सरकार की ओर से सुख - सुविधा मिलती है.उन सभी चीजों से ये परिवार वंचित है.क्या इन्हें जीने का अधिकार नहीं है.इनका तो पल-पल मानवाधिकार का हनन हो रहा है. ये परिवार तो पूरी तरह से खानाबदोस की तरह अपनी ज़िन्दगी गुजार रहे है.
छोटे - छोटे बच्चें भूख के कारण ये खामोश चूल्हे को टकटकी लगा के देखते है कि कब इस चूल्हे में आग सुलगेगी और हमारी पेट कि आग बुझेगी.कई रात को तो इस परिवार के लोग भूख को अपनी करबट बना कर सो जाते है.फिर सुबह उठते ही दर्द भरा सिलसिला शुरू होता है. इस दर्दनाक दास्ता को सुनने और समझने के बाद आगे बताना लाज़मी होगा कि पूरा तंत्र इन लोगों के लिए विफल दिख रहा है. जब सारे आलम के लोगों कि ज़िन्दगी बेरंग से रंग भरी होगी और बेंजा से मजबूत बनेगी तभी हमारा पूरा तंत्र विकास का सेहरा अपने सर पर पहन पायेगा.
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